भिलाई। शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाला दर्द क्रिस्टल्स तथा ब्लाकेज का कारण होता है। मोटे तौर पर यह बात सही भी है किन्तु रोगोपचार की अलग अलग पद्धतियों में इसका इलाज करने के अलग-अलग तरीके हैं। एलोपैथी में जहां कैथेटर की मदद से धमनियों-शिराओं में प्रवेश कर ब्लाकेज को हटाया जाता है या सिकुडऩ को दूर करने स्टेंट लगाए जाते हैं वहीं एक्यूप्रेशर रिफ्लेक्स पाइंट्स पर प्रेशर-रिलैक्स तकनीक अपनाकर इन्हें दूर करने का दावा करता है। अन्य पद्धतियों में इन थक्कों या ब्लाकेज को गला देने की कोशिश की जाती है। रिटायर्ड लाइफ में एक्यूप्रेशर को जनसेवा का माध्यम बनाने वाले पूर्व पीटीआई डॉ डीओ सिरसाट बताते हैं कि हालांकि एक्यूप्रेशर तकनीक से उनका परिचय 1980 के दशक में ही हो गया था किन्तु वे इसे पूर्णकालिक नहीं कर पा रहे थे। एक्यूप्रेशर से उनका परिचय भी श्रीलंका से आई एक विपश्यना साधिका ने करवाया। वे तीन दिन के लिए उनके घर पर ठहरी थीं। उन्हीं की प्रेरणा से बाद में उन्होंने विपश्यना की साधना भी की। read more
विषयांतर में जाते हुए वे बताते हैं कि विपश्यना आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की अत्यंत पुरातन साधना-विधि है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना विपश्यना है। लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुन: अनुसंधान कर इसे सार्वजनीन रोग के सार्वजनीन इलाज, जीवन जीने की कला, के रूप में सर्वसुलभ बनाया। इस सार्वजनीन साधना-विधि का उद्देश्य विकारों का संपूर्ण निर्मूलन एवं परमविमुक्ति की अवस्था को प्राप्त करना है। इस साधना का उद्देश्य केवल शारीरिक रोगों को नहीं बल्कि मानव मात्र के सभी दुखों को दूर करना है।
विपश्यना आत्म-निरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की साधना है। अपने ही शरीर और चित्तधारा पर पल-पल होनेवाली परिवर्तनशील घटनाओं को तटस्थभाव से निरीक्षण करते हुए चित्तविशोधन का अभ्यास हमें सुखशांति का जीवन जीने में मदद करता है। हम अपने भीतर शांति और सामंजस्य का अनुभव कर सकते हैं। वे बताते हैं कि इसका आरंभ अपनी सांस पर ध्यान केन्द्रित करने से शुरू होता है। स्वाभाविक रूप से मन भटकता है। हमें उसे बार बार पकड़कर अपनी सांस पर केन्द्रित करना होता है। तीन दिन के अभ्यास से मन पर हमारा काफी अधिकार हो जाता है। इसके बाद ही विपश्यना की सही अर्थों में शुरुआत होती है। इसके बाद हम अपने शरीर के विभिन्न अंगों पर अलग अलग ध्यान केन्द्रित करते हैं और वहां होने वाली रासायनिक तथा अन्य क्रियाओं को महसूस करने लगते हैं। लंबी साधना से इन क्रियाओं पर भी हमारा नियंत्रण हो जाता है।
डॉ सिरसाट बताते हैं कि विपश्यना से हमारे विचार, विकार, भावनाएं, संवेदनाएं जिन वैज्ञानिक नियमों के अनुसार चलते हैं, वे स्पष्ट होते हैं। अपने प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि कैसे विकार बनते हैं, कैसे बंधन बंधते हैं और कैसे इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। हम सजग, सचेत, संयमित एवं शांतिपूर्ण बनते हैं। रोगोपचार में भी विपश्यना की बड़ी भूमिका होती है।
एक्युप्रेशर पर लौटते हुए वे कहते हैं शरीर में विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियाएं होती हैं जो ऊर्जा को शरीर के कोने कोने तक पहुंचाते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ अशुद्धियां भी उत्पन्न होती हैं जो फिल्टर होने से रह जाती हैं। ये अवरोध उत्पन्न करते हैं। सुस्त पड़े शरीर में ये अवरोध शरीर की संचार प्रणाली में पड़े रहकर रोग उत्पन्न करते हैं। एक्यूप्रेशर से इन अवरोधों को आगे बढ़ाकर शरीर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इससे रोगी अंग पुन: स्वस्थ होकर काम करने लगता है।
