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मोऊ ने देखा दुनिया को जोड़ने का ख्वाब

Mar 21, 2015

mou mukherjeeभिलाई। संगीत के प्रत्येक पहलू से अथाह प्रेम करने वाली मोऊ मुखर्जी ने संगीत से दुनिया को एक सूत्र में पिरोने का ख्वाब देखा है। तीन वर्ष की उम्र से संगीत की साधना कर रही मोऊ नृत्य और गायन को संगीत की ही दो धाराएं मानती हैं। जब वे परफार्म करती हैं तो एक तरफ जहां उनकी सुरीली आवाज दिल में उथल पुथल मचाती है, वहीं दूसरी तरफ श्रोताओं की आंखें उनके खूबसूरत चेहरे पर चिपक सी जाती हैं। read more
मोऊ से मुलाकात 19 फरवरी 2006 को संबलपुर में हुई थी। वे विनोद राठौड़ के साथ एक ईवेन्ट में प्रस्तुति देने आई थीं। इस प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है कि संगीत लोगों को बदल सकता है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं कि सबकी पसंद एक हो किन्तु यह जरूरी है कि उसे संगीत के किसी न किसी रूप से लगाव हो।
मोऊ का मानना है कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें संगीत व बच्चों पर प्यार नहीं आता वे केवल आधे मनुष्य होते हैं। अपने पार्श्व गायन के अनुभव का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म बैचलर में शंकरिया… गीत उन्होंने विनोद राठौड़ जी के साथ किया है। इसके अलावा उन्होंने हालीवुड की फिल्म जार्जिया में काम किया है। इस फिल्म को विषकन्या की निर्देशक सलिला पंडा ने निर्देशित किया। इसमें वे फिलिप रिचर्ड्स के साथ काम कर रही हैं।
मोऊ ने पहली बार 9 वर्ष की उम्र में विनोद राठौड़ के साथ स्टेज पर डुएट गाया था। 1997 में उनकी पहली अलबम आकाश कुसुम आई जो हिट रही। इसके बाद 1999 में ‘कथा नय’ तथा ‘तूमि एले जीबने’ हिट रही। वे अपने पिता शोभन मुखर्जी की आवाज की फैन हैं तथा उन्हें गाते हुए सुनना बेहद पसंद करती हैं। किशोर दा और सोनू निगम उनके फेवरिट हैं। यदि मौका मिला तो वो सोनू के साथ गाना चाहेंगी। बंद हाल की बजाए वे खुले मंच पर गाना पसंद करती हैं क्योंकि इससे दर्शकों की प्रतिक्रिया खुल कर देखने को मिलती है।
नृत्य, गीत एवं अभिनय प्रतिभा की धनी मोऊ को तेज रफ्तार गाड़ी में सफर करना तथा फास्ट या जंक फूड पसंद है। वे अपनी सफलता के लिए अपने गुरू पं. नित्यप्रिय दस्तीदार तथा चिन्मय लाहिड़ी के प्रति ऋणी हैं जिन्होंने उन्हें ऐसा शास्त्रीय तालीम दी कि आज किसी भी मूड का गाना गाना उनके लिए बेहद आसान हो गया है। टीवी चैनल्स पर चलने वाले गीत स्पर्धाओं पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यह सही है कि इससे नई प्रतिभाओं को रातों रात शोहरत हासिल करने में मदद मिलती है किन्तु यह इसका असली चेहरा नहीं है। यह एक विशुद्ध रूप से व्यावसायिक खेल है जिसमें जनता को भरमाया जाता है। यहां कई प्रतिभाओं का दिल टूटता या तोड़ा जाता है जो उचित नहीं है।

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