भिलाई। हेमचंद यादव विश्वविद्यालय एवं स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शोधपत्र लेखन विधि एवं प्रविधि विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन डॉ. संदीप अवस्थी, एसोसिएट प्रोफेसर, भगवंत विश्वविद्यालय, अजमेर, शिक्षाविद एवं साहित्यकार के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। सहसंयोजक डॉ. वी. सुजाता ने उभरे बिंदुओं को प्रतिवेदन के रूप में प्रस्तुत किया व कहा हमें शोधपत्र बनाते समय समाज की समस्याओं को भी ध्यान में रखना होगा जिससे लोगों को फायदा हो। डॉ. संदीप अवस्थी ने शोध तथ्यों का विश्लेषण और निष्कर्ष विषय पर अपना व्याख्यान देते हुये कहा कि शोध विषय के चयन के पश्चात सबसे पहले संबंधित पुस्तक एवं उपलब्ध सामग्री का चयन कर उसे पढ़ना महत्वपूर्ण होता है। शोधार्थी को तनाव मुक्त होना चाहिये तभी वह अपना शोध कार्य को सही तरीके से कर पायेगा। शोध का शीर्षक महत्वपूर्ण होता है। शीर्षक से ही शोध के क्षेत्र का पता चलता है साथ ही विषय की उपयोगिता स्पष्ट होती है। शोध कार्य के दौरान तथ्य या सूचना हम तक नहीं पहुंचती, हमें सूचना तक पहुंचना होता है। सूचना एकत्र करने के बाद उसे बिंदुवार लिखना व तथ्य का विश्लेषण व निश्कर्ष महत्वपूर्ण है।
डॉ. सुचित्रा शर्मा, प्रोफेसर, विश्वनाथ यादव तामस्कर महाविद्यालय ने कहा कि सामाजिक विज्ञान में बहुत सारे विषय हैं पर हम शोध की ऊंचाईयों तक नहीं पहुंच पाये हैं। जिस तरह खेती करने के लिये बंजर जमीन को तैयार करना पड़ता है उसी तरह शोध करने वालों को कब, क्यों, कैसे आदि से अपने आप को तैयार करना चाहिये। शोधार्थी में परख करने की क्षमता व विश्लेषण करने की क्षमता होनी चाहिये। यही शोध की मुख्य प्रक्रिया है। सामाजिक शोध के लिये हमारे पास कोई लैब नहीं है क्योंकि सामाजिक घटनायें प्राकृतिक रूप से घटित होती है हम जो शोध कर रहे हैं उनका पांच साल बाद क्या परिणाम होगा शोध के मुख्य बिंदु हैं। शोधपत्र में सारांश होना चाहिये। तथ्यों को एकत्र करने के लिये प्राथमिक व द्वितीयक आंकड़े जैसे पुस्तक आदि का उपयोग कर सकते हैं। कीवर्ड कम से कम पांच होना चाहिये। भूमिका में शोधपत्र की प्रस्तावना होनी चाहिये। पूर्व में किये गये शोध हमें नयी दिशा दे सकते हैं। रिसर्च डेटा एनालिसिस में कम से कम चालिस सेम्पल लेना चाहिये।
डॉ. मोनिषा शर्मा ने इन्टेलक्चुअल प्रापर्टी, कापी राईट एवं पेटेण्ट पर अपना व्याख्यान दिया व बताया आप अपने शोध को सुरक्षित रखने के लिये कॉपी राईट करवा सकते हैं। शोधपत्र प्रकाशन कराने से पहले कॉपी राईट साईन करें अपितु अपने पास ही रखें। उन्होंने शोधपत्रों के प्लेगरिज्म के बारे में बताते हुये कहा अगर किसी के कार्य के आप ज्यों का त्यों लिखते है तो वह प्लेगरिज्म के अंतर्गत आता है। कई बार हम दूसरे के शोध को ज्यो का त्यो न लेकर भाषा बदल देते हैं यह भी साहित्यिक चोरी ही है। कई बार थीसिस को चोरी का दोषी पाये जाने पर शोधार्थी की डिग्री छीनी जा सकती है। अगर किसी के थिसीस या पुस्तक से कुछ लेना है तो आपको बिबलोग्राफी व रिफेंस में डालना होगा। फेसबुक, इंटरनेट से कुछ सामाग्री लिये है तो वह भी डालना होता है।
डॉ. सुधीर शर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी कल्याण महाविद्यालय ने शोधपत्र लेखन, प्रकाशन एवं आधुनिक तकनीक व विषय सामग्री उपलब्धता एवं उपयोग विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा विज्ञान व सामाजिक विज्ञान के शोध पत्रों में अंतर होता है सामाजिक विज्ञान के छात्र टेक्नोलॉजी से नहीं जुड़े होेते उन्हें लेपटॉप, इन्टरनेट का उपयोग करना नहीं आता तब उपलब्ध सामग्री का सर्वोत्तम संकलन महत्वपूर्ण होता है। आज कल लोग इंटरनेट से सामाग्री तो लेना चाहते हैं पर अपलोड नहीं करना चाहते हैं उन्होंने शोधपत्र की भाशा पर ध्यान देने की बात कही व बताया सृजनात्मक तब आयेगा जब आपकी भाशा में दक्षता हो।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने कहा कि यह कार्यशाला शोधाथिर्यों को शोध में शोध पत्रों की महत्ता को समझाने हेतु आयोजित किया गया था। कायर्षाला में उपस्थित शोध छात्रों द्वारा पहले दिन के व्याख्यान के पश्चात अपने शोध विषय पर शोधपत्र या आलेख लिखकर लाना शोध के प्रति उनके निष्ठा भाव को स्पष्ट करता है। शोधार्थी को हमेशा जिज्ञासु होना चाहिये। यदि वह अपने विषय को लेकर सचेत रहेगा तो वह समाज की छोटी छोटी गतिविधियों से अपने शोध कार्य को जोड़ सकता है तथा इस तरह का शोध ना केवल सैद्धांतिक दृष्टि से बल्कि व्यवहारिक दृष्टि से भी समाज के लिये उपयोगी होता है। डॉ. संदीप अवस्थी एवं अन्य वक्ताओं ने शोधपत्र लेखन हेतु जो निर्देश या टिप्पणी दी है उसे अमल में लाकर शोधार्थी अपने शोधपत्र के माध्यम से समाज को नई दिशा दिखा सकते हैं।
मंच संचालन डॉ. नीलम गांधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य तथा संचालन डॉ. वी. सुजाता, प्राध्यापक शिक्षा विभाग एवं स.प्रा. श्वेता दवे, बायोटेक्नोलॉजी ने किया। कार्यशाला में हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, पं. सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय, मुम्बई एवं बैंगलोर विश्वविद्यालय के शोधार्थी इस कार्यशाला में सम्मिलित हुये।