• Sun. May 5th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

फिटनेस के चक्कर में न बनें अपने दुश्मन

Feb 19, 2015

avoid injury during exercise, dr anupam lalभिलाई। फिटनेस लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। अज्ञानी और अल्पज्ञानी लोग फिटनेस मंत्रा दे रहे हैं। व्यवसायीकरण के चलते एक ही लाठी से बहुत सारे लोग समूह में हकाले जा रहे हैं। इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहा है। लोग घायल होकर हमारे पास आ रहे हैं। इसमें जिम जाने वालों से लेकर योगा करने वाले सभी शामिल हैं। बेहतर हो कि वे घायल होकर हमारे पास आने के बजाय स्पोटर््स, जिम या योगा ज्वाइन करने से पहले ही हमारी राय ले लें। यह कहना है कि जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र के अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ अनुपम लाल का। read more
dr anupam lalसंडे कैम्पस से अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए डॉ लाल बताते हैं कि अपने छात्र जीवन में खेलकूद के दौरान लगने वाली चोटों ने ही उन्हें ऑर्थोपेडिक्स की तरफ आकर्षित किया। भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मी उनके पिता एस के लाल ने उन्हें भरपूर प्रोत्साहन दिया। जबलपुर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस के बाद उन्होंने ऑर्थोपेडिक्स में पीजी किया। इसके बाद वे देश के एकमात्र मान्यताप्राप्त स्पोट्र्स मेडिसिन सेन्टर एनएस-एनआईएस पटियाला से पीजी डिप्लोमा किया।
डॉ लाल ने बताया कि गलत खेल का चयन, त्रुटिपूर्ण स्पोटर््स गियर, बेमेल जूतों तथा ट्रैक की वजह से बहुत सारी प्रतिभाएं समय से पहले ही खेलों से संन्यास लेने के लिए बाध्य होती हैं। इसके अलावा जिम में अप्रशिक्षित ट्रेनर के चलते कई लोग जाते तो फिटनेस के लिए हैं किन्तु गंभीर रूप से जख्मी होकर डाक्टर के पास पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक 51 वर्षीय महिला लेग-रेज एक्सरसाइज करते समय अपने हिट जाइंट को जख्मी कर बैठीं। इस जख्म से उबरने में उन्हें काफी वक्त लग गया। इसी तरह एक ही झटके में बाबा रामदेव बनने की कोशिश में जोर लगाकर भस्त्रिका करने की कोशिश में एक व्यक्ति स्लिप डिस्क का शिकार हो गया। निर्दोष सी लगने वाली साधारण कसरतें भी जोड़ों, लिगामेंट्स और नसों को चोटिल कर सकती हैं। लोगों को अपाहिज कर सकती हैं।
अलग-अलग है सबका शरीर
डॉ लाल ने बताया कि आम लोगों की बात छोड़ भी दें तो आज अधिकांश ट्रेनर्स को पता नहीं है कि प्रत्येक इंसान का शरीर अलग-अलग तरह का होता है। मोटे तौर पर हम इन्हें तीन रूपों में बांट सकते हैं। एक्टोमॉर्फिक – दुबला पतला, सींकिया सा। मेसोमॉर्फिक – मांसल गठीला सुडौल शरीर। एंडोमॉर्फिक – गोल मटोल शरीर। एक्टोमॉर्फिक जहां मोटा होने को तरसता है वहीं एंडोमॉर्फिक अपने शरीर को सुडौल बनाने की जुगत में लगा रहता है। इसी तरह शरीर के फाइबर्स भी अलग अलग तासीर के होते हैं। स्लो ट्विच फाइबर्स वालों के लिए जहां सहनशक्ति (एन्ड्यूरेंस) वाले खेल बेहतर होते हैं वहीं फास्ट ट्विच फाइबर्स वालों के लिए फास्ट गेम्स अच्छे होते हैं। स्लो ट्विच फाइबर्स वालों के लिए लंबी दूरी की दौड़, बास्केटबाल आदि बेहतर होते हैं वहीं फास्ट ट्विच फाइबर वाले स्प्रिंट, पावर गेम्स, बाक्सिंग आदि के लिए ज्यादा फिट होते हैं।
फिटनेस ट्रेनर कर रहे घायल
व्यवसायीकरण के चलते फिटनेस ट्रेनर इन्हें गलत सलाह देते हैं, अभ्यर्थी को सब्ज बाग दिखाते हैं। कठिन ट्रेनिंग शेड्यूल देते हैं, पेन किलर्स, प्रोटीन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स देते हैं। हॉरमोन के इंजेक्शन भी देते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के लिए यह सब जरूरी हो सकता है किन्तु बिना चिकित्सक की सलाह के ऐसा करना स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। लोग जाते हैं फिटनेस के लिए और घायल होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं।
योगा भी कर सकती है घायल
डॉ लाल ने बताया कि टीवी पर देखकर योगा करने वाले या सामूहिक शिविरों में योगा सीखने वाले भी दरअसल खतरों से खेल रहे होते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे अनेक लोगों का वे इलाज कर चुके हैं जो योगा करते समय घायल हुए। किसी ने जबरदस्ती पैरों पर पैर चढ़ाने की कोशिश की और घुटना-कूल्हा जख्मी कर लिया तो किसी ने एकाएक भस्त्रिका शुरू कर अपनी रीढ़ को क्षतिग्रस्त कर लिया। कमजोर और भुरभुरी हड्डियों वाले जब कठिन योग मुद्राओं को करने की कोशिश करते हैं तो वे अपने शरीर का फायदा कम और नुकसान ज्यादा कर रहे होते हैं।

इनकी बहुत जरूरत
डॉ अनुपम लाल ने बताया कि खेलकूद की गतिविधियां दिन-प्रतिदिन नई ऊंचाइयों को छू रही हैं। ऐसे में कुछ बुनियादी सुविधाओं का राज्य में विकास किया जाना नितांत जरूरी है। स्पोटर््स मेडिसिन के लिए फिलहाल देश में एक ही मान्यता प्राप्त संस्थान है। ऐसे और भी संस्थान होने चाहिए जहां लोगों को प्रशिक्षित किया जा सके। इसके अलावा प्रत्येक राज्य के पास अपना एंटी डोपिंग लैब होना चाहिए। बायोमेकानिक्स की दिशा में भी काफी काम किए जाने की जरूरत है ताकि खिलाडिय़ों को घायल होने से बचाया जा सके। सबसे बड़ी जरूरत है खेल प्रशिक्षकों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण देना ताकि वे खिलाड़ी की शरीरिक बनावट एवं उसकी क्षमताओं को पहचान कर उसका विकास कर सकें। इन सबके साथ जरूरी है प्रिवेन्शन और रिहाबिलिटेशन सेन्टर्स का विकास करना।

Leave a Reply