भिलाई. हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एक 72 वर्षीय मरीज को दिल का लेटेस्ट कॉम्बो डिवाइस लगाया गया है. CRT-D नामक यह डिवाइस उन लोगों को लंबा जीवन दे सकता है जिनका दिल बेहद कमजोर हो गया है. ऐसे मरीजों का दिल पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप नहीं कर पाता. कार्डियो रीसिंक्रोनाइजेशन थेरेपी डीफिब्रिलेटर (CRT-D) न केवल विद्युत आवेगों से हृदय की गति को सामान्य बनाए रखने में सक्षम है बल्कि धड़कन रुक जाने पर बिजली का झटका देकर उसे दोबारा शुरू भी कर सकता है.
हाइटेक के इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आकाश बख्शी ने बताया कि रोगी की 10-11 साल पहले बाइपास सर्जरी हुई थी. उसका हृदय बहुत कमजोर था और आवश्यकता का केवल 25 फीसदी रक्त ही पम्प कर पाता था. 20-25 कदम चलते ही सांस फूल जाती थी. दवाइयों से कोई खास लाभ नहीं हो रहा था. जीवन की गुणवत्ता काफी कम हो चुकी थी. अस्पताल आने से दो दिन पहले उन्हें चक्कर आ गया था और वे गिर पड़े थे.
ईसीजी करने पर कम्प्लीट हार्ट ब्लाकेज सामने आया. हृदय गति को नियंत्रित करने वाली विद्युत तरंगों में भी गड़बड़ी थी. ऐसे मरीजों को एकाएक दिल का दौरा पड़ता है. ज्यादातर समय धड़कनें सामान्य बनी रहती है जिसके कारण रोग पकड़ में नहीं आता. एकाएक धड़कनें बहुत धीमी हो जाती है या बंद हो जाती है. मरीज को चक्कर आ जाता है. पहले ऐसे मामलों में मरीज की आयु दो तीन साल से ज्यादा नहीं होती थी. पर अब CRT-D जैसी नई डिवाइस के आने से इनका जीवन और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाना संभव हो गया है.
उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में मरीज को परमानेन्ट पेस मेकर लगाया जाता है. सामान्यतः पेसमेकर सिंगल या डबल चेम्बर के लिए आते हैं. पर CRT-D यानी कॉम्बो डिवाइस में तीन तार होते हैं. यह हृदय गति को तो नियंत्रित करता ही है, जरूरत पड़ने पर एकाएक रुक गए हृदय को बिजली का झटका देकर दोबारा शुरू कर देता है. यह एक नई तकनीक है जिसका लाभ कमजोर दिल के मरीज उठा सकते हैं.
इसलिए जरूरी है सम्पर्क में रहना
डॉ बख्शी ने कहा कि हृदय रोग के पुराने मरीजों को यदि कभी भी चक्कर जैसा आता है तो तत्काल अपने चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए. ऐसा करके वे संभावित कार्डियक अरेस्ट से बच सकते हैं. हृदय रोगों की चिकित्सा के लिए नई-नई तकनीकें आ रही हैं जिससे जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता दोनों बढ़ाई जा सकती है. चिकित्सक के सम्पर्क में रहने पर इसका लाभ लिया जा सकता है. आज से 15 साल पहले तक कमजोर दिल के मामलों में पहले मरीज की मृत्यु 2-3 साल के भीतर हो जाती थी. पर नई डिवाइस आने के बाद ऐसे मरीज भी लंबा और गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकते हैं.