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पूर्ण स्तनपान से बढ़ेगी विकास की रफ्तार : डॉ सावंत

Aug 4, 2016

breast-feeding-week2016अपोलो बीएसआर हास्पिटल में विश्व स्तनपान सप्ताह का आयोजन

भिलाई। किसी भी बच्चे के लिए जीवन के आरंभिक छह महीनों में मां का दूध महत्वपूर्ण एवं अमृत समान है। इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं यहां तक कि पानी भी। मां का दूध पीने वाले बच्चों का विकास अच्छा होता है, वे बीमार कम पड़ते हैं और अपने कर्मजीवन में सफल भी अधिक होते हैं। इससे राष्ट्र भी मजबूत होता है। यह बातें अपोलो बीएसआर अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर एवं वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एपी सावंत ने कहीं। वे विश्व स्तनपान सप्ताह पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसी वर्ष जारी आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जो बच्चे 0-6 माह की उम्र तक सिर्फ मां के दूध पर निर्भर होते हैं वे अन्य बच्चों के मुकाबले 2.6 फीसदी तक अधिक मेधावी होते हैं। यही नहीं इसके बाद भी लगभग 2 वर्ष की उम्र तक मां का दूध पीने वाले बच्चों में यह प्रतिशत इससे भी अधिक होता है। पूर्ण स्तनपान के तरीके को विस्तार से समझाते हुए उन्होंने कहा कि मां का दूध दो भागों में होता है। आरंभिक स्राव या ‘फोर मिल्कÓ में प्रोटीन्स, विटामिन्स और मिनरल्स की प्रचुरता होती है जबकि इसके बाद स्तन के रिक्त होने तक आने वाले दूध में वसा मुख्य होता है। इसी दूध से बच्चे का पेट भरा रहता है और उसका वजन बढ़ता है। इसलिए माताओं को सलाह दी जाती है कि वे एक स्तन के खाली होने तक उसीसे दूध पिलाएं और फिर दूसरे स्तन की ओर जाएं। दूसरी बार दूध पिलाते समय दूसरे स्तन से पहले पिलाएं और फिर पहले पर आएं।

गर्भवती महिलाओं द्वारा सवाल पूछे जाने पर डॉ सावंत ने कहा कि जुड़वां बच्चों के लिए भी मां का शरीर पर्याप्त दूध उत्पन्न कर लेता है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मां के दूध के संघटक तय हैं और कुछ भी खाने या पीने से यह बदलता नहीं है। अलबत्ता दवाओं का सेवन करने वाली माताओं को चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
विश्व स्तन पान सप्ताह के इस वर्ष के थीम ‘सतत विकास के लिए स्तन पानÓ को स्पष्ट करते हुए डॉ सावंत ने कहा कि किसी देश का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी जनता कितनी स्वस्थ और बुद्धिमान है। शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए स्तनपान सबसे अच्छा और आसान तरीका है। इससे बच्चे का पोषण अच्छा रहता है, रोगों से लडऩे की क्षमता बढ़ती है और बच्चा बार-बार बीमार नहीं पड़ता है। शिशु मृत्यु दर को कम करने तथा बच्चों में पोषण का स्तर बढ़ाने के लिए सरकारें प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती हैं। नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होने का एक तरफ जहां उत्पादकता पर पड़ता है वहीं उनके स्वास्थ्य की देखभाल पर भी सरकार को काफी खर्च करना पड़ता है।
डॉ सावंत ने कहा कि बच्चे स्वस्थ, निरोगी और मेधावी हों इसके लिए जरूरी है कि हम स्तन पान को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को दूर करें। मां का शरीर न केवल गर्भस्थ शिशु का पोषण करने में समर्थ है बल्कि आरंभिक छह माह तक उसकी पोषण की सभी जरूरतों को पूरा करने में भी सक्षम है। मां के दूध में पर्याप्त पानी होता है इसलिए बच्चे को ऊपर का पानी पिलाने की भी जरूरत नहीं है। इससे बच्चा संक्रमण मुक्त विकास की ओर अग्रसर होता है। छह माह की उम्र के बाद उसे पूरक आहार की जरूरत होती है। घर का बना हुआ भोजन पूरक आहार के रूप में सर्वोत्तम होता है। इसमें तीन भाग चावल, एक भाग दाल, थोड़ी सी हरी सब्जियां और दही का मिश्रण छह माह से बड़े बच्चों के लिए मां के दूध के अलावा सर्वोत्तम आहार होता है। स्वाद के अनुसार घर की बनी हुई दूसरी चीजें साथ में दी जा सकती हैं। मां का दूध तब भी उसकी रक्षा करता रहता है। इसलिए 2 साल की उम्र तक भी स्तनपान जारी रखना चाहिए।
कार्यशाला में विभिन्न नर्सिग कालेजों के बच्चों के साथ ही अपोलो बीएसआर हास्पिटल के नर्सिंग विभाग ने सक्रिय भागीदारी दी। उन्होंने प्रश्न पूछकर अपनी शंकाओं का समाधान भी किया। अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिए माताओं ने भी इस कार्यशाला का लाभ लिया।
अपोलो बीएसआर हास्पिटल के मेडिकल सुपरिन्टेंडेंट डॉ एके द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन नर्सिंग विभाग की सुश्री अनिला थॉमस एवं प्रीति वर्मा ने किया। कार्यशाला की रूपरेखा नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट श्रीमती आभा मिंज एवं श्रीमती एम सलोमी ने तैयार की है।
45 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेदार
विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं यूनिसेफ के आंकड़ों के हवाले से डॉ सावंत ने कहा कि विश्व में फार्मूला मिल्क का बाजार 54 बिलियन डॉलर का हो गया है। वहीं दुनिया में 8 लाख 23 हजार बच्चे अपर्याप्त स्तनपान का दंश भुगत रहे हैं। 0-6 साल तक की उम्र के बीच होने वाली 45 फीसदी से अधिक मौतों के लिए यही कारण जिम्मेदार है।
स्तनपान से मां को भी लाभ
डॉ सावंत ने बताया कि पूर्ण स्तनपान कराने वाली माताओं को भी इसका लाभ मिलता है। इससे न केवल उनका शरीर अपनी प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटता है बल्कि वे ब्रेस्ट एवं ओवेरियन कैंसर से भी सुरक्षित रहती हैं। इससे शिशु के साथ मां का भावनात्मक बंधन भी मजबूत होता है।
ग्रीन हाउस गैसों से मुक्ति
चूंकि मां के दूध को किसी प्रसंस्करण, पैकेजिंग, परिवहन अथवा संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती इसलिए इससे न तो कोई पैकेजिंग कचरा उत्पन्न होता है और न ही किसी भी रूप में ऊर्जा खर्च होती है। इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से भी मुक्ति मिलती है।

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