भिलाई। ‘न तो श्रीकृष्ण रणछोड़ थे न ही नारद जी चुगलखोर। दोनों की प्रत्येक क्रिया के पीछे गहरी सोच हुआ करती थी। श्रीकृष्ण ने कालयवन को अपने पीछे लगाकर जहां मौत के मुंह तक पहुंचाया वहीं नारदजी ने सूचनाओं का सही व्यक्ति तक प्रेषण कर स्थान-काल-परिस्थितियां निर्मित कीं।’ उक्त बातें आज पं. मदन मोहन त्रिपाठी ने केपीएस कुटेलाभाटा में श्रीमदभागवत के दौरान विभिन्न घटनाओं की व्याख्या करते हुए प्रसंगवश कहीं। केपीएस समूह के चेयरमैन पं. त्रिपाठी ने आज के प्रवचन की शुरुआत जरासंध के बार-बार मथुरा पर आक्रमण की घटनाओं से की। उन्होंने बताया कि जरासंध श्रीकृष्ण का फुफेरा भाई था। श्रीकृषण ने अपनी बुआ को यह आश्वासन दिया था कि वह जरासंध की 99 गलतियों को माफ करेगा। इसी जरासंध ने बार-बार श्रीकृष्ण के राज्य पर हमला किया। विपुल सेना होने के बावजूद श्रीकृष्ण बलराम के हाथों उसे पराजित होना पड़ा। थक हारकर उसने कालयवन नामक शक्तिशाली दैत्य से दोस्ती कर ली। दोनों ने मिलकर श्रीकृष्ण के राज्य पर हमला कर दिया। कालयवन अजेय था जिसका किसी अस्त्र शस्त्र से संहार नहीं किया जा सकता था। श्रीकृष्ण ने युक्ति निकाली। वे युद्ध का मैदान छोड़कर भाग निकले। कालयवन उन्हें भयभीत समझकर उनका पीछा करने लगा। श्रीकृष्ण अब पकड़ में आएं तब पकड़ में आएं। यह स्थिति बनी रही। भागते भागते श्रीकृष्ण एक पहाड़ी के पास पहुंचे और उसकी गुफा में छिप गए। इस गुफा में मुचुकुन्द नामक एक दानव विश्राम कर रहा था। देवताओं की तरफ से दानवों से युद्ध करते करते वह थक गया था। उसने विश्राम का वरदान मांगा था। उसे वरदान था कि यदि किसी ने उसे नींद से उठाया तो जैसे ही उसकी दृष्टि उसपर पड़ेगी, वह भस्म हो जाएगा। श्रीकृष्ण को यह बात पता थी। गुफा में प्रविष्ट होने के बाद कालयवन को श्रीकृष्ण नहीं दिखे। उनकी नजर मुंह ढंककर सो रही एक मानव आकृति पर पड़ी। उसे लगा कि श्रीकृष्ण ही होंगे। उसने सोई हुई आकृति को एक लात मारी और चादर खींच ली। जैसी ही मुचुकुंद की नजर कालयवन पर पड़ी वही भस्म हो गया।
पं. त्रिपाठी ने श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह का रोचक प्रसंग भी सुनाया। रुक्मिणी का भाई रुक्मी श्रीकृष्ण का कट्टर दुश्मन था। उधर रुक्मिणी को श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया था। जब रुक्मिणी के भाई को इसका पता चला तो उसने रुक्मिणी का विवाह जबरदस्ती अपने मित्र शिशुपाल से करने की घोषणा कर दी। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को संदेशा भेजा। श्रीकृष्ण आए और रुक्मिणी को भगा ले गए। रुक्मी ने सेना लेकर उनका पीछा किया तो बलराम की सेना ने उसका रास्ता रोक लिया। भीषण युद्ध हुआ और रुक्मी को श्रीकृष्ण ने पकड़ लिया पर अपनी रुक्मिणी के आग्रह पर उसके प्राण बख्श दिए।
जरासंध वध का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जरासंध का जन्म ऋषि द्वारा दिए गए फल के कारण हुआ था। फल एक था और रानी दो। उन्होंने फल को काट कर आधा-आधा खा लिया था। इसलिए जरासंध दोनों रानियों के गर्भ से आधा-आधा पैदा हुआ। घबराकर रानियों ने दोनों हिस्सों को बाहर फेंक दिया। वहां से गुजर रही जरा नामक राक्षसी ने दोनों टुकड़ों को मिला दिया और जरासंध एक मनुष्य के रूप में सामने आ गया। उसने बार बार मथुरा पर आक्रमण किया पर श्रीकृष्ण को कभी पराजित नहीं कर पाया।
एक बार श्रीकृष्ण पाण्डवों के एक भाई भीम को लेकर ब्राह्मण भेष में जरासंध के दरबार में हाजिर हुए। ब्राह्मण रूपी भीम ने जरासंध से कुश्ती लड़ने की इच्छा जताई। पहले तो जरासंध हंसा पर फिर वह ताड़ गया कि ये ब्राह्मण नहीं है। बात खुलने के बाद भीम और जरासंध में मल्लयुद्ध प्रारंभ हुआ। भीम ने कई बार जरासंध को जांघों के बीच से चीर कर दूर फेंक दिया पर हर बार वह जुड़ जाता। 32 दिन तक मल्लयुद्ध चलता रहा। अंतत: श्रीकृष्ण ने इशारों से भीम को बताया कि अबकी बार जरासंध को चीरो तो धड़ के दोनों हिस्सों को विपरीत दिशा में फेंको। भीम ने ऐसा ही किया और दोनों हिस्से फिर नहीं जुड़ पाए।
श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिसाल का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सही मित्र वही होता है जो अपने मित्रों को स्टेटस से नहीं तौलता। द्रोण और द्रुपद भी दोस्त थे। द्रुपद ने द्रोण से कहा था कि जब वह राजा बन जाएगा तो द्रुपद को आधा राज्य दे देगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। द्रोण बेहद गरीब थे। उनका पुत्र भूख और रोग से मरणासन्न था। द्रोण ने द्रुपद से अपनी दोस्ती का वास्ता देकर कुछ भी काम मांगा। द्रुपद ने उसे अपमानित करके भगा दिया। द्रोण को कौरव-पाण्डवों की उच्च शिक्षा का दायित्व मिला। एकलव्य के विषय में द्रोण का बचाव करते हुए पं. त्रिपाठी ने कहा कि द्रोण इंद्रप्रस्थ की नौकरी में थे। उन्हें राजपरिवार के अलावा किसी अन्य को शस्त्रविद्या सिखाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए वे एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बना सकते थे।
श्रीमदभागवत के दौरान केपीएस कुटेलाभाटा के बच्चों ने श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह, श्रीकृष्ण सुदामा मिलन की सुन्दर झांकियां प्रस्तुत कीं। बच्चों ने अपने गुरू वन्दना गोखले एवं दिनेश की अगुवाई में कर्णप्रिय पार्श्वगीत और भजनों की प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर श्रीमती कृष्णा त्रिपाठी सहित पूरा केपीएस परिवार, केपीएस कुटेलाभाटा की प्राचार्य मृदु लखोटिया, एसएसटीसी के चेयरमैन आईपी मिश्रा सहित आसपास के ग्रामीण श्रद्धालु सपरिवार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। प्रवचन का कल अंतिम दिन है।