प्रदेश में उच्च शिक्षा के नाम पर कुछ भी हो रहा है. दरअसल, सरकार का उद्देश्य उच्च शिक्षा की गुणवत्ता की बजाय शिक्षा का धंधा हो गया है. सरकार को उच्च शिक्षा में बढ़ते दाखिले के आंकड़े चाहिए. इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में शून्य प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को भी अब इंजीनियरिंग में दाखिला मिल जाएगा. वजह एक ही है, इंजीनियरिंग की खाली सीटें. सरकार इन सीटों को भरना चाहती है. इनमें से कई कालेज नेताओं के हैं. तो फिर प्रवेश परीक्षा की नौटंकी क्यों? प्रवेश परीक्षा से सरकार को मोटी कमाई जो होती है. यह कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की बुनियाद भी है. वैसे सवाल प्रवेश परीक्षा की गुणवत्ता का भी है. सरकार को लगता है कि इस परीक्षा में पास या फेल होने का कोई मतलब नहीं है. जो लोग इस परीक्षा को पास करके प्रवेश लेते हैं, वो भी कहां डिग्री लेकर निकल पाते हैं. क्या यह अच्छा नहीं होता कि 12वीं के प्राप्तांकों के आधार पर ही प्रवेश दे दिया जाता? यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है. वैसे भी, सरकार इसका जवाब दे ही क्यों? कोई सवाल पूछने वाला भी तो होना चाहिए. ऐसे में 80 के दशक की बरबस याद आती है. शिक्षाधानी भिलाई में इंग्लिश मीडियम स्कूलों में सीबीएसई पाठ्यक्रम लागू था. मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल में 11वीं की बोर्ड परीक्षा होती थी जबकि सीबीएसई में 10वीं और 12वीं बोर्ड था. सीबीएसई के 11वीं पास बिना बोर्ड परीक्षा के ही इंजीनियरिंग और मेडिकल में जाते थे. डिग्री कालेज में भी उनका प्रवेश सेकण्ड ईयर में होता था. स्कूल स्तर पर 10वीं के अंकों के आधार पर ही विद्यार्थियों को विषय आवंटित कर दिये जाते थे. ऊपर से नीचे विषयों का यह क्रम बायो-मैथ्स, पीसीएम, पीसीबी हुआ करता था. बिना कोचिंग के बच्चे पीएमटी-पीईटी क्रैक करते थे. पर अब ये स्थिति नहीं रही. सरकारी कालेजों को छोड़ भी दें तो तमाम सख्ती के बावजूद महाविद्यालयों में विद्यार्थियों का टोटा है. गाइड और अनसाल्वड की बदौलत विद्यार्थी पास हो रहे हैं. गाइड-अनसाल्व्ड, कोचिंग इंस्टीट्यूट, प्राइवेट कालेज और उच्च शिक्षा विभाग के गठजोड़ ने छत्तीसगढ़ को उच्च शिक्षा का ‘बैकयार्ड’ बना दिया है. जितना कचरा है यहां डंप किया जा सकता है. वैसे सरकार अन्य व्यावासायिक पाठ्यक्रमों में बाहर के विद्यार्थियों को प्रवेश देना चाहती है. पर जब इन शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता देखकर खुद राज्य के बच्चे बाहर जा रहे हैं तब इसे खामख्याली ही कहा जाना चाहिए.