• Fri. May 3rd, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

मरीज और सेवा प्रदाता दोनों की सुरक्षा जरूरी

Apr 3, 2015

bio-medical waste managementदुर्ग। चिकित्सा के दौरान न केवल मरीज की बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाता की सुरक्षा
भी जरूरी है। साथ ही चिकित्सा के दौरान निकलने वाले जैव अपशिष्ट (बायो मेडिकल
वेस्ट) का कुशल प्रबंधन भी जरूरी है ताकि पर्यावरण एवं अन्य जीव जंतुओं के
स्वास्थ्य की सुरक्षा हो सके। read more
उक्त जानकारी जिला चिकित्सालय में इंफेक्शन मैनेजमेन्ट एंड एंवायरनमेन्ट प्लान
(आईएमईपी) पर आयोजित कार्यशाला में प्रदान की गई।  कार्यशाला को संबोधित करते हुए
जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने आईएमईपी
प्रशिक्षण एवं इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। नर्सिंग होम एक्ट का जिक्र करते हुए
उन्होंने इसके प्रावधानों को रेखांकित किया तथा जिले में इसकी मौजूदा स्थिति की
चर्चा की। साथ ही उन्होंने भारतीय चिकित्सा परिषद की चिंताओं से भी उपस्थित
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अवगत कराया।
इस अवसर पर जिला प्रशिक्षण अधिकारी डॉ श्रीमती सुगम सावंत ने कहा कि छत्तीसगढ़ उन
राज्यों में शामिल है जहां ग्रामीण एवं शहरी आबादी को प्रभावकारी चिकित्सा सेवाएं
उपलब्ध कराने पर जोर दिया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरत रोगी के साथ-साथ
स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के स्वास्थ्य की सुरक्षा पर ध्यान देने की है।  संक्रमण का
प्रबंधन एवं वातावरण योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने की तकनीक है। इसके तहत हम
स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाली स्थितियों से बचने का प्रयास करते हैं, कम करने
की कोशिश करते हैं तथा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को संभावित खतरों से बचाने का प्रयास
करते हैं। उन्होंने कहा कि संक्रमण रोकने तथा पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति
लापरवाही से स्वास्थ्य एवं पर्यावरण खतरे में पड़ जाता है। इसमें अपर्याप्त
विसंक्रमण (डिसइंफेक्शन), रोगाणुनाशन (स्टेरिलाइजेशन) के अनुपयुक्त तरीके, स्वयं की
सुरक्षा के प्रति लापरवाही (जिसमें दस्तानों, मास्क आदि प्रोटेक्टिव गीयर्स का
इस्तेमाल नहीं करना), तथा जैव चिकित्सकीय कचरे का गलत निपटान आदि शामिल हैं।
डॉ सावंत ने कहा कि आईएमईपी की कोशिश है कि संरचनात्मक सुधार एवं सुनियोजित तरीका
अपनाकर इन खतरों के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न की जाए तथा नवीनतम एवं परिष्कृत
तकनीकों का प्रयोग कर इन खतरों को न्यूनतम स्तर पर ले जाया जाए। उन्होंने कहा कि
संक्रमण प्रबंधन का क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की पूरी प्रक्रिया को
समाहित करता है।
पर्यावरण सुरक्षा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने 1986 में
इंवायरनमेन्ट प्रोटेक्शन एक्ट को पारित किया। इसमें जैव चिकित्सकीय कचरा प्रबंधन के
नियमों में 2000 एवं 2003 में संशोधन किए गए। इनका पालन करना चिकित्सालय, नर्सिंग
होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पैथोलॉजी लैब, ब्लड बैंक समेत सभी स्वास्थ्य सेवा
प्रदाताओं के लिए बाध्यताकारी है। इसका उद्देश्य जैव चिकित्सकीय अपशिष्टों से
पर्यावरण एवं दूसरों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करना है।
प्रदूषण निवारण मंडल दुर्ग की चीफ केमिस्ट डॉ अनीता सावंत ने बताया कि जैव
चिकित्सकीय अपशिष्टों को स्रोत पर ही अलग-अलग करने की जरूरत है। इसका निष्पादन उचित
माध्यम तथा तरीके से किया जाना भी आवश्यक है ताकि पर्यावरण कम से कम प्रदूषित हो
तथा संक्रामक रोगों को फैलने से रोका जा सके। उन्होंने बताया कि प्रत्येक चिकित्सा
संस्थान को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राधिकार लेना आवश्यक है।
इस अवसर पर आईएमए के स्टेट प्रेसीडेंट डॉ ए गोवर्धन, स्टेट हॉस्पिटल बोर्ड के
प्रेसीडेंट डॉ ए हमदानी, आईएमए दुर्ग के अध्यक्ष डॉ शरद पाटणकर, आईएमए दुर्ग के
सचिव डॉ पी पाण्डेय, आईएमए भिलाई के अध्यक्ष डॉ टी अख्तर, डॉ ए पी सावंत, डॉ
गुलाटी, डॉ सर्राफ, डॉ नायक, डॉ अर्चना चौहान सहित आईएमए दुर्ग के सदस्यगण,
अस्पताल, नर्सिंग होम तथा क्लीनिक के निदेशक एवं चिकित्सक, पैथालाजी लैब तथा
डायग्नोस्टिक सर्विसेस से जुड़े स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं ने भाग लिया।

Leave a Reply