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पासिव स्मोकिंग से होती है 6 लाख मौतेें

Jun 1, 2015

How to quit smoking, dr vivekan pillaiभिलाई। चेस्ट, टीबी और रेस्पिरेटरी डिजीज के विशेषज्ञ डॉ विवेकन पिल्लै ने बताया कि तंबाकू का इस्तेमाल अकाल मृत्यु और बीमारियां होने का सबसे प्रमुख कारण है जिसकी वजह से दुनियाभर में दस में से एक व्यक्ति की मृत्यु होती है। तंबाकू की वजह से प्रतिवर्ष 6 मिलियन लोगों की मौत और 6,00,000 से ज्यादा लोगों की मृत्यु का कारण किसी अन्य व्यक्ति के धूम्रपान करने से होने वाले धूएं में रहने (पासिव स्मोकिंग) से होती है। आंकड़ों के अनुसार हर छह सैंकेड में तंबाकू की वजह से एक व्यक्ति की मौत होती है। भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तंबाकू का निर्माता और उपभोक्ता देश है। तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से भारतीयों में रूग्णता और मृत्युदर का लगातार इजाफा हो रहा है। ये कई गंभीर बीमारियों जैसे कि कैंसर, फेफड़ों की बीमारियों और दिल संबंधी बीमारियों के होने का जोखिम बढ़ाता है। Read More
भारत में आमतौर पर तंबाकू का सेवन धूम्रपान द्वारा किया जाता है। दुनियाभर में तकरीबन 1.3 बिलियन लोग धूम्रपान करते है जिसमें भारत का आंकड़ा 112 मिलियन लोगों का है। धूम्रपान से सिर्फ उस व्यक्ति को ही नुकसान नहीं होता बल्कि इसका धूआं हवा को प्रदूषित कर दूसरों को भी प्रभावित करता है। दूसरे व्यक्ति द्वारा किए जा रहे धूम्रपान से अन्य व्यस्कों को गंभीर हृदय संबंधी बीमारी और सांस से जुड़ी बीमारियां हो सकती है, जिसमें क्रोनोरी दिल संबंधी बीमारी और फेफडों की बीमारियां शामिल है। इसके अलावा धूम्रपान का धुआं शिशुओं के लिए अचानक मृत्यु का कारण भी बन सकता है और गर्भवती महिलाओं में इस धुएं की वजह से जन्म के समय वजन कम जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। तकरीबन आधे बच्चे पब्लिक स्थानों पर धूम्रपान के धुएं की प्रदूषित हवा में सांस लेते है।
जो लोग कम उम्र में धूम्रपान करना शुरू करते है, उनकी ज्यादा समय के लिए धूम्रपान करने वालों की तुलना में धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों से मृत्यु होने की संभावना अधिक होती है। अगर किसी भी युवा को 18 वर्ष की उम्र से पहले धूम्रपान की आदत पड़ जाएं तो ये बहुत चिंता का विषय है। आजकल युवाओं खासतौर से लड़कियों में धूम्रपान करने की संख्या में ज्यादा वृद्वि हो रही है। मेट्रो शहरों में लडक़े और लड़कियों लगभग बराबर संख्या में धूम्रपान करना शुरू कर रहे है।
चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल अस्पताल के डॉ. विवेकन पिल्लई का कहना है, अभिभावकों के धूम्रपान करने, तंबाकू के उत्पाद आसानी से उपलब्ध होने और घरों में इसकी स्वीकृति होने जैसे कारक बच्चों में तंबाकू को धूम्रपान के तौर पर लेने के लिए प्रोत्साहित करते है। आजकल भारत में बच्चों ने 9 से 10 साल की उम्र में ही धूम्रपान करना शुरू कर दिया है। धूम्रपान करने वाले 70 फीसदी लोग इसके दुष्प्रभावों से वाकिफ है और तकरीबन 50 प्रतिशत धूम्रपान की इस आदत को छोड़ना चाहते है लेकिन निकोटिन की निर्भरता के कारण वे इसे चाहकर भी नहीं छोड़ पाते।
50 फीसदी स्मोकर्स छोड़ना चाहते हैं सिगरेट
एकमात्र सिगरेट से मिलने वाला निकोटिन रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है जो अस्थायी भावना पैदा करता है जिससे धूम्रपान करने वाला व्यक्ति निकोटिन पर निर्भर होने लगता है। इसलिए जब भी व्यक्ति धूम्रपान छोड़ने की कोशिश करता है तो रक्त में निकोटिन का स्तर कम हो जाता है, जो उसे लेने की अजीब सी लालसा पैदा करता है और इससे व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, बेताबी, डिप्रेशन, अनिंद्रा और भूख बढ़ने जैसे लक्षण सामने आते है। सिगरेट से सांस से जुड़े लक्षणों और फेफड़ों की असामान्य कार्यक्षमता जैसे लक्षणों का प्रसार बढ़ता है। इससे एफईवी1 में वार्षिक स्तर पर तेजी से गिरावट होती है और नॉन स्मोकर के मुकाबले सीओपीडी मृत्युदर ज्यादा है।
धूम्रपान को अलविदा करने के लिए निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एनआरटी) सबसे बेहतरीन, कारगर व प्रभावी तकनीक है। अध्ययनों के अनुसार एनआरटी की मदद से धूम्रपान को छोड़ने की संभावना दोगुनी है। विभिन्न अध्ययनों से सामने आया है कि निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी में च्युइंगम के रूप में धूम्रपान छोड़ने की संभावना 50 फीसदी से 70 फीसदी तक प्रभावी है। एनआरटी को धैयर्पूर्वक करना भी धूम्रपान छोड़ने में महत्वपूर्ण कारक है।
डॉ. पिल्लई कहते है, जब आप धूम्रपान छोड़ने के लिए एनआरटी अपनाते है तो इसे स्थायी रूप से छोड़ना आपकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। एनआरटी थेरेपी के अलावा नॉन फार्मालोजिकल तरीके जैसे कि पारिवारिक, दोस्तों का प्रोत्साहन और डॉक्टर की कांउसलिंग धूम्रपान छोड़ने में अहम भूमिका निभाते है।

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