• Tue. May 7th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

पांच साल में दुगने हो गए किडनी के मरीज

Mar 12, 2015

dialysis apollo bsr hospitalभिलाई। देश भर में किडनी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती चली जा रही है। अकेले भिलाई में ही पिछले पांच वर्षों में मरीजों की संख्या दुगनी हो गई है। चिकित्सक इसके लिए तम्बाकू का सेवन, पानी कम पीना, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज तथा दर्द निवारक औषधियों के अंधाधुंध प्रयोग को जिम्मेदार मानते हैं। अपोलो बीएसआर के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ विजय वच्छानी बताते हैं कि किडनी मरीजों की संख्या हो सकता है विदेशों में और भारत में एक जैसी हो किन्तु यहां अधिकांश मामले हमारे पास तब आते हैं जब वे नियंत्रण से बाहर हो चुके होते हैं। इसकी मूल वजह जागरूकता का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात चिकित्सक भी अकसर इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाते । read more
डॉ वच्छानी बताते हैं कि वर्तमान की भागदौड़ वाली जिन्दगी में सही वक्त पर सही भोजन अधिकांश लोगों के लिए काल्पनिक हो गई है। और तो और लोग पर्याप्त पानी भी नहीं पीते, उलटे धूम्रपान तथा तम्बाकू के आदी होने लगते हैं। खान-पान भी बिगड़ जाता है। वे अत्यधिक वसा और उच्च कोलेस्ट्रॉल युक्त भोजन करने लगते हैं। तनाव एवं अपर्याप्त निद्रा भी किडनी पर विपरीत प्रभाव डालती है। किडनी फेल होने के अन्य कारणों में शामिल हैं पथरी के कारण पेशाब आने में बाधाएं, तीव्र संक्रमण, खानदानी बीमारी, विकिरण या चोट लगना।

dr vijay vacchhaniपांच गुना बढ़े मरीज
डॉ वच्छानी ने बताया कि अकेले अपोलो बीएसआर अस्पताल को ही लें तो 2009 से 2015 के बीच यहां डायलिसिस के पेशेन्ट्स में पांच गुना उछाल आया है। 2009 में जहां 4121 मरीज डायलिसिस के लिए आते थे वहीं अब यह आंकड़ा 7995 तक जा पहुंचा है।
अपोलो बीएसआर में अत्याधुनिक सुविधा
अपोलो बीएसआर अस्पताल में 8 अत्याधुनिक मशीनों के द्वारा डायलिसिस की जाती है। पाजिटिव मरीजों के लिए डेडिकेटेड मशीनों की भी व्यवस्था है। इसके अलावा गंभीर मरीजों (जिनको सिर में चोट या बेहोशी और दिल की तकलीफ हो) के लिए आईसीयू में सीआरआरटी मशीन उपलब्ध है।

दक्षिण में ज्यादा मामले
डॉ वच्छानी ने बताया कि कुछ समय पहले 50 हजार लोगों पर किए गए एक शोध के मुताबिक दक्षिण भारतीयों में किडनी फेल्योर के मामले ज्यादा पाए जाते हैं। इसका सीधा संबंध उच्च रक्तचाप एवं डायबिटीज से है। जबकि अधिकांश लोगों की किडनी इस हालत तक पहुंच चुकी थी कि उसकी वजह बताना भी मुश्किल था।
जागरूकता का अभाव
भारत में समस्या के भयावह होने की मूल वजह जागरूकता का अभाव है। प्राथमिक एवं द्वितीय स्तर स्वास्थ्य केन्द्रों में इसकी पहचान नहीं हो पाती। बिना रोग की पहचान किए लोग सीधे दवा दुकानों से औषधि प्राप्त कर लेते हैं। जब मामला पूरी तरह बिगड़ जाता है तब कहीं वे नेफ्रोलॉजिस्ट के पास पहुंचते हैं। ऐसे समय में बीमारी का पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल हो जाता है और डायलिसिस के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता।
क्या हैं लक्षण
चेहरे और पैरों में सूजन, रात को बार-बार पेशाब आना, त्वचा पर लाल दाने या खुजली होना, पेशाब में रक्त या मवाद का आना, थकान, सांस न ले पाना, चक्कर आना और एकाग्रता का अभाव, भूख की कमी, उबकाई, उल्टी आना आदि इसके सामान्य लक्षण हैं।
ट्रांसप्लांट की भी अपनी समस्या
डॉ वच्छानी ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण के मामले पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़े हैं किन्तु डोनर का मिलना इतना आसान नहीं होता। इसलिए श्रेष्ठ विकल्प होते हुए भी यह अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर ही है।
रोकथाम के उपाय
डॉ वच्छानी ने बताया कि किडनी की बीमारी को आम तौर पर 8 स्टेजों में विभक्त किया जाता है। आरंभिक अवस्था में रोग के पकड़ में आने पर हम डैमेज को कंट्रोल कर सकते हैं। इससे क्वालिटी आॅफ लाइफ बनी रहती है। किडनी की बीमारी से बचने के लिए हमें पर्याप्त पानी पीना चाहिए। डायबिटीज और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखना चाहिए। धूम्रपान और तम्बाकू के सेवन से दूर रहना चाहिए। दर्द निवारक औषधि का उपयोग बिना चिकित्सक की सलाह के नहीं करना चाहिए। इधर उधर की सलाह मानकर घरेलू चिकित्सा कर रोग को गंभीर नहीं बनाना चाहिए।

Leave a Reply