भिलाई। एकाएक वजन बढ़ना या घटना, थकान, दिल की धड़कनों में उतार चढ़ाव, नब्ज का धीमा या तेज होना, गर्भधारण में परेशानी, बच्चों का विकास रुक जाना, त्वचा में रूखापन जैसे लक्षणों का सीधा संबंध आपके शरीर की एक ग्रंथि थायराइड से हो सकता है। इलाज में विलम्ब होने पर यह हृदय रोग और मधुमेह जैसी समस्या को जन्म दे सकती है। यह कैंसर में भी तब्दील हो सकता है। यह कहना है हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल की मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ संध्या नेमा का।डॉ संध्या ने बताया कि भारत में इस समय थायराइड के लगभग 4.25 करोड़ ज्ञात मामले हैं। लगभग इतने ही लोग इलाज से दूर हैं जबकि इसकी जांच और इलाज दोनों सरलता से उपलब्ध है। थायराइड गले में स्थित एक अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह टी-3 और टी-4 नामक हारमोन बनाती है। थायराइड हार्मोन का असर शरीर के लगभग हर भाग पर पड़ता है। यह ग्रंथि शरीर के तापमान को नियंत्रित करती है और चयापचय क्रिया (मेटाबॉलिज्म) की एक प्रमुख नियंत्रक है। पिटुइटरी ग्रंथि टीएसएच का निर्माण करती है जो थायराइड को नियंत्रित करता है।
टी-3 और टी-4 की कमी से हाइपोथायराइडिज्म की समस्या पैदा होती है। एंडोक्राइन सोसायटी जर्नल में छपे एक शोध के अनुसार महिलाओं में पुरुषों की तुलना में हाइपोथायराइडिज्म का खतरा 10 गुना तक अधिक होता है। इलाज नहीं करने पर यह मधुमेह और दिल की बीमारी के खतरे को कई गुना बढ़ा देता है। इस शोध के अनुसार लंबे समय तक काम करने वालों को हाइपोथायराइड का खतरा ज्यादा होता है।
थायराइड की कमी से सुस्ती, ठंड लगना, याददाश्त का कमजोर होना, त्वचा में रूखापन (ड्राईनेस) और वजन बढ़ने की समस्या पैदा हो सकती है। इसके अलावा कब्ज, लो पल्स और महिलाओं में अनियमित मासिक चक्र की शिकायत हो सकती है। हाइपोथायराइडिज्म में शरीर का वजन तेजी से बढ़ने लगता है।
इसके उलट टी-3 और टी-4 अत्यधिक होने पर यह उपापचय को अतिउत्तेजित कर संवेदी तंत्रिका प्रणाली के प्रभाव को तीव्र करता है, इससे विभिन्न शारीरिक प्रणाली “तेज” हो जाती है। घबराहट, चिड़चिड़ापन, पसीना में वृद्धि, दिल का जोरों से धड़कना, हाथ का कांपना, चिंता, नींद उचटना, त्वचा का पतला होना, बालों का टूटना, ऊपरी बाहों और जांघों की मांसपेशियों में कमजोरी आना शामिल हैं। इसके अलावा आंत की गड़बड़ी, वजन का तेजी से गिरना, उल्टी, महिलाओं में मासिक स्राव कम होना, जैसे लक्षण हो सकते हैं। कोलेस्ट्रॉल लेवल भी तेजी से बढ़ने लगता है।
थायराइड की समस्या मां से बच्चे में जा सकती है इसलिए गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की थायराइड जांच जरूरी है। थायराइड हार्मोन की कमी से बच्चों में मानसिक विकास धीमा होना, उम्र के अनुपात में लंबाई न बढ़ना, महिलाओं में गर्भधारण में रुकावट आ सकती है।
डॉ संध्या ने बताया कि थायराइड की गड़बड़ी का सीधा संबंध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से है। इसलिए इसका इलाज सावधानी से किया जाना जरूरी है। इसकी जांच बेहद आसान है। रक्तजांच द्वारा टीएसएच, टी-3 और टी-4 के लेवल का पता लगाया जाता है। इसके आधार पर औषधि की मात्रा तय की जाती है।