भिलाई। स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ जयराम अय्यर का मानना है कि युवाओं में हृदयाघात के खतरे का पूर्वानुमान लगाना अकसर कठिन होता है। कई मामलों में इसका अनुमान केवल फैमिली हिस्ट्री के आधार पर ही लगाया जा सकता है। डॉ अय्यर ने बताया कि पहले जहां 45-50 साल की उम्र के बाद के मरीजों में ही हृदय की बीमारियों का खतरा देखा जाता था वहीं अब 20-22 साल की उम्र में भी दिल का दौरा पड़ रहा है। इसके लिए लाइफस्टाइल के अलावा केवल जेनेटिक फैक्टर ही जिम्मेदार होते हैं।उन्होंने कहा कि अधेड़ या प्रौढ़ावस्था में जहां धमनियों में 60-70 फीसदी का ब्लॉकेज भी दौरे का कारण नहीं बनता, वहीं युवावस्था में 30 या 40 फीसदी का ब्लाकेज भी हृदयाघात का कारण बन जाता है। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि धमनियों में कोलेस्ट्राल की परतों पर बना कैप (कवर) युवाओं में काफी पतला और नाजुक होता है जो कभी भी फट सकता है और कोलेस्ट्रॉल रक्त के साथ मिलकर थक्का बनाने लगता है। अधिक उम्र के मरीजों में कैप अपेक्षाकृत रूप से अधिक मजबूत होता है।
तम्बाकू को हृदय का दुश्मन बताते हुए उन्होंने कहा कि नशा, मुख्य रूप से तम्बाकू से दूर ही रहना चाहिए। हृदय की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमने को एथेरोस्क्लेरोसिस कहा जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ हृदयाघात की संभावना तो बनती है परन्तु नियमित व्यायाम हृदय की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत करता हुआ चलता है। यानी हृदय के ऐसे हिस्से में, जहां खून की कमी पैदा हो रही है वहां पतली धमनियां (कैपिलरीज) के द्वारा वैकल्पिक चैनल विकसित हो जाते हैं। इसे कोलैटरल कहा जाता है। यह व्यवस्था भी कम उम्र के हृदयाघात के मरीजों में डेवलप नहीं हो पाती जिसकी वजह से हृदयाघात ज्यादा गंभीर एवं जानलेवा सिद्ध होता है।
युवा उम्र में हृदयाघात के लिए जेनेटिक फैक्टर को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि यदि परिवार में माता या पिता में से किसी एक को भी दिल का दौरा पड़ चुका है तो ऐसे परिवारों के बच्चों को बेहद सावधान रहना चाहिए और चिकित्सक के सम्पर्क में रहना चाहिए और नियमित रूप से जांच करवाते रहना चाहिए।