प्रदेश की दूसरी व जिले की सबसे ऊंची चोटी दलहा पहाड़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा. वन विभाग को इसके लिए 10 लाख रुपए की स्वीकृति मिली है. लगभग 700 मीटर ऊंचे इस पहाड़ पर नेचर ट्रेल बनेगा. दलहा पहाड़ पर प्रतिवर्ष ट्रेकिंग और रॉक क्लाइंबिग के शौकीन पहुंचते हैं. धार्मिक मान्यताओं के चलते भी यहां साल में दो बार भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं. दलहा पहाड़ को सिन्दूरगिरि भी कहा जाता है.
दलहा पहाड़ जांजगीर चांपा जिले अकलतरा तहसील में दलहापोंडी नामक गांव में स्थित है. घने जंगलों से गुजरने के बाद यहां लगभग चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है जो आपको चोटी तक लेकर जाती है. यहां से चारों तरफ के मनोरम दृश्य का नजारा किया जा सकता है. पहाड़ पर मुनि का आश्रम और सूर्य-कुंड तथा पवन-कुंड विशेष प्रसिद्ध है. मान्यता है कि महाशिवरात्रि और नागपंचमी के दिन इन कुंडों का पानी पीने से कई तरह की बीमारियां ठीक हो जाती हैं. इन कुंडों में साल भर पानी रहता है.
पहाड़ पर चारों दिशाओं से चढ़ाई की जा सकती है. पहाड़ के चारों तरफ कोटगढ़, पचरी, पंडरिया व पोड़ी गांव हैं. पहाड़ी तक पहुंचने के लिए घने जंगलों से गुजरना पड़ता है. कंटीले पौधे और पथरीली राह इस यात्रा को दुर्गम बनाते हैं.
मान्यता है कि सतनामी समाज के गुरू घासीदासजी ने यहीं पर तपस्या की थी और दलहापोंडी में ही अपना अंतिम उपदेश दिया था. कहते हैं कि दलहा पहाड़ पर दलहा बाबा आज भी विराजमान हैं. पहाड़ के नीचे एवं चारों तरफ अनेक मंदिर हैं. इनमें अर्धनारीश्वर, सिद्धमुनि आश्रम, नाग-नागिन मंदिर, श्री कृष्ण मंदिर आदि प्रसिद्ध हैं. चतुर्भुज मैदान भी यहां का एक आकर्षण है. यहां एक रहस्यमयी गुफा भी है जिसका अंतिम छोर अब तक अज्ञात है.
जनश्रुति के अनुसार पहाड़ पर 10 कुंड थे पर फिलहाल 8 कुंडों के ही यहां दर्शन हो पाते हैं. किसी समय में यहाँ दो तालाब हुआ करता था जिसमे से वर्तमान समय लोगों को एक ही दिखाई देती है. यहां मुनि जी का आश्रम भी था.
महाशिवरात्रि और नागपंचमी के अलावा यहां पर अघन शुक्ल के दिन भी बहुत अच्छा माहौल होता है. इस दिन यहां हवन किया जाता है और आश्रम परिसर में 100 मीटर से भी लंबा झंडा फहराया जाता है.
भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि दलहा पहाड़ भूगार्भिक क्रिया अर्थात ज्वालमुखी उद्गार से निर्मित हुआ है. जांजगीर चांपा क्षेत्र पठारीय इलाका है और यहां चूना पत्थऱ भारी मात्रा में मिलते हैं. दलहा पहाड़ की चट्टानें चूना पत्थर की ही हैं.