बिलासपुर। 130 साल पहले ब्रिटिश शासनकाल में बनाए गए बिलासपुर जेल में कई नामचीन स्वतंत्रता सेनानियों ने वक्त बिताया है. पुष्प की अभिलाषा लिखने वाले राष्ट्रकवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर क्रांति कुमार भारतीय से लेकर अनेक समाजवादी नेता यहां बंदी रहे हैं. हाल में दिवंगत हुए शरद यादव समेत कई नेताओं ने भी यहां समय बिताया है. इस जेल को वर्ष 1883 में जिला जेल के रूप में तैयार किया गया था.
ये वो दौर था जब 1857 की क्रांति हो चुकी थी. कैदियों की संख्या बढ़ रही थी और जेलों की जरूरत महसूस की जा रही थी. क्रांतिकारियों और विद्रोहियों को कुचलने के लिए पूरा सिस्टम तैयार किया गया. जेलों का विस्तार व नई जेलों का निर्माण हुआ. बिलासपुर जिला जेल भी अस्तित्व में आ गया.
कई बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को यहां कैद किया गया. उन्हीं में से एक थे राष्ट्रकवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी. उन्होंने बिलासपुर में ही ओजस्वी भाषण दिया था. फिर वे खंडवा चले गए थे. वहां से गिरफ्तार कर उन्हें बिलासपुर जेल लाया गया. वे यहां पांच जुलाई 1921 से एक मार्च 1922 तक यहां रहे. उन्हें बैरक नंबर नौ में रखा गया था. यहीं पुष्प की अभिलाषा शीर्षक से कालजयी कविता की रचना हुई. आगे चलकर यही कविता देशप्रेमियों के लिए प्रेरणा देने वाली कविता बन गई.
महान क्रांतिकारी क्रांति कुमार भारतीय ने भी यहां छह माह की जेल की सजा काटी थी. वर्ष 1919 में वे दिल्ली में रोलेक्ट एक्ट के खिलाफ संघर्ष करने के बाद राजस्थान, पंजाब आदि स्थानों पर घूमते हुए गुड़गांव पहुंचे. यहां उन्हें एक वर्ष का कारावास हुआ. फिर साल 1920 में फिरोजपुर डकैती केस में गिरफ्तार होकर चार साल जेल में बिताए. वर्ष 1930 में वे काशी पोस्ट आफिस डकैती केस से फरार होकर बिलासपुर आ पहुंचे. यहां उन्होंने गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को बल दिया. इसी के तहत उन्होंने 18 अगस्त 1930 को टाऊन हाल में तिरंगा फहराया. पुलिस के हाथों से तिरंगा छीनकर गर्वमेंट हाईस्कूल में फहरा दिया. यहीं उन्हें छह माह की जेल की सजा हुई.
आपातकाल के दौर में मीसाबंदियों को यहां रखा गया. पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष व विधायक बद्रीधर दीवान समेत सैकड़ों की संख्या में मीसाबंदी यहां कैद रहे. उन दिनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण से प्रभावित समाजवादी नेता भी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं थे. समाजवादी नेता और हाल ही में दिवंगत हुए शरद यादव भी इस जेल में निरुद्ध रहे. शरद यादव ने कैदी के रूप में ही जेल से बाहर आकर छात्रों को संबोधित किया था.