भिलाई. देश दुनिया में भले ही नारी सशक्तिकरण एवं फेमिनिज्म की बातें 21वीं सदी में परवान चढ़ रही हों पर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक वीरांगना ने लगभग 800 साल पहले ही इसकी नींव रख दी थी. सम्पूर्ण नारी जाति के सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने अपने इकलौते पुत्र की बलि दे दी थी. यह कहानी है बहादुर कलारिन के नाम से मशहूर कलावती की. एमजे कॉलेज के विद्यार्थियों ने शैक्षणिक भ्रमण के दौरान इस घटना के साक्ष्यों के दर्शन किये.
एमजे कॉलेज के 57 विद्यार्थियों का दल 22 दिसम्बर को शिक्षक प्रभारी सलोनी बासु, प्रवीण कुमार एवं दीपक रंजन दास के नेतृत्व में ग्राम चिरचारी पहुंचे. यहां गांव के बाहर स्थित माची को देखा. यह वही स्थान है जहां बैठकर बहादुर कलारिन कलावती शराब के साथ-साथ इत्र बेचा करती थी. कथा के अनुसार कलावती ने एक राजकुमार से गंधर्व विवाह किया था. फिर राजकुमार अपने राज्य को लौटा तो कभी लौट कर नहीं आया. कलावती ने समय आने पर एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया छछान छाड़ू. किशोरावस्था में जब उसे अपने पिता के बारे में पता चला तो वह तमाम राजाओं के प्रति घृणा करने लगा.
अपने पिता सहित सभी राजपरिवारों से घृणा के वशीभूत होकर छछान छाड़ू ने आसपास के सभी राजाओं पर आक्रमण कर दिया और 108 राजकुमारियों को बंधक बनाकर उठा लाया. उनसे वह धान कुटवाता और मजदूरी करवाता. कलावती को यह बात पसंद नहीं थी. उसने अपने पुत्र से राजकुमारियों को छोड़ने के लिए कहा. पर छछान छाड़ू ने उसकी एक नहीं सुनी. अंत में राजकुमारियों को मुक्त करने के लिए कलावती ने छछानछाड़ू को जहर दे दिया.
आज भी कलार समाज कलावती का इस बहादुरी के लिए सम्मान करता है और उसके शौर्य को पूजता है. कलावती एक सुन्दर कन्या होने के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चालन और युद्ध कला में भी निपुण थी. लगभग 800 साल पुरानी इस घटना के अनेक साक्ष्य आज भी चिरचारी और सोरर गांव में देखने को मिल जाते हैं. माता और पुत्र की अलग अलग समाधि बनी हुई है जिन्हें मंदिर का रूप दे दिया गया है. यहां साल में एक बार मेला भी लगता है.
बहादुर कलारिन की कथा सुनकर विद्यार्थी न केवल इतिहास से जुड़े बल्कि नारी जाति के सम्मान के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाली कलावति कलारिन के प्रति नतमस्तक भी हुए.