भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में सात दिवसीय फेकल्टी डेवलपमेंट कार्यशाला का समापन डॉ. आरएन सिंह, प्राचार्य, शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ. हंसा शुक्ला ने की। यह कार्यशाला हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ जिसमें दुर्ग-भिलाई, रायपुर एवं राजनांदगांव जिले के प्रतिश्ठित कॉलेजों के प्राध्यापकों ने सहभागिता दर्ज की। मुख्य अतिथि का स्वागत छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रतीक धान के कटोरे से किया गया। कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती श्वेता दवे ने 7 दिवसीय कार्यशाला में हुए विभिन्न व्याख्यानों का विस्तृत विवरण दिया। प्रतिभागियों ने कार्यक्रम के संबंध में अपनी प्रतिक्रियाएं दी।खूबचंद बघेल महाविद्यालय, भिलाई 3 से प्रतिभागी डॉ. शीला विजय ने डॉ.राजीव चौधरी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा दिये गये शोध पत्र लेखन संबंधी जानकारियों को सराहा तथा डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव शा. वीवायटी पीजी कॉलेज, दुर्ग के व्याख्यान नैक में शिक्षक की भुमिका को विशेष रूप से लाभप्रद बताया।
शासकीय नवीन महाविद्यालय, खुर्सीपार से डॉ. सुनीता मिश्रा ने आशुतोष त्रिपाठी डायरेक्टर के.पी.एस. के रचनात्मक शिक्षण तकनीक विषय पर व्याख्यान से प्रेरणा लेते हुये कहा कि आज के युग में हमें समय के साथ सोशल मीडिया को शिक्षण के लिए माध्यम के रूप में प्रयोग करने की आवश्यकता है।
शासकीय दानवीर तुलाराम महाविद्यालय, उतई की डॉ. मधुलिका राय ने कार्यक्रम के श्रेष्ठ आयोजन की सराहना करते हुए आयोजकों को साधुवाद दिया एवं आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला से पहले किसी छोटी कठिनाई वाले काम को भी हम नहीं करते थे पर कार्यशाला के बाद हमें यह सीखने को मिला कि कुछ नया करने पर कठिनाइयां आती हैं। हमे उन चुनौतियों का सामना करते हुये अपने कार्य को पूरा करना चाहिए। घनश्याम सिंह आर्य कन्या महाविद्यालय, दुर्ग से डॉ. वन्दना श्रीवास ने भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन की कामना किया।
डॉ.आर.एन. सिंह अंतिम सत्र के मुख्य वक्ता ने इंस्टीटूयुशनल एवं अकादमिक एडमिनिस्ट्रशन में शिक्षक की भूमिका को बताते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य कॉलेजों में प्राध्यापकों के कार्य का आज की पीढ़ी के विद्यार्थियों की अपेक्षा के हिसाब से अपनी शैली में परिवर्तन करना तथा नये शोध के द्वारा शिक्षा में नवाचार लाना होगा क्योंकि इस प्रगतिशील युग में नवीन तकनीक के प्रयोग के बिना प्रगति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शिक्षकों को हर कार्य के लिए प्राचार्य पर निर्भर ना हो कर अभिनव पहल पर प्राचार्य को सूचित करना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही किसी संस्था के आधार स्तंभ होते है। महाविद्यालय में उपलब्ध संसाधनों एंव शिक्षकों की क्षमता के अनुरूप कम अवधि के सर्टिफिकेट कोर्स चलाये जाने चाहिए इससें सामाजिक सहभागिता के साथ उपलब्ध संसाधनों का बेहतर प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने महाविद्यालय परिवार को फेकल्टी डेवलपमेंट कार्यक्रम हेतु साधुवाद दिया तथा कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से शिक्षक लाभान्वित होते है। उन्होंने कहा कि वतर्मान स्थिति में शिक्षण के अलावा अकादमिक प्रबंधन भी शिक्षक का कार्य है। भारत में मात्र पच्चीस प्रतिशत महाविद्यालय तथा छत्तीसगढ़ में केवल ग्यारह प्रतिशत विश्व स्तरीय मापदण्डो पर खरे उतरते है। अत: हमें इस दिशा में प्रयासरत होने की आवश्यकता है। उन्होंने नैक में अच्छे ग्रेड लाने हेतु किसी भी महाविद्यालय को टीम भावना से कार्य करने की समझाइश दी।
प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा इस प्रकार के आयोजन शिक्षकों के विकास के लिए आवश्यक है तथा उन्हें अपनी शिक्षण विधि में नई तकनीकों को अंगीकृत करने में सहायक होते है। किसी भी कार्यक्रम में सहभागिता का उद्धेश्य केवल सर्टिफिकेट प्राप्त करने तक सीमित ना होकर उस कार्यशाला के सूक्ष्म तथ्यों को ग्रहण करना होना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों को अतिथि द्वारा सर्टिफिकेट वितरित किया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव श्रीमती ष्वेता दवे ने किया।