उन्होंने बताया कि 1994 में मूंदड़ा क्लाथ स्टोर के जरिए वे प्रसिद्ध एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ बिपिन भाई शाह के सम्पर्क में आए। इसके बाद दीर्घ 15 वर्षों तक वे मुफ्त में रोगियों की सेवा करते रहे और अनुभव प्राप्त करते रहे। इसी दौरान सेक्टर-1 के एक मरीज श्री पाठक की सेवा का उन्हें मौका मिला। उनका इलाज डॉ सुभाशीष मंडल कर रहे थे। उन्हें पेशाब में एल्बुमिन जाने की शिकायत थी। कुछ समय तक एक्यूप्रेशर देने पर वे पूरी तरह ठीक हो गए। इससे उनका हौसला बढ़ा। पर अब भी शरीर विज्ञान की ज्यादा जानकारी नहीं होने के कारण वे स्वयं को अपूर्ण पाते थे। 2005 में वे डॉ आनन्द एवं डॉ सुशील रूंगटा से जुड़े तथा शरीर विज्ञान की जानकारी हासिल की। इसके बाद रूंगटा डेंटल कालेज के फैकल्टी अजय सोनटेके के सम्पर्क में आए। कुछ फीस देकर वे भी कक्षाओं में शामिल होते और विषयों को पूरे विस्तार से पढ़ते चले गए। डॉ सोनटेके अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में हैं।
2008 में सेवानिवृत्ति के बाद वे पूरी तरह से इसी को समर्पित हो गए। सेक्टर-10 ए मार्केट मेें क्लिनिक प्रारंभ किया। उन्होंने परीक्षा दिलाई और बीएएमएस -एएम की डिग्री भी ले ली। छह माह पहले बीएम शाह अस्पताल ने उन्हें मौका दिया। 2010 में उन्हें लंदन आमंत्रित किया गया। वहां लंदन कालेज और काम्पिमेन्टरी मेडिसिन में उन्होंने एक प्रजेन्टेशन दिया। इसके बाद कालेज ने उन्हें इस कोर्स के लिए सिलेबस बनाने की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने इसे तैयार किया और रिफ्लेक्सोलॉजी के तहत इस सिलेबस को स्वीकार कर लिया गया।
इन रोगों में खास फायदा
डॉ सिरसाट ने बताया कि वैसे तो एक्यूप्रेशर सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी है किन्तु सर्वाधिक मरीज जो उनपर भरोसा करते हैं उनमें सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, पीठ, कमर का दर्द, किसी भी तरह का क्रानिक पेन, सुन्नपन तथा लकवा के मरीज शामिल हैं। इन रोगियों को सात दिन से एक महीने तक के इलाज में ही लाभ हो जाता है। एक पेशेन्ट आया था जिसका दिमाग सूख चुका था। कृष्ण कुमार साहू नाम के इस मरीज को उन्होंने एक चुनौती की तरह लिया और अब उसमें सुधार के लक्षण दिखने लगे हैं। इसी तरह एक और मरीज कमल मेनन का केस भी है जिसमें एक्यूप्रेशर ने जादुई लाभ दिखाया है।
अब पूरा परिवार साथ
उनके पुत्र पंकज और दीपक ने भी इसी सेवा को अपने जीवन में अपनाया है और बीएम शाह अस्पताल में संचालित उनके क्लिनिक को पूरा समय देते हैं। शाम पांच बजे के बाद सभी मिलकर सेक्टर-10 क्लिनिक में सेवा करते हैं।
शरीर विज्ञान से जुड़ाव
डॉ सिरसाट का मानव शरीर से जुड़ाव पुराना है। तैराकी, कुश्ती और मल्लखाम उनके खेल रहे हैं। ये तीनों ही खेल शरीर और मांसपेशियों को समझने से जुड़े हैं। वे बीएसपी सीनियर सेकण्डरी स्कूल, सेक्टर-10 में लंबे समय तक पीटीआई रहे। मांसपेशियों एवं स्नायुतंत्र की अच्छी जानकारी ने उनकी इस विधा में मदद की। अब उनके बच्चे कहते हैं कि पापा पहले मल्लखाम करते थे। अब वही डंडा छोटा होकर जिमी बन गया है जिससे वे एक्यूप्रेशर करते हैं।
आर्टिस्ट होना भी काम आया
डॉ डीओ सिरसाट चित्रकला में भी महारत रखते हैं। वे अपने सामने बैठे व्यक्ति का चित्र बनाया करते थे। अब वे मरीजों को दिए जाने वाले पाइंट्स याद रखने के लिए भी अपनी चित्रकला का इस्तेमाल करते हैं। वे शरीर का पूरा चित्र बनाकर रोगी हिस्से को चिन्हित करते हैं और प्रेशर पाइंट्स का नक्शा बनाकर फाइल बना देते हैं। उनका दावा है कि एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट चंद मिनट आपके चरणों की सेवा कर आपको बता सकते हैं कि आपके शरीर में कहां-कहां विकार है।