रायपुर. यकीन नहीं आता कि इस आधुनिक युग में भी माहवारी (पीरियड्स) को लेकर देश में दकियानूसी परम्पराएं जीवित हैं. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों में आज भी माहवारी आने पर लड़कियों को घर से बाहर एक झोपड़ी में एकांतवास करना पड़ता है. उनकी तकलीफों को दूर करने के लिए मुम्बई की एक एनजीओ उनके लिए भवन बनवा रही है. मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले के कुछ गांवों से यह मामला सामने आया है.
दरअसल, इस कुरीति के पीछे यह मान्यता है कि स्त्रियों को माहवारी का दर्द इसलिए झेलना पड़ता है कि उन्होंने देवराज इंद्र के पाप को साझा किया था. इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा था. इससे मुक्ति पाने के लिए श्री विष्णु के निर्देश पर उन्होंने पृथ्वी, जल, वृक्ष एवं स्त्रियों को अपने पाप का अंश दे दिया था. महिलाएं इंद्र के पाप को साझा करने के लिए ही इस तकलीफ से गुजरती हैं. इस दौरान वे अछूत होती हैं. पूजा पाठ नहीं कर सकतीं, किचन में नहीं जा सकतीं, दूध, दही या अचार के बर्तन को नहीं छू सकतीं. पुरुषों को स्पर्श करने या बिस्तर पर सोने तक की मनाही होती है. माहवारी शुरू होने पर आज भी बड़ी संख्या में छात्राएं स्कूल छोड़ देती हैं.
बताया जाता है कि जिले के ग्राम पंचायत मोरचुल, गडड़ोमी और गट्टेपायली में मुम्बई की एनजीओ खेरवाड़ी सोशल वेलफेयर एसोसिएशन ने स्टरलाइट की मदद से युवा परिवर्तन योजना के तहत “महिला सुरक्षित विश्रांति गृह” के नाम पर शेडनुमा भवन बनवाए हैं. गांव की युवतियां और महिलाएं माहवारी के दिनों में यहां निर्वासित जीवन व्यतीत करती हैं. इससे पहले वे किसी कच्ची कुटिया में माहवारी का एक सप्ताह बिताया करती थीं. वहां उन्हें सांप बिच्छुओं का डर होता था. माहवारी समाप्त होने के बाद सिर धोने की परम्परा है. इसके बाद ही वे अपने घर में प्रवेश कर पाती हैं.
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि कुछ साल पहले भी माहवारी को लेकर इस तरह की कुप्रथाओं का मामला उभरा था. इसके बाद जिला प्रशासन ने महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर यहां जागरूकता अभियान चलाया था. इसके बाद कुछ समय तक मामले सामने आना बंद हो गए थे. पर मुम्बई की एनजीओ के यहां पदार्पण के बाद एक बार फिर ये मामला उछला है.
पंचायत पदाधिकारी कहते हैं कि एनजीओ ने ग्राम पंचायत से इसके निर्माण के लिए कोई अनुमति नहीं ली है. खेरवाड़ी सोशल वेलफेयर एसोसिएशन मुंबई और स्टरलाइट के द्वारा जनवरी में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के कुछ गांवों में इन भवनों का निर्माण किया गया है. इन भवनों के बाहर चूल्हे बना दिए गए हैं. बल्ब भी लगा है पर यहां बिजली नहीं है. कुछ साल पहले सीतागांव में ग्रामीणों ने कुटिया बनाई थी. खबर मिलने पर वहां प्रशासन ने कैंप लगाया था और लोगों को जागरूक किया था. संसदीय सचिव से लेकर महिला बाल विकास के अफसरों ने ग्रामीणों की काउंसिलिंग की थी.
गडड़ोमी के सरपंच धन्नू निर्गामी कहते हैं कि ग्रामीणों से बात करके एनजीओ ने निर्माण करवा दिया. वहीं मोरचुल के पंचायत सचिव लालसिंह खांडिया ने कहा कि ग्राम पंचायत में एनजीओ की ओर से आवेदन जरूर आया था लेकिन पंचायत की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई थी.
मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले के कलेक्टर एस जयवर्धन ने कहा कि गांवों में इस तरह का काम नहीं होना चाहिए. जरूरत पड़ी तो कार्रवाई की जाएगी। महिला बाल विकास विभाग की टीम इन गांवों में भेजी जाएगी.
Display Pic Credit The Swaddle, Banega Swasth India