भिलाई। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दिलीप रत्नानी ने कहा है कि भारतीय चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हों, उन्हें कोरोनरी आर्टरी डिजीज (कैड) का हाई रिस्क बना रहता है। इस मामले में सिर्फ रूस उससे आगे हैं। जबकि एशिया महाद्वीप में यदि हम अपनी तुलना चीन से करें तो हमें एक्यूट मायोकार्डियल इंफार्कशन का खतरा दस गुना अधिक होता है। डॉ रत्नानी यहां होटल ग्रांड ढिल्लन में आयोजित सतत् चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) के विशेष सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि हालांकि दिल की बीमारियों के संबंध में चार बड़े खतरों को हम सभी जानते हैं किन्तु ये खतरे भी केवल 50 फीसदी मामलों पर ही फिट बैठते हैं। शेष लोगों को दिल की बीमारी क्यों होती है इसके बारे में अब तक कुछ नहीं पता है।
आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ रत्नानी ने कहा कि हृदय संबंधी रोग पुरुषों की तरह ही स्त्रियों को भी सताते हैं। यह मांसाहारी और शाकाहारी दोनों ही लोगों को अपने चंगुल में लेता है। दुनिया की बात करें तो रशियंस को हृदय संबंधी विकार सबसे अधिक सताते हैं। भारत दूसरे नंबर पर है। जापानियों को हृदय रोग सबसे कम परेशान करते हैं।
हृदयरोगों पर काबू संभव
डॉ रत्नानी ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि कैड की रोकथाम संभव होने के बावजूद इससे इतनी मौतें प्रतिवर्ष हो जाती हैं। कैड एक ऐसा मर्ज है जो धीरे-धीरे अपने पांव जमाता है। इसके लक्षण भी दिखाई पडऩे लगते हैं। बावजूद इसके अधिकांश लोग दौरा पडऩे के बाद ही चिकित्सक के पास पहुंचते हैं।
कैड के क्या हैं लक्षण
कोरोनरी आर्टरी डिजीज का आरंभ कोलेस्ट्रॉल या प्लाक के धीरे-धीरे धमनियों में जमने से प्रारंभ होता है। समय के साथ यह प्लाक धमनियों को सिकोड़कर रक्त प्रवाह को रोकने लगता है। पर इस स्थिति के आने से बहुत पहले वह अपने लक्षण दिखाने लगता है जिसमें सांस भर जाना, थोड़ी सी मेहनत से सीने में दर्द होना तथा थोड़ा आराम करने पर ठीक हो जाना शामिल है।
भारतीयों को खतरा अधिक
डॉ रत्नानी बताते हैं कि भारतीयों को कैड का खतरा रशियंस के बाद सबसे अधिक है। यूके की तुलना में हमें यह खतरा तीन गुना तथा चीन की तुलना में 10 गुना अधिक है। भारतीय अपने देश में रहें या किसी दूसरे देश में, उन्हें यह खतरा बना रहता है। इसकी वजह संभवत: होमोसिस्टीन लेवल का अधिक होना है। इसकी वजह से शरीर में टाक्सिंस अधिक हो जाता है।
बचाव ही श्रेष्ठ उपाय
डॉ रत्नानी ने बताया कि हृदय रोगों के मामले में बचाव ही श्रेष्ठ उपाय है। इसके लिए आपको अपने स्वास्थ्य को लेकर सावधान रहने की जरूरत है। अपने लाइफ स्टाइल और डाइट में सुधार कर आप हृदय रोग के खतरों को कम से कम कर सकते हैं।
ये हैं खतरे के सूचक
1 बीएमआई का 25 से अधिक होना
2 कमर का घेरा 90 सेमी से अधिक होना
3 कोलेस्ट्राल (एलडीएल) का अधिक होना
4डायबिटीज
इलाज का गोल्डन आवर
उन्होंने बताया कि दिल का दौरा पडऩे पर प्रथम घंटा इलाज शुरू करने के लिहाज से गोल्डन आवर माना जाता है। जहां आसपास हार्ट केयर फैसिलिटी न हो वहां मरीज की थ्रांबोलाइसिस की जा सकती है तथा इसके बाद उसे हार्ट केयर फैसिलिटी तक पहुंचाया जा सकता है।
सीएमई के दूसरे वक्ता कार्डियो थोरासिक सर्जन डॉ निमिष राय ने बच्चों पर की गई बीटिंग हार्ट सर्जरी का वीडिया प्रजेन्टेशन दिया। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने तीन किलोग्राम वजन की एक तीन-चार माह की बच्ची का एएसडी बंद किया। उन्होंने 9 साल के एक अन्य मरीज की भी चर्चा की।
सीएमई के तीसरे एवं अंतिम वक्ता डॉ गिरीश सदाम प्रभाकर ने कैंसर की चिकित्सा में विकिरण चिकित्सा की नवीनतम तकनीकों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि रैपिड आर्क लीनियर एक्सीलेटर की मदद से अब केवल रोगी अंग को कम से कम समय में आवश्यक विकीरण देना संभव हो गया है। यही नहीं ब्रेकीथेरेपी द्वारा रोगी अंग को बहुत करीब से विकीरण देना संभव है।
इस अवसर पर भिलाई इस्पात संयंत्र के चिकित्सा निदेशक प्रभारी डॉ सुबोध हिरेन, निदेशक डॉ शैलेन्द्र जैन, बीएसआर समूह के चेयरमैन डॉ एम.के. खण्डूजा, अपोलो बीएसआर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ ए.पी. सावंत सहित भिलाई-दुर्ग के चिकित्सा विशेषज्ञगण उपस्थित थे।