भिलाई. हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में घुटनों की समस्या के लिए स्टेमसेल थेरेपी की सुविधा उपलब्ध हो गई है. इसके जरिये नष्ट हो रहे जोड़ों को पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है. इससे न केवल मरीज सर्जरी से बच सकता है बल्कि प्राकृतिक पूर्व स्थिति को प्राप्त कर सकता है. हालांकि मरीज को लाभ कितना होगा, यह उसकी स्थिति पर निर्भर करता है. अभी तक खराब घुटनों को ठीक करने का एकमात्र तरीका नी-रीप्लेसमेन्ट सर्जरी ही है.
हाइटेक के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ राहुल ठाकुर ने बताया कि भारत में लगभग 3.5 करोड़ लोग घुटनों से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त हैं. अधिकांश मामले डीजनरेटिव या अपक्षयी प्रकार के होते हैं. इनमें जोड़ों की हड्डियों पर मौजूद नर्म ऊतक नष्ट हो जाते हैं और हड्डियां आपस में रगड़ने लगती हैं. आरंभिक चरणों में दर्द होता और फिर जोड़ अकड़ जाते हैं. रोग प्रारंभ होने पर पहले वजन कम करने पर जोर दिया जाता है और दर्द निवारक औषधियों का उपयोग किया जाता है पर यह स्थायी हल नहीं है. जब जोड़ों की स्थिति काफी खराब हो जाती है तो इन्हें कृत्रिम जोड़ों से रीप्लेस कर दिया जाता है.
स्टेम सेल थेरेपी में स्टेम सेल्स को वांछित जगह पर इंजेक्शन के जरिए स्थापित कर दिया जाता है जो स्थानीय ऊतकों को एक बार फिर से निर्माण के लिए तैयार करते हैं और प्राकृतिक रूप से जोड़ों के बीच की नर्म ऊतक एक बार फिर बन जाते हैं और समस्या खत्म हो जाती है. आर्थराइटिस के पहले या दूसरे स्टेज में यह काफी प्रभावी है जिसमें रोगी को पूरा आराम मिल जाता है. तीसरे या चौथे स्टेज के डैमेज पर अभी इसके बहुत आशाजनक नतीजे नहीं आए हैं.
डॉ ठाकुर ने बताया कि स्टेम सेल थेरेपी का इस इंजेक्शन को एल्केम लैबोरेटरीज और बेंगलुरु की बायोटेक कंपनी स्टेंप्यूटिक्स ने ऑस्टियोआर्थराइटिस से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए व्यावसायिक स्तर तैयार किया है. अभी यह इंजेक्शन या टीका थोड़ा महंगा है पर वैकल्पिक चिकित्सा के खर्च को देखें तो यह एक बेहतर विकल्प है. साथ ही घुटने के प्राकृतिक अवस्था में आने पर मूवमेंट रेस्ट्रिक्शन्स जैसी कोई समस्या भी नहीं आती.