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अपोलो बीएसआर ने साबित की अपनी उपयोगिता

Jan 24, 2015

dr rekha ratnaniभिलाई। अपोलो बीएसआर अस्पताल ने एक छत के नीचे मल्टीस्पेशालिटी सुविधाएं उपलब्ध कराने का उपयोगिता एक बार फिर साबित कर दी है। हाल ही में यहां तीन प्रसूताओं सहित एक ऐसी महिला की जान बचाई गई जिनका रक्तस्राव नहीं रुक रहा था। इन मरीजों का रक्तस्राव रोकने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ ही कैथलैब और रेडियोलॉजिस्ट्स की भी मदद ली गई। किसी सामान्य प्रसूति केन्द्र में यह संभव ही नहीं था। बल्कि इनमें से तीन मरीज दूसरे अस्पतालों से ही यहां लाई गई थीं। read more
अपोलो बीएसआर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रेखा रत्नानी ने बताया कि प्रसव के दौरान होने वाले अनियंत्रित रक्तस्राव के कारण सर्वाधिक मौतें होती हैं। सामान्य प्रसव के बाद से लेकर 24 घंटे तक यदि आधा लिटर एवं सिजेरियन से प्रसव के बाद पहले 24 घंटे में एक लीटर से ज्यादा खून बह जाता है तो प्रसूता की जान को खतरा पैदा हो जाता है। यह खतरा और भी बढ़ जाता है अगर मरीज एनीमिक हो, उसे डायबिटीज या हाईब्लड प्रेशर हो या फिर जुड़वां बच्चे हों।
आम तौर पर प्रसव उपरांत रक्तस्राव ज्यादा होने पर खास तरह की दवाइयों का उपयोग किया जाता है। आम तौर पर स्थिति बिगडऩे पर बच्चेदानी को सिजेरियन के दौरान ही निकाल दिया जाता है। लेकिन आजकल नई तकनीकों के उपयोग से बच्चेदानी निकालने से बचा जा सकता है। इसमें से प्रमुख हैं यूटेराइन आरटरी को बांधना, ओवेरियन आरटरी को बांधना अथवा विशेष तरह के टांके – बी-लिंच द्वारा भी रक्तस्राव रोका जा सकता है। लेकिन अगर कैथलैब की सुविधा हो तो विशेष ट्रेनिंग प्राप्त करने के पश्चात यूएई एवं आईआईएएल टेकनीक से काफी हद तक रक्तस्राव को रोका जा सकता है।
यूटेराइन आरटरी एम्बोलाइजेशन
uterine artery embolizationयह एक अत्याधुनिक प्रक्रिया है जिसमें एक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट या कार्डियोलॉजिस्ट की मदद से पैर की फीमोरल नस में कैथेटर द्वारा डाई डालकर रक्तस्राव को पहचाना जाता है या फिर फाइब्रायड्स या ज्यादा मासिक रक्तस्राव के मामलों में यूटेराइन आरटरी के अंदर खास तरह का ग्लू डालकर उसे ब्लाक कर दिया जाता है। इससे गर्भाशय को रक्त की आपूर्ति रुक जाती है एवं आपात स्थिति में यह प्रसव उपरांत होने वाले रक्तस्राव को रोकने में बहुत कारगर होता है। इसके लिए डिजिटल कैथलैब का होना अत्यावश्यक होता है।
इंटरनल इलियाक आरटरी लाइगेशन
internal iliac artery ligationहमारे दिल से निकलने वाली मुख्य धमनी नीचे चलकर दो हिस्सों में विभक्त हो जाती है। आगे चलकर यह फिर आंतरिक और बाह्य में विभाजित होती है। आंतरिक धमनी ही वह मुख्य धमनी होती है जिसमें से गर्भाशय एवं नीचे के अंगों के लिए धमनियां निकलती हैं। प्रसव उपरांत होने वाले रक्तस्राव की स्थिति में अगर इसे विशेष तकनीक से बंद कर दिया जाए तो रक्त बहना बंद हो जाता है एवं मरीज की जान बचाई जा सकती है। इसमें बच्चेदानी निकालने की जरूरत नहीं पड़ती। इसे सीखने के लिए विशेष प्रशिक्षण लेना पड़ता है लेकिन यह मातृत्व मृत्यु दर को कम करने में बहुत ही ज्यादा कारगर साबित होती है।
पेट में जम गया था 5-6 लीटर खून
डॉ रेखा रत्नानी ने बताया कि पहली मरीज दुर्ग जिले के ही एक छोटे से गांव से थी। उसकी पहली डिलीवरी सिजेरियन से हुई थी। दूसरा बच्चा भी पूर्व नियोजित सीजेरियन केस था। सही समय पर बच्चे का प्रसव करा दिया गया। इसके दो तीन दिन बाद ही मरीज का पेट फूलने लगा और शरीर सफेद पडऩे लगा। जब उसे अस्पताल लाया गया तो उसका रंग सफेद पड़ चुका था और नब्ज भी गायब थी। मरीज के यहां पहुंचने से पहले ही हमने पूरी तैयारी कर ली थी। मरीज को तत्काल आईसीयू में शिफ्ट किया गया। सोनोग्राफी से पता चला कि उसके पेट में 5-6 लिटर खून इक_ा हो गया था। गर्भाशय से रिस रहा यह खून उसके किडनी के लेवल तक जम चुका था। उस नस को ढूंढ निकालना मुश्किल था जिससे खून रिस रहा था। हमने अत्याधुनिक यूएई तकनीक को प्रयोग में लाने का फैसला किया। इसके तहत हमने पैर की नस से कैथेटर सरकाया और डाई की मदद से उस नस को ढूंढ निकाला जिससे खून रिस रहा था। फिर कैथेटर के जरिए ही हमने एक खास तरह के ग्लू से उसे सील कर दिया। दो हफ्ते में ही मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो गई और अपने घर लौट गई। जाते जाते मरीज ने डॉक्टर को अपनी दूसरी मां की संज्ञा भी दी।
सफेद पड़ चुकी थी मरीज, नब्ज थी गायब
दूसरा केस राजनांदगांव से आया था। डिलीवरी के बाद 27 वर्षीया इस मरीज का रक्तस्राव रुक ही नहीं रहा था। इसपर उसकी बच्चेदानी निकाल दी गई किन्तु रक्तस्राव इसके बाद भी नहीं रुक रहा था। मरीज का रंग सफेद पड़ चुका था और उसकी नब्ज भी गायब थी। हमने मरीज को यहां रिसीव करने की पूरी तैयारी कर ली तथा सभी विशेषज्ञों की उपस्थिति सुनिश्चित कर ली। ब्लड बैंक भी पूरी तरह तैयार था। मरीज जब यहां पहुंची तो वह शॉक की स्थिति में थी। ऐसे केसेस में गर्भाशय तक खून ले जाने वाली नसों को बंद करना ही एकमात्र तरीका रह जाता है। मरीज को एक के बाद एक 24 यूनिट रक्त और ब्लड कम्पोनेन्ट्स चढ़ाया गया। इसके साथ ही आईआईएएल की गई।

