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दर्द से स्थायी राहत दिलाता है ज्वाइंट रिप्लेसमेंट

Nov 5, 2014

dr-saurav-shirguppeभिलाई। अपोलो बीएसआर अस्पताल, भिलाई के जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन एवं सुपर स्पेशलिस्ट डॉ सौरभ शिरगुप्पे ने कहा कि अधिक वजन और कमजोर हड्डियों के कारण बढ़ती उम्र में शरीर का भार ढोने वाले जोड़ों में दर्द होने लगता है। यह दर्द लगभग स्थायी होता है जिसके कारण जीवन की गुणवत्ता कम होने लगती है। चलना-फिरना, बैठना-उठना मुश्किल हो जाता है। व्यक्ति लाचार होकर दिन भर बैठा या लेटा रह जाता है जिससे समस्या और बढ़ जाती है।  वे यहां एमजे कालेज में स्वास्थ्य पर आयोजित सेमिनार को मुख्य वक्ता की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। 
स्लाइड शो द्वारा स्थिति को विस्तार से समझाते हुए वे कहते हैं कि आरंभिक अवस्था में सिंकाई और मालिश से थोड़ी बहुत राहत मिल जाती है। वजन कम करने तथा फिजियोथेरेपी से भी कुछ राहत मिलती है किन्तु दर्द बार बार लौट कर आ जाता है। जोड़ों को जब स्थायी नुकसान हो जाता है तो इनमें से कोई भी तरीका काम नहीं करता। पेन किलर्स का हेवी डोज दर्द से राहत तो देता है पर जोड़ फिर भी काम नहीं करते। लंब समय तक रोग की उपेक्षा करने पर जोड़ों की स्थिति और खराब हो जाती है। हड्डियां घिस जाती हैं, कार्टिलेज खराब हो जाते हैं, पैर टेढ़े हो जाते हैं। इसके साथ ही इलाज जटिल और महंगा हो जाता है। इसलिए जितनी जल्दी संभव हो सर्जरी करा लेनी चाहिए। घुटना प्रत्यारोपण ही इसका स्थायी इलाज है जिससे मरीज रोग से पहले वाली अवस्था को लौट जाता है। दर्द से पूरी तरह आराम मिल जाता है और वह पहले की तरह ही काम काज कर सकता है।
shirguppeअपने करियर में घुटनों का जोड़ बदलने (ज्वाइंट रिप्लेसमेंट) के हजारों आपरेशन कर चुके डॉ शिरगुप्पे बताते हैं कि कुछ साल पहले तक इस सर्जरी की सुविधा सिर्फ चुनिंदा महानगरों तक सीमित थी। कामकाज छोड़कर किसी महानगर में जाकर यह आपरेशन करवाना महंगा तो था ही, अधिकांश लोगों के लिए समय निकालना ही असंभव था। पर अब यह सुविधा भिलाई के अपोलो बीएसआर अस्पताल में उपलब्ध है।
डॉ शिरगुप्पे ने बताया कि पहले जहां इस तरह के आपरेशन में लंबा समय लगता था और काफी रक्तस्राव भी होता था वहीं अब अत्याधुनिक तकनीक से यह आपरेशन एक घंटे से भी कम समय में सम्पन्न हो जाता है। रोगी कुछ ही दिनों में चलने फिरने लगता है तथा एक माह में पुरी तरह रिकवर कर लेता है। हालांकि उसे कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। वे अपने मरीजों को घुटना प्रत्यारोपण के बाद पालथी मारने या इंडियन टायलेट यूज करने से परहेज करने की सलाह देते हैं।
आरंभ में संधान संस्था के प्रमुख प्रो. डीएन शर्मा ने आयोजन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कभी संधिवात बुढ़ापे की बीमारी मानी जाती थी किन्तु अब 45 पार के लोग भी इसका शिकार होने लगे हैं। यह व्यक्ति की उम्र का वह हिस्सा है जब उसकी उत्पादकता चरम पर होती है। ऐसे समय में इन विकारों से न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि राष्ट्र के विकास में वे अपना योगदान करने से भी वंचित रह जाते हैं। इसलिए इस बीमारी से बचाव एवं उपचार के प्रति जागरूकता लाना ही इस सेमिनार का उद्देश्य है। इसका आयोजन बीएड एवं नर्सिंग छात्राओं के बीच इसलिए किया गया है कि वे अधिक से अधिक लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचा सकें।
अंत में एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ कुबेर गुरुपंच ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि कालेज की डायरेक्टर श्रीलेखा विरुलकर के विशेष आग्रह पर संडे कैम्पस डॉट कॉम ने बीएड और नर्सिंग छात्राओं के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि वक्ताओं ने एक तरफ जहां भारतीय जीवन पद्धति के एक महत्वपूर्ण हिस्से को रेखांकित किया है वहीं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विकल्पों के बारे में भी सारगर्भित जानकारी दी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सेमिनार में उपस्थित सभी लोगों को इसका लाभ मिलेगा और वे यह जानकारी अपने आगे बढ़ाएंगे।

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