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सौ साल बाद खुलेंगे कोणार्क मंदिर के पट

Nov 10, 2014

konark sun templeहरिप्रसाद भारती/कोणार्क के सूर्य मंदिर के पट 100 साल बाद एक बार फिर खुलने जा रहे हैं। इस मंदिर की लाखों तस्वीरें दुनिया भर में उपलब्ध हैं पर सब बाहर की हैं। इसके भीतर क्या है, कोई नहीं जानता। रथाकार इस मंदिर के पहिए तो दुनिया भर में मशहूर हैं। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि 1913 में अंग्रेजों द्वारा बंद किए गए हिस्से के दोबारा खुलने की संभावना कम ही है।
1250 में बने इस मंदिर को 1913 में बंद कर दिया गया था। दरअसल मंदिर बेहद जर्जर अवस्था में था और मुख्य मंडप के पत्थर गिरने लगे थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा 1913 में मंदिर को बचाने की कवायद शुरू की गई थी लेकिन तब ये काम काफी मुश्किल लग रहा था।
सौ साल की कोशिशों के बाद मंदिर अब पहले से कहीं बेहतर स्थिति में है और इसे फिर से जनता के लिए खोल दिया जाएगा। ओडीशा (उड़ीसा) के पुरी में स्थित इस बेहद प्रसिद्ध मंदिर को गंग वंश के राजा नरसिंह देव ने बनवाया था। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट पत्थर से बना हुआ है।
इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था। यह मंदिर जितना प्रसिद्ध है उतना ही रहस्यमयी भी। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के कारण यहां समुद्री जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।
शिखर का चुम्बक – कहा जाता है कि इस मंदिर के शिखर में चुंबकीय शक्ति थी जिसके कारण ये हादसे होते थे। बाद में मंदिर के चुंबकीय भाग को हटा दिया गया था। इन हादसों के कारण अंग्रेजों ने इसे ब्लैक पैगोडा नाम दिया था। कहा जाता है कि इस चुंबकीय पत्थर के कारण मंदिर सुरक्षित था। इस पत्थर के हटने से दीवारों ने अपना संतुलन खो दिया और मंदिर नष्ट होने लगा। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है।
भगवान सूर्य का रथ- कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव (अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। अब इनमें से एक ही घोड़ा बचा है। इस रथ के पहिए, जो कोणार्क की पहचान बन गए हैं, बहुत से चित्रों में दिखाई देते हैं। ये बारह चक्र बारह महिनों को प्रतिबिंबित करते हैं जबकि प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है जो आठ पहरों को दर्शाते हैं।
मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं। तीसरे मंडप में जहां मूर्ती थी अंग्रेजों ने रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बंद करवा दिया था, ताकि वह मंदिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए। इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं:
बाल्यावस्था-उदित सूर्य- 8 फीट, युवावस्था-मध्याह्न सूर्य- 9.5 फीट, प्रौढावस्था-अस्त सूर्य-3.5 फीट
ब्राह्मण और बौद्धों का संघर्ष – इसके प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। यह सम्भवत: तत्कालीन ब्राह्मण रूपी सिंहों का बौद्ध रूपी हाथियों पर वर्चस्व का प्रतीक है। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। ये 28 टन की 8.4 फीट लंबी 4.9 फीट चौड़ी तथा 9.2 फीट ऊंची हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार कर लिया है। ये 10 फीट लंबे व 7 फीट चौड़े हैं। मंदिर सूर्य देव की भव्य यात्रा को दिखाता है। इसके के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव के लिये नृत्य किया करतीं थीं। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की आकृतियां भी ऐन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं। इनकी मुद्राएं कामुक हैं और कामसूत्र से ली गई हैं। मंदिर अब अंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां की कलाकृतियों का एक संग्रह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित है। आज इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। इसका कारण वास्तु दोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे।
श्रीकृष्ण के पुत्र ने रखी आधारशिला – पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कुष्ठ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न कर रोगमुक्त हो गए। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभाग नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने मित्रवन में एक मंदिर बनाया और इस मूर्ति की स्थापना की।
कालापहाड़ का आक्रमण – काला पहाड़ एक ब्राह्मण था, जो मुसलमान बन गया और ‘सुलेमान कर्रानीÓ (1565-1572 ई.) की सेना का सेनापति बन गया। 1568 में उसने उड़ीसा पर चढ़ाई की और राजा को परास्त कर पुरी के जगन्नाथ मन्दिर को लूट लिया। उसने कोणार्क मंदिर के कलश, पद्म-ध्वजा, कमल-किरीट और ऊपरी भाग को तोड़ दिया। उसने असम के कामाख्या मन्दिर को भी नष्ट कर दिया। 1583 में वह अकबर की फौजों से हार गया और मारा गया।

dharmapadaमंदिर निर्माण की दंतकथा – गंग वंश के राजा नृसिंह देव प्रथम ने मंदिर निर्माण का आदेश दिया। बारह सौ वास्तुकारों और कारीगरों की सेना ने बारह वर्षों की अथक मेहनत से इसका निर्माण किया। राजा अपने राज्य के बारह वर्षों की कर-प्राप्ति के बराबर धन खर्च कर चुके थे। उनका सब्र जवाब देने लगा। उन्होंने एक निश्चित तिथि तक कार्य पूर्ण करने का कड़ा आदेश दिया। वास्तुकार अंतिम केन्द्रीय शिला को स्थापित नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में मुख्य वास्तुकार बिसु महारणा के बारह वर्षीय पुत्र धर्म पाद ने उनकी समस्या हल कर दी और स्वयं चंद्रभागा में कूद गया।

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