पीरियड्स के दौरान भारी रक्तस्राव
खुर्सीपार से आई 35 साल की इस मरीज की जान भी यूएई तकनीक से ही बचाई जा सकी। उसे पीरियड्स के दौरान भारी रक्तस्राव होता था। दरअसल उसके गर्भाशय में एक गोला (फाइब्रायड) था जो काफी बड़ा हो चुका था। चूंकि मरीज की उम्र 40 वर्ष से कम थी इसलिए गर्भाशय निकाल देना उचित नहीं था। यूएई तकनीक का उपयोग करते हुए पैर की नस से फाइब्रायड तक पहुंच बनाई गई और उस नस को सील कर दिया जिससे फाइब्रायड को रक्त मिल रहा था। मरीज को तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

बेहद मुश्किल था इस मरीज को बचाना
डॉ रत्नानी ने बताया कि चौथा मरीज जब उनके पास पहुंचा तो उसकी हालत काफी नाजुक थी। उसके दिल का वाल्व सिकुड़ चुका था, फेफड़ों की स्थिति भी ठीक नहीं थी और लगातार रक्तस्राव होने से पूरा शरीर निचुड़ गया था। मरीज के यहां पहुंचते ही उसे तत्काल ओटी में शिफ्ट किया गया। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दिलीप रत्नानी एवं एनेस्थेटिस्ट डॉ एस दास के साथ मिलकर वे इलाज में जुट गईं। मुश्किल यह थी कि चूंकि मरीज का वाल्स सिकुड़ा हुआ था इसलिए दिल काम नहीं कर रहा था और ज्यादा रक्त चढ़ाना संभव नहीं था। हमें किसी तरह जल्द से जल्द रक्तस्राव को रोकना था। हमने तत्काल आईआईएएल तकनीक से रक्तस्राव को रोक दिया।

रक्तस्राव से सर्वाधिक मौतें
अपोलो बीएसआर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रेखा रत्नानी ने बताया कि 2014 के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में मातृत्व मृत्यु दर 230 प्रति लाख है। इसमें सर्वाधिक मौतें अत्यधिक रक्तस्राव एवं समय पर विशेषज्ञ की मदद नहीं मिलने से होती हैं। सबसे अच्छी स्थिति केरल की है जहां प्रति लाख मरीज केवल 22 की मौत प्रसव जनित रक्तस्राव की वजह से होती है। इसलिए इसे रोकने की तकनीक की अहमियत और बढ़ जाती है। यूएई और आईआईएएल इस दिशा में बेहद कारगर है। यह प्रक्रिया सभी स्त्री एवं प्रसूती विशेषज्ञों को सीखनी चाहिए। इससे न केवल मरीजों की जान बचाई जा सकती है बल्कि कम उम्र में ही बच्चेदानी निकालने को टाला जा सकता है। यह तकनीक उन लोगों में भी कारगर है जिन्हें अत्यधिक माहवारी की शिकायत है एवं वे 40 वर्ष से कम उम्र की हैं।

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