दुर्ग. वर्तमान में छत्तीसगढ़ सहित पूरा मध्य भारत भीषण गर्मी की चपेट में है. लू चलने के साथ-साथ पारा पिछले एक सप्ताह से 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चल रहा है. विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले मौसम संबंधी बदलाव के कारण वैज्ञानिक यह अनुमान लगा रहे है कि इस वर्ष मानसून लगभग एक सप्ताह विलंब से आएगा. छत्तीसगढ़ में 20 जून तक मानसून के पहुंचने की प्रबल संभावना है. यही सही समय है जब हमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर खड़े कर लेने चाहिए.
ये जानकारी हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण एवं भूगर्भशास्त्री, डाॅ. प्रशांत श्रीवास्तव ने दी. डाॅ. श्रीवास्तव ने बताया कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान धान के खेत रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं. वर्षा जल को भूजल स्तर तक पहुंचाने का इससे बेहतर कोई कृत्रिम साधन नहीं है. परंतु शहरी आवासीय क्षेत्रों में हमें रेनवाॅटर हारवेस्ंिटग प्रणाली स्थापित करने हेतु तैयारी का यह सबसे उपयुक्त समय है.
डाॅ. श्रीवास्तव के अनुसार जहां पूर्व से ही रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित है और जहां स्थापित किया जा रहा है, इन दोनों ही स्थानों में हमें वर्षा के प्रारंभिक दो तीन दिनों के जल को हार्वेस्ट करने से बचना चाहिये. प्रारंभिक वर्षा के दिनों का बारिश का पानी एसिड रेन अर्थात् अत्यधिक अम्लीय होता है. इसका कारण ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक तापक्रम के कारण धूल, प्रदूषण, हानिकारक तत्वों के सूक्ष्म कण गर्म होकर ऊपर की ओर उठते हैं तथा वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं जैसे ही वर्षा का आरंभ होता है ये प्रदूषक तत्वों के कण बारिश के पानी के साथ नीचे आते हैं और रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली के द्वारा सीधे भूमिगत जल स्तर तक पहुंच कर इसे प्रदूषित कर देते हैं. यदि हमारा भूमिगत जल का भंडार एक बार प्रदूषित हो गया तो उसे कभी भी शुध्द नहीं किया जा सकता. अतः प्रत्येक नागरिक को इस संबंध में सावधानी बरतनी चाहिये.
घरों में स्थापित की जाने वाली रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग प्रणाली के विषय में प्रोफेसर प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि हम बंद पड़े अथवा चालू नलकूप का प्रयोग भी जल भरण हेतु कर सकते हैं. यह संरचना उन घरों के लिये उपयुक्त होती है जिनकी छत का क्षेत्रफल लगभग 150 वर्ग मीटर हो. पानी को छत से हैंडपंप तक 50 से 100 मिमी व्यास वाले पाईप एवं फिल्टर के माध्यम से पहुंचाया जाता है. सामान्यतः घरों की छत पर एकत्रित होने वाला पानी को रिचार्ज पिट (गड्ढा) द्वारा फिल्टर के माध्यम से भूजल स्तर तक पहुंचाया जाता है. यह रिचार्ज पिट सामान्यतः 4 से 6 फीट चौड़ा तथा 7 से 10 फीट गहरा बनाया जाता है. खुदाई के पश्चात् गड्ढे को नीचे से ऊपर की ओर 50 प्रतिशत गहराई तक 1 इंच गिट्टी इसके पश्चात् 34 प्रतिशत गहराई तक पौन इंच गिट्टी तथा ऊपर शेष बचे 16 प्रतिशत स्थान को रेत से भर दिया जाता है. रिचार्ज किए जाने वाले जल में मिट्टी के कण उपस्थित नही होना चाहिए.
रिचाॅर्ज पिट गोलाकार, वर्गाकार अथवा आयताकार किसी भी आकृति का हो सकता है. विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा के जल को भूमिगत जल में परिवर्तन के लिए उस क्षेत्र में उपस्थित मिट्टी एवं चट्टानों की प्रकृति मुख्य रूप से जिम्मेदार होती है, जिन क्षेत्रों में संरन्घ्र एवं पारगम्य चट्टाने एवं मिट्टी उपस्थित होती है वहां सतहीय जल के रिसने एवं भूमिगत प्रवाह हेतु रास्ता उपलब्ध होता है. ठीक इसके विपरीत असंरन्ध्री एवं अपारगम्य चट्टानों की उपस्थिति से सतहीय जल भूमिगत जल स्तर तक नहीं पहुंच पाता. अतः रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग के तकनीकों को अपनाये जाने के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्षा ऋतु की सम्पूर्ण अवधि में छत साफ रहें तथा वर्षा के दौरान प्रथम दो-तीन बारिश के पानी को व्यर्थ बहाने देना चाहिए क्योंकि यह जल प्रदूषित होता है. छतों से निकलने वाले पानी के शुध्दिकरण के लिए फिल्टर लगाना आवश्यक है. जल में बैक्टीरिया की उपस्थिति को समाप्त करने के लिए आवश्यक दवाईयां डालना आवश्यक है.
डाॅ. श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में शहरों में विद्यमान विभिन्न तालाबों/नहरों की तल में उपस्थित सिल्ट, गाद एवं काली मिट्टी की यदि बारिश से पूर्व सफाई करा दी जाये तो रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग की मात्रा में उल्लेखनीय वृध्दि हो सकती है. इस सबके लिए हमें केवल शासन पर निर्भर न रहते हुए स्वयं सेवी संगठनों एवं स्वयं के माध्यम से प्रयास करना होगा.