भिलाई। एमजे कालेज के कम्प्यूटर साइंस संकाय के विद्यार्थियों ने कबीरधाम जिले का शैक्षणिक भ्रमण किया। महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीलेखा विरुलकर के दिशा निर्देश पर बनाई गई इस भ्रमण योजना के तहत बच्चों ने सरोदा जलाशय, भोरमदेव का प्राचीन शिव मंदिर एवं सीमावर्ती जंगलों में स्थित रानी दरहा जल प्रपात का अवलोकन कर इन स्थलों के विषय में जानकारियां प्राप्त की। प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच के निर्देशन में बने इस जत्थे में प्रभारी संदीप धर्मेन्द्र, मेघा मानकर, सरिता चौबे, रजनी कुमारी के नेतृत्व में 40 से भी अधिक लोगों का यह जत्था सुबह 7:30 बजे महाविद्यालय से रवाना हुआ। दल में सहा. प्राध्यापक सौरभ मंडल एवं दीपक रंजन दास भी शामिल थे।
दल सबसे पहले सरोदा जलाशय पहुंचा। सरोदा जलाशय कवर्धा शहर से 8 किलोमीटर दूर सरोदा नामक ग्राम में स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1963 में किया गया था। यह जलाशय उतानी नाला को बांधकर बनाया गया है। यहां से सूर्यास्त का नजारा बेहद खूबसूरत होता है। इसे देखने के लिए यहां सनसेट पाइंट का निर्माण किया गया है। बच्चों एवं शिक्षकों ने यहां खड़े होकर यहां की प्राकृतिक छटा का वृहंगावलोकन किया।
इसके बाद दल कबीरधाम जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित भोरमदेव मंदिर के दर्शन के लिए रवाना हुआ। भोरमदेव के रास्ते में ही जलपरी रिसार्ट में दल ने भोजन किया। यहां का सादा, स्वादिष्ट और गर्मागर्म भोजन सभी को पसंद आया। इसके बाद दल अपने मुख्य पड़ाव भोरमदेव पहुंचा।
लगभग एक हजार साल पुराने इन मंदिरों में ईंट से बना सबसे पुराना मंदिर अब बेहद जीर्णशीर्ण अवस्था में है। मुख्य शिवालय पत्थरों से बना है। नागरा शैली में बने इस मंदिर को फनी नागवंशी शासक राजा गोपाल देव ने बनवाया था। इसपर उकेरी गई कलाकृतियां अब भी बहुत अच्छी हालत में हैं। इस मंदिर के छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। इसीसे लगकर हनुमानजी का एक प्राचीन मंदिर है। यहां हनुमानजी नृत्य मुद्रा में हैं। उनकी दाहिनी हथेली पर शिवलिंग की दुर्लभ आकृति है। कहा जाता है कि यहां मांगी गई मन्नतें अवश्य पूर्ण होती हैं।
इसके बाद बस तेजी से चिल्फी (जबलपुर मार्ग) की ओर चल पड़ी। इसी सड़क पर भोरमदेव से लगभग 35 किलोमीटर दूर वनाच्छादित घने जंगलों में एक खूबसूरत जलप्रपात समूह है। इसे रानी दरहा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि कभी यह रानियों के आमोद प्रमोद का स्थल हुआ करता था। भोरमदेव अभयारण्य के बीच मैकल पर्वत शृंखला की गोद में कल-कल बहते इस झरने में शीत काल के अंत तक पानी लगभग सूख चुका होता है।
जब तक दल रानीदरहा पहुंचा, सूर्यास्त को काफी समय बीत चुका था। पूर्णिमा से एक दिन पहले का चांद अपनी शीतल रौशनी में रास्ता दिखा रहा था। टेढ़ी मेढ़ी ऊंची नीची पगडंडियों पर से गुजरते हुए दल आगे बढ़ रहा था। दाएं-बाएं के शांत जंगल का सन्नाटा भयभीत कर रहा था। सावधानी से एक एक कदम रखते हुए दल काफी दूर तक पैदल चला पर झरने के दर्शन नहीं हो सके। अंत में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दल उसी सावधानी के साथ वापस लौट आया।
अब बस सरपट कालेज की तरफ लौटने लगी। बेमेतरा पहुंचने पर पहली और अंतिम बार हम चाय के लिए रुके। देर हो रही थी। सभी बच्चों के परिजनों को सूचित कर दिया गया था कि वे कालेज पहुंचे। अंतत: 11 बजे से कुछ पहले टीम सुरक्षित सकुशल कालेज लौट आई।
कई मायनों में यह भ्रमण बेहद रोमांचक रहा। यात्रा शुरू करते ही बस में खराबी आ गई जिसमें लगभग डेढ़ घंटे का वक्त जाया हो गया। सरोदा जलाशय एवं भोरमदेव के मंदिर में अनुमान से कहीं ज्यादा वक्त लग गया जिसकी वजह से अभ्यारण्य में प्रवेश करने से पहले ही सूर्यास्त हो गया था। इसलिए झरने का दर्शन तो नहीं हो सका पर चांदनी रात में जंगल भ्रमण का एक अलौकिक अनुभव अनायास ही मिल गया।