भिलाई। गोंडपारा निवासी एक 26 साल का युवक हाइटेक पहुंचा. उसे चक्कर आने के साथ ही एक उल्टी हुई थी. इसके बाद से ही वह बेहद कमजोरी महसूस करने लगा था. जुबान लड़खड़ाने लगी थी और एक तरफ के हाथ-पैर झूल से गए थे. जब मरीज को अस्पताल लाया गया तो मरीज तेजी से अपने शरीर पर नियंत्रण खोने लगा था. न तो वह बातों को समझ पा रहा था और न ही कुछ बता पा रहा था.
वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नचिकेत दीक्षित ने बताया कि ये ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण थे. तत्काल मरीज की सभी पैथोलॉजी जांच की गई. मरीज का बीपी कम 100/60 था, नब्ज भी कुछ धीमी 68 पर चल रही थी. मरीज का हाइपरटेंशन, डायबिटीज, सीएडी या सीवीए का कोई इतिहास नहीं था. ब्रेन का सीटी भी नार्मल था. सीटी एंजियो करने पर मस्तिष्क कुछ हिस्सों में कम घनत्व वाले क्षेत्र दिखाई दिए. यह इस्केमिक ब्रेन स्ट्रोक का मामला था.
डॉ दीक्षित ने बताया कि हालिया शोधों में यह बात सामने आई है कि पिछले कुछ वर्षों में कम उम्र के वयस्कों (18 से 45 वर्ष) में स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं. आईसीएमआर द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक किसी भी तरह के स्ट्रोक के पांच में से एक मामला अस्पताल में भर्ती होने योग्य होता है. कम आयु के मरीजों में पूर्णतः ठीक होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. शर्त केवल यही है कि मरीज को तत्काल सही उपचार प्राप्त हो जाए.
मरीज पर इलाज का अच्छा असर देखने को मिला. दूसरे ही दिन उसके लक्षण रिवर्स होने लगे थे. अब वह बातचीत को समझ सकता था और हाथ पैरों में भी जान लौटने लगी थी. तीसरे दिन तक मरीज की हालत में काफी सुधार हो चुका था. वह स्वयं उठने बैठने और सहारे के साथ चलने लगा था. बातचीत में भी काफी सुधार हो चुका था. रिकवरी को देखते हुए मरीज को हिदायतों के साथ डिस्चार्ज कर दिया गया.