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टॉप यूनिवर्सिटीज में दिव्यांगों की 84% सीटें रह जाती हैं खाली

Nov 30, 2017

टॉप यूनिवर्सिटीज में दिव्यांगों की 84% सीटें रह जाती हैं खाली नई दिल्ली। दिव्यांग छात्रों को शिक्षा का पूरा मौका नहीं मिल रहा है। देश की 32 टॉप यूनिवर्सिटीज और संस्थान जिनमें आईआईटी, आईआईएम, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी आदि शामिल हैं उनमें दिव्यांगों के लिए रिजर्व सीटें 84 फीसदी तक खाली रह जाती हैं। सिर्फ 16 फीसदी दिव्यांग ही इस कोटे का लाभ ले पाते हैं।नई दिल्ली। दिव्यांग छात्रों को शिक्षा का पूरा मौका नहीं मिल रहा है। देश की 32 टॉप यूनिवर्सिटीज और संस्थान जिनमें आईआईटी, आईआईएम, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी आदि शामिल हैं उनमें दिव्यांगों के लिए रिजर्व सीटें 84 फीसदी तक खाली रह जाती हैं। सिर्फ 16 फीसदी दिव्यांग ही इस कोटे का लाभ ले पाते हैं। दिव्यांगों पर हुआ यह सर्वे बेहद चौंकाने वाला है। इस सर्वे से सरकार द्वारा लागू 1995 विकलांग ऐक्ट की कई खामियां उजागर हो रही हैं। इस ऐक्ट के तहत सरकार ने नैशनल सेटंर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट (NCPEDP) के तहत दिव्यांगों के लिए 3 फीसदी कोटा निर्धारित किया था। इस संस्थानों में सिर्फ 1614 दिव्यांग छात्र पढ़ रहे हैं, जबकि देश में दिव्यांग छात्रों की संख्या करीब 3.33 लाख है यानी इन शिक्षण संस्थानों में सिर्फ 0.48 फीसदी दिव्यांग छात्र ही पढ़ रहे हैं।
एनसीपीईडीपी की अवैतनिक डायरेक्टर जावेद अबीदी के मुताबिक, ‘इन संस्थानों में पढ़ने वाले दिव्यांग छात्रों में सिर्फ 38 फीसदी ही महिला हैं। अगर नियम और नीति होने के बावजूद दिव्यांग छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने से दूर रह जाते हैं, तो इन नियमों का कोई लाभ नहीं है। अगर टॉप 50 शिक्षण संस्थानों में हालात ऐसे हैं, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश के दूसरे कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में क्या हालात होंगे।’ एनसीपीईडीपी ने यह सर्वे अगस्त से नवंबर 2017 के बीच पूरा किया। इस सर्वे में ऊपर बताए शिक्षण संस्थानों के अलावा यूनिवर्सिटीज ऑफ हैदराबाद, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सीटी, पंजाब यूनिवर्सिटी और गोवा यूनिवर्सिटीज भी शामिल हैं।
सर्वे को देखकर ऐसा लगता है, जैसे दिव्यांग छात्रों में 71.8 फीसदी पुरुष और 38.19 फीसदी महिला छात्र हैं। एनसीपीईडीपी पिछले लंबे समय से इस बात पर जोर दे रहा है कि अगर कोई महिला दिव्यांग है, तो उसके लिए पुरुष दिव्यांगों की अपेक्षा स्थिति दोहरी चुनौतीपूर्ण होती है। 1995 विकलांग ऐक्ट को लागू हुए आज 20 साल से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन हमारे पास दिखाने को क्या है। दिव्यांगों में शिक्षा का स्तर ज्यों का त्यों बना हुआ है। इस स्टडी में सामने आया है कि 1614 छात्रों में से 613 विकलांग हैं, वहीं 311 दृष्टिबाधित छात्र हैं और शेष 31 बोलने या सुनने से बाधित हैं। नैशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट फॉर डिसऐबल्ड पीपल ने देश के इन सभी 50 शिक्षण संस्थानों को इससे संबंधित प्रश्नों की सूची बनाकर भेजी थी। इनमें से 64 फीसदी (यानी 50 में से 32) शिक्षण संस्थानों ने इसका जवाब देने में रूचि दिखाई।

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