महासमुन्द जिले के बागबाहरा थाने में एक शिकायत दर्ज हुई है. यहां के पतेरापाली गांव स्थित जय गुरुदेव मानस आश्रम में एक 17 साल की किशोरी को चूल्हे की सुलगती चैलियों से पीटा गया. उसके कोमल अंगों को दागने के साथ ही जलती लकड़ी उसके मुंह में ठूंस दी गई. उसे इसी हालत में आश्रम में कैद करके रखा गया. दूसरे दिन उसका भाई आश्रम पहुंचा तो उसने बहन को मरणासन्न स्थिति में पाया. उसने उसे आश्रम से निकालकर एक स्थानीय अस्पताल में दाखिल कराया. आश्रम संचालकों की धमकियों की वजह से उसने पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई. पर बाद में जब किशोरी की जान को खतरा महसूस हुआ तो अस्पताल की सलाह पर पुलिस में केस दर्ज करा दिया गया. आश्रम के सरगना रमेश ठाकुर और तीन सेवादार नरेश पटेल, भोजराम साहू और राकेश दीवान को गिरफ्तार कर लिया गया है. सवाल यह उठता है कि किशोरी को अस्पताल लाए जाने के तत्काल बाद अस्पताल ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी. यह प्रथम दृष्टया मेडिको लीगल केस (MLC) था. किशोरी को बुरी तरह से मारा-पीटा और जलाया गया था. अस्पताल की यह जिम्मेदारी थी कि वह तत्काल इसकी सूचना पुलिस को दे. तो क्या अस्पताल भी आश्रम के प्रभाव या दबाव में था? ज्यादा संभावना तो इसी बात की है. ऐसे आश्रमों की पहुंच और पकड़ दूर-दूर तक और रसूखदार लोगों तक होती है. कई बार तो ऐसे आश्रमों के संचालक कुकृत्यों का ताण्डव करने के बाद ऐसे ही चाहनेवालों की मदद से देश तक छोड़ जाते हैं. एक बलात्कारी बाबा तो देश छोड़कर अमेरिका के पास एक द्वीप खरीद चुका है. कुछ समय पहले उसकी एक चेली यूएन में नजर आई. एक बलात्कारी बाबा के देशभर में आश्रम हैं, लाखों अनुयायी हैं. एक और रंगीन मिजाज बाबा जेल में बैठकर वहां अपना प्रभाव जमा रहे हैं. इन आश्रमों में दिन भर देवी-देवताओं की पूजा होती है. प्रवचन होते हैं. भागवत, मानस का पाठ होता है. धर्मांध जनता, जिसमें बड़ी संख्या महिलाओं की होती है, आंख मूंदकर उनपर यकीन करती है. महिलाओं के साथ होने वाला इस तरह का यह कोई पहला अपराध नहीं है. महिलाओं को भूखा रखना, उन्हें मारना पीटना, सजा देने के नाम पर उन्हें निर्वस्त्र कर गांव में घुमाना, उनका सामूहिक बलात्कार करना जैसी घटनाएं घटित होती रही हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ‘ढोल-गंवार-सूद्र-पशु-नारी…’ की कौन सी व्याख्या सही है. नारी को अपमानित करने के लिए उसे निर्वस्त्र करने की कोशिशें तो महाभारत काल से होती आ रही हैं. हम कन्या भोजन कराते हैं, उनके पांव भी पूजते हैं, देवियों की उपासना करते हैं. पर महिलाओं लेकर हमारी सोच नहीं बदलती. चंद रोज बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. कोई 12, कोई 20 तो कोई 36 महिलाओं को सम्मानित कर रहा होगा. दरअसल, यह भी पुरुष अहंकार का ही एक रूप है जिसमें वह स्त्री को बच्चों की तरह ‘ट्रीट’ करता है.