भिलाई। एमजे कालेज की निदेशक श्रीमती श्रीलेखा विरुलकर एवं प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुुरुपंच की प्रेरणा से वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों तथा राष्ट्रीय सेवा योजना की इकाई ने शनिवार 17 नवम्बर को देवबलौदा चरोदा का शैक्षणिक भ्रमण किया। यहां के अपूर्ण मंदिर और तिलस्मी गुफा के रहस्य को जानने समझने की कोशिश की। साथ ही ग्रामीणों, ग्रामीण विद्यार्थियों के साथ शैक्षणिक चर्चा भी की। रासेयो इकाई ने इस पुरा महत्व के मंदिर परिसर की साफ सफाई करने के साथ ही पुरा सम्पदा की रक्षा का संकल्प भी लिया। छमासी शिव मंदिर का इतिहास
पुरातत्व विभाग के कर्मचारी पुष्पेन्द्र भारती, नरेश भोयर एवं ग्रामीण चंद्रभान सोनवानी ने बताया कि पुरातत्वीय अभिलेखों के अनुसार यह मंदिर 13वीं सदी का है। कल्चुरीकालीन इस मंदिर का निर्माण गुम्बद की स्थापना से पहले ही बंद हो गया। किंवदंतियों एवं जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर को छमासी शिवमंदिर भी कहा जाता है। कोई कहता है कि इसका निर्माण छह माह में किया गया जब लगातार अंधकार छाया रहा। शिल्पकार निर्वस्त्र होकर इसका निर्माण करते रहे। इन शिल्पकारों के लिए उनकी पत्नियां भोजन लेकर आती थीं। एक दिन मुख्य शिल्पकार की बहन उसके लिए भोजन लेकर आई। अपने भाई को निर्वस्त्र देखने की ग्लानि में उसने कुंड में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। वहीं शिल्पकार ने भी कुंड में छलांग लगा दी। पर यहां उसे एक सुरंग मिला जिससे होकर वह आरंग निकल गया और वहां पुन: मंदिर का निर्माण किया। आरंग के मंदिर में उसकी प्रस्तर प्रतिमा है। वह मंदिर पूर्ण है जबकि देवबलौदा के मंदिर का निर्माण उसी दिन रुक गया। मंदिर का कलश स्थापित न हो पाया। शिल्पकार की बहन की मूर्ति उसी तालाब में है जहां उसने छलांग लगाकर अपना जीवन दे दिया था।
मंदिर निर्माण के काल को लेकर अलग अलग मान्यताएं हैं। विकीपीडिया के मुताबिक इसका निर्माण 5वीं सदी में किया गया। पुरातात्विक दफ्तर के मुताबिक यह मंदिर 13वीं सदी का है। यह मंदिर भोरमदेव, खजुराहो तथा अजंता के मंदिरों की निर्माण शैली का लगता है।
सोने की नथ वाली विशाल मछलियां
ग्रामीण हूबलाल बांदे, ए रमन्ना मूर्ति तथा पार्षद राकेश वर्मा ने बताया कि एएसआई ने 25 साल पहले पम्प लगाकर यहां के कुण्ड की सफाई की थी। इसी कुण्ड से आरंग तक एक सुरंग निकलती बताई जाती है। कुण्ड में तीनें तीन खण्डों में कुण्ड मिले। इन तीन कुण्डों में सोने की नथ पहनी तीन बड़ी बड़ी मछलियां फंसी मिलीं। प्राचीन परम्परा के मुताबिक राजा या जमींदार मछलियों को सोने की नथ लगाकर पानी में छोड़ देते थे। इन्हें विष्णु का मत्स्य अवतार माना जाता था। ये मछलियां मर गर्इं जिन्हें पूरे सम्मान के साथ दफ्न कर दिया गया।
पुरातात्विक स्थल की सफाई
भ्रमण पर साथ गए राष्ट्रीय सेवा योजना के सदस्यों ने रासेयो अधिकारी डॉ जेपी कन्नौजे के नेतृत्व में मंदिर परिसर की सफाई की। शिव मंदिर, नंदी मण्डप तथा कुण्ड की सफाई के बाद रासेयो कार्यकर्ताओं ने जल स्रोतों तथा पुरा सम्पदा की संरक्षण की शपथ भी ली।
स्कूली छात्रों को दिए टिप्स
एमजे कालेज की सहा प्राध्यापक चरनीत संधु, सौरभ मण्डल, आशीष सोनी, पूजा केसरी ने देवबलौदा के नालंदा स्कूल के बच्चों को परीक्षा के टिप्स दिए। सौरभ मण्डल सर ने बच्चों को बताया कि 10वीं में अच्छे अंकों के लिए किस तरह से तैयारी करें। वहीं चरनीत संधु मैम ने बताया कि अंग्रेजी में आने वाली कठिनाइयों को किस तरह पार किया जा सकता है। आशीष सोनी एवं पूजा केसरी ने उन्हें विद्यार्थी जीवन की प्राथमिकताएं तय करने के लिए प्रेरित किया।
जनसंख्या एवं सुविधाएं
पार्षद राकेश वर्मा ने बताया कि गांव की आबादी लगभग 12 हजार लोगों की है। यहां अधिकतर परिवार रेलवे से रिटायर्ड लोगों के हैं। यहां स्त्री एवं पुरुष का अनुपात समान है। गांव में दो हाईस्कूल हैं। एक शासकीय एवं एक निजी। गांव में आंगनवाड़ी केन्द्र है जो मंदिर के पास ही है। गांव के बच्चों का पोषण स्तर अच्छा है। गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने की तैयारी चल रही है तथा उसके लिए भवन का निर्माण हो रहा है। वर्तमान में मरीजों को कुम्हारी या भिलाई-3 ले जाया जाता है। शत प्रतिशत प्रसव संस्थागत होते हैं।