दुर्ग। शासकीय वावा पाटणकर कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुशील चन्द्र तिवारी ने आज कहा कि आत्महत्या समाज की एक भयावह सच्चाई है। हमें करुणा, सहानुभूति और विवेक के साथ अपने परिजनों, मित्रों तथा आसपास रहने वालों से जुड़े रहना चाहिए ताकि हम उनकी समस्याओं को भांप कर उनके साथ खड़े हो सकें। डॉ तिवारी महाविद्यालय के यूथ रेड क्रास तथा एनएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा “वर्किंग टुगेदर टू प्रिवेन्ट सुइसाइड” पर आयोजित वेबीनार को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज युवाओं के सामने कठिन चुनौतियां हैं। वे अपने करियर और भविष्य को लेकर आशंकित हैं। ऐसे समय में उनके मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि युवाओं की सोच को सही दिशा देने में यह वेबीनार उपयोगी साबित होगा।
वेबीनार की मुख्य वक्ता कन्सल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं वरिष्ठ काउंसलर डॉ शमा हमदानी ने आत्महत्या से जुड़े आंकड़ों को सामने रखते हुए इनकी विवेचना की। उन्होंने बताया कि देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या के आंकड़े महाराष्ट्र से आते हैं जिसे हम देश का साइसाइड कैपिटल भी कहते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक महाराष्ट्र में बीते वर्ष 16970 लोगों ने आत्महत्या की जबकि छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 7118 था। वहीं 108 एम्बुलेंस सर्विस के कॉल डेटा के मुताबिक प्रतिदिन औसतन 25 लोग आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं जिसमें से 94 फीसदी मामले ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं। उन्होंने आत्महत्या से जुड़े मिथकों पर प्रहार करते हुए कहा कि आत्महत्या के अधिकांश मामले भावातिरेक या आवेश में लिये जाते हैं। यदि ठीक समय पर हस्तक्षेप हो जाए तो इन्हें रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि आत्महत्या की बातें करने वालों को हमें गंभीरता से लेना चाहिए। इससे जुड़े संकेतों को भी हमें समझना होगा। सुशांत राजपूत ने भी आत्महत्या के संकेत दिए थे जिसे कोई पढ़ नहीं पाया।
वेबीनार के दूसरे मुख्य वक्ता क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ अबरार उज जमान खान ने ग्रामीण, विशेषक कृषक परिवारों में आत्महत्या के अधिक मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि आत्महत्या करने के साधन का इसमें बड़ा योगदान होता है। कृषक परिवारों में कीटनाशक के रूप में एक ऐसा हथियार उपलब्ध होता है जो आत्महत्या के विचारों को कार्यरूप देने में मदद करता है।
महाविद्यालय की एनएसएस प्रभारी डॉ यशेश्वरी ध्रुव ने आयोजन को छात्र जगत समेत सभी के लिए बेहद उपयोगी बताते हुए इन बातों को घर-घर पहुंचाने की बात कही। वेबीनार में बड़ी संख्या में शामिल बच्चों की समस्याओं का भी वक्ताओं ने समाधान किया।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक रंजन दास ने नए दौर में छात्रों को प्लान-बी पर काम करने की समझाइश दी। एक हाल ही में नौकरी गंवाने वाली एक छात्रा के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यदि आपको अपने शैक्षणिक योग्यता के आधार पर काम नहीं मिल रहा है तो आप दूसरे क्षेत्रों में जाने के विकल्प खुले रखें। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और निराशा आपको नहीं घेर पाएगी।
वेबीनार की संयोजक डॉ रेशमा लाकेश ने आरंभ में विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि आत्महत्या के मामले केवल एक व्यक्ति से जुड़े नहीं होते बल्कि अपने आसपास के पूरे परिवेश को प्रभावित करते हैं। शासन ने इसकी रोकथाम के कई उपाय किये हैं। हेल्प लाइन्स भी उपलब्ध हैं। इसकी जानकारी युवाओं तक पहुंचाने के लिए ही इस वेबीनार का आयोजन किया गया है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से अपील की कि वे वेबीनार के संवाद और संदेशों को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करें। एक भी जीवन यदि आपके प्रयासों से बच जाता है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। वेबीनार में भिलाई महिला महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ जेहरा हसन, न्यूट्रिशनिस्ट डॉ रिम्शा, वरिष्ठ अधिवक्ता शकील अहमद सिद्दीकी ने भी अपनी भागीदारी दी।