भिलाई। नृत्य प्रस्तुत करने से चंद पल पहले नर्तक के पांव जख्मी हो जाएं और वह किसी को इसकी भनक तक न लगने दे, यह तभी संभव हो सकता है जब उसमें नृत्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव हो। ऐसा ही हुआ नृत्यधाम के राममूर्ति भागावतार उत्सव-2018 नृत्य रस प्रवाह के दूसरे दिन। दिल्ली के प्रसिद्ध भरतनाट्यम नर्तक एवं गुरू हिमांशु श्रीवास्तव ने जख्मी होने के बाद भी बेहद खूबसूरत प्रस्तुति दी और किसी को भनक तक न लगी। प्रसिद्ध नृत्यांगना एवं नृत्यगुरू डॉ सरोजा वैद्यनाथन के शिष्य हिमांशु श्रीवास्तव के पैरों में नृत्य से कुछ ही देर पहले लोहे का पाइप चुभ गया। पाइप के ये टुकड़े स्टेज के कोने में ही पड़े थे। एक क्षण को तो वे पैर पकड़कर वहीं बैठ गए पर तत्काल खुद को समेटा और स्वयं को उत्सव के हवाले कर दिया। उन्होंने न केवल एक खूबसूरत प्रस्तुति दी बल्कि इसके बाद नृत्यांगनाओं के लिए संगत भी किया। पुरस्कार वितरण में भी वे शामिल हुए और बच्चों का मन रखने के लिए काफी देर तक खड़े रहे।
दो-चार मुलाकातों में ही हिमांशु ने दिल जीत लिया। अत्यंत विनम्र स्वभाव के हिमांशु का जीवन पूरी तरह कला को समर्पित है। शास्त्रीय नृत्य और चित्रकारी को एक दूसरे का पूरक बताते हुए वे बताते हैं कि दोनों ही सुन्दर अभिव्यक्ति के पूर्ण साधन हैं। हिमांशु स्वयं नृत्य के अलावा पेंटिंग का शौक रखते हैं। वे कहते हैं कि युद्ध हो या प्रेम, मिलन का चरम सुख हो या विरह की वेदना, नृत्य और चित्र इसे बिना किसी शब्द के बयां कर सकते हैं।
12वें राममूर्ति भागावतार उत्सव-2018 नृत्य रस प्रवाह के आयोजन से चार दिन पहले भिलाई पहुंचे हिमांशु ने नृत्यधाम के बच्चों और लगभग 100 शिविरार्थियों को तीन दिन तक प्रशिक्षण दिया। बच्चे स्कूल के बाद शाम को सेक्टर-6 कालीबाड़ी में एकत्र होते और फिर शुरू हो जाता उनका नृत्य का ककहरा। इन सभी बच्चों ने भी आयोजन के दूसरे दिन समूह में प्रस्तुति दी।
फिलहाल फेलोशिप कर रहे हिमांशु की तारीफ करते हुए नृत्यधाम निदेशक गुरू डॉ राखी रॉय कहती हैं कि उनके जैसी सरलता और जज्बा कम ही देखने को मिलती है। स्कूल और गर्मी से बेहार बच्चों में नई ऊर्जा का संचार कर उन्हें घंटों नृत्य की तालीम देना कोई आसान काम नहीं होता। 100 बच्चों को पूर्ण अनुशासन में लाना और फिर उन्हें शास्त्रीय नृत्यों की भाव भंगिमाएं सिखाना और तीन दिन बाद उन्हें मंच पर लाकर खड़ा करना हिमांशु को औरों से अलग बनाता है।