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दिशाहीन हो गया है टीचर एजुकेशन : जीडीआरसीएसटी में नैक प्रायोजित राष्ट्रीय सेमीनार

Jan 8, 2018

भिलाई। टीचर एजुकेशन करिकुलम में लगातार हो रहे बदलाव, टीचर ट्रेनिंग के लिए आ रही युवा पीढ़ी, टीचिंग मेथड्स का बासीपन, सब मिलकर प्रायमरी एजुकेशन की रीढ़ तोड़ रही है। ज्ञान किताबी हो गई है इसलिए अच्छे एजुकेशनिस्ट तो हो रहे हैं पर रिसर्च को खास गति नहीं मिल रही। एक दिशाहीनता का अहसास होता है। यह कहना है पं. सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बंशगोपाल सिंह का। डॉ बंशगोपाल सिंह यहां जी.डी. रूंगटा कॉलेज आॅफ साइंस एण्ड टेक्नालॉजी करिकुलम रिफॉर्म्स इन टीचर एजुकेशन: एनहेंसिंग केपेबिलिटीज एण्ड कॉम्पीटेन्सी विषय पर नैक द्वारा स्पॉन्सर्ड सेमीनार को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।भिलाई। टीचर एजुकेशन करिकुलम में लगातार हो रहे बदलाव, टीचर ट्रेनिंग के लिए आ रही युवा पीढ़ी, टीचिंग मेथड्स का बासीपन, सब मिलकर प्रायमरी एजुकेशन की रीढ़ तोड़ रही है। ज्ञान किताबी हो गई है इसलिए अच्छे एजुकेशनिस्ट तो हो रहे हैं पर रिसर्च को खास गति नहीं मिल रही। एक दिशाहीनता का अहसास होता है। यह कहना है पं. सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बंशगोपाल सिंह का। डॉ बंशगोपाल सिंह यहां जी.डी. रूंगटा कॉलेज आॅफ साइंस एण्ड टेक्नालॉजी करिकुलम रिफॉर्म्स इन टीचर एजुकेशन: एनहेंसिंग केपेबिलिटीज एण्ड कॉम्पीटेन्सी विषय पर नैक द्वारा स्पॉन्सर्ड सेमीनार को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। डॉ सिंह ने कहा, टीचर एजुकेशन प्रायमरी एजुकेशन की नींव है। पिछले छ: सालों में टीचर्स एजुकेशन करिक्यूलम में जो लगातार बदलाव किये जा रहे हैं उससे एक उहोपोह की स्थिति निर्मित हुई है। आज जो भी करिकुलम विकसित किया जा रहा है उसका मटेरियल फॉरेन बुक्स से लिया जा रहा है क्योंकि वह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। करिकुलम में इंडियन कन्सेप्ट्स का अधिकाधिक समावेश किया जाना चाहिए। करिकुलम डिजाइनिंग एकाडमिक्स तथा एडमिनिस्ट्रेटिव फील्ड का संयुक्त रूप से किया गया प्रयास होता है। करिकुलम में परिवर्तन करने के पश्चात उसे लागू करने में अनेक प्रकार की व्यवहारिक कठिनाइयां आती हैं।
डॉ सिंह ने कहा कि टीचर एजुकेशन कोर्स हेतु आ रही नयी पीढ़ी ऐसी है जिसका स्वयं का कोई लक्ष्य या उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। कोई एक्टिव हैं, कोई सामान्य हैं और कुछ ऐसे हैं जो कि बिना प्रशिक्षण प्राप्त किये केवल परीक्षा के समय ही आना चाहते हैं। इन सब बातों से टीचर एजुकेशन की गुणवत्ता वृद्धि एक चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया है।
उन्होंने कहा कि करिकुलम डिजाइन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि टीचर बच्चों में क्रियेटीविटी को बढ़ा सके। इस का हमारे टीचर एजुकेशन करिकुलम में अभाव है। डीएड तथा बीएड सिलेबस में शिक्षक प्रशिक्षुओं के लिये इसकी कोई व्यवस्था नहीं रखी गई है।
डॉ सिंह ने कहा कि वतर्मान पीढ़ी अपने ज्ञान को केवल किताबों के माध्यम से ही अर्जित कर रही है उसे जनरेट नहीं कर रही है और शायद यही प्रमुख वजह है कि आज देश में अच्छे एजुकेशनिस्ट तो हो रहे हैं परन्तु रिसर्चर्स का अभाव है। आज विश्व के लिये चाइना एक उदाहरण है जिसने विगत 20 वर्ष में रिसर्च के क्षेत्र में जो प्रगति की है और आज स्थिति यह है कि हर रिसर्च जर्नल में चाइना के शोध विशेषज्ञों के लगातार आर्टिकल्स प्रकाशित हो रहे हैं। यह केवल वहां रिसर्चर्स को अनिवार्य रूप से फील्ड पर जाकर रिसर्च संबंधी एक्टीविटिज करने कहे गये कदम का ही नतीजा है।
इस अवसर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की डॉ. पूनम बत्रा, जेएनयू दिल्ली की डॉ. मिनती पाण्डा, कल्याण कॉलेज के पूर्व प्रो. डॉ. पी.के. श्रीवास्तव, संतोष रूंगटा समूह की ओर से डायरेक्टर आरसीईटी डॉ. एस.एम. प्रसन्नकुमार, डायरेक्टर एचआर एण्ड प्लेसमेंट्स महेन्द्र श्रीवास्तव, प्रिंसिपल जीडीआरसीएसटी डॉ. नीमा बालन, हेड एजुकेशन डिपाटर्मेंट डॉ. वाणी सुब्रमणीयम, प्रबंधक जनसंपर्क सुशांत पंडित, फैकल्टी मेम्बर्स तथा स्टूडेंट प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन फैकल्टी मेम्बर्स ज्योति मिश्रा तथा सीमा वर्मा ने किया।

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