दुर्ग। ग्रीष्म ऋतु पूरे शबाब पर है। 25 मई से प्रारंभ हुए नौतपा में उमस भरे दिन व रात से प्रत्येक अंचल वासी परेशान हैं। मानसून ने दस्तक दे दी है। 05 जून तक मानसून केरल पहुंचेगा और आगे बढ़ते हुए दक्षिणी राज्यों को सबसे पहले कव्हर करेगा। छत्तीसगढ़ में 10 जून के आसपास मानसून की पहली फुहारें पड़ेंगी। रेन वॉटर हारवेस्टिंग की तैयारी के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है। उक्त बातें हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण, डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने कहीं।डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि निजी आवास हो या शासकीय भवन या फिर बड़ी-बड़ी इमारतों वाले शैक्षणिक संस्थान, औद्योगिक प्रतिष्ठान, इन सभी के लिये रेन वॉटर हारवेस्टिंग प्रणाली स्थापित करने के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है। रेनवॉटर हारवेस्टिंग के दौरान जिन प्रमुख बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए उनमें फिल्टर के माध्यम से केवल प्रदूषण मुक्त स्वच्छ जल को ही भूमिगत जल भंडारण तक पहुंचाना प्रमुख है। असावधानी वश यदि हमने प्रदूषित जल को जल भृत्त स्तर तक पहुंचा दिया तो फिर उसे कभी भी स्वच्छ अथवा प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सकता। वर्षा ऋतु के आरंभ होने पर पहली दो-तीन बारिश के जल को कभी भी रेन वॉटर हारवेस्टिंग हेतु प्रयोग नहीं करना चाहिये क्योकि यह प्रथम बारिश वाला जल अधिकांशतः अम्लीय प्रकृति का होता है। इसे एसिड रेन भी कहते हैं।
दरअसल बारिश के पूर्व ग्रीष्मऋतु में अत्यधिक तापमान के कारण वायुमंडल में विभिन्न प्रकार के प्रदूषक तत्व गर्म वायु के हल्के होने के कारण उनके साथ विद्यमान रहते है जैसे ही पहली बारिश आती है तो ये सभी प्रदूषक तत्व पानी के साथ वायुमंडल से धरती तक आ पहुंचते हैं। इसलिये यदि हम पहली बारिश के पानी का रेन वॉटर हारवेस्टिंग के रूप में प्रयोग करेंगें तो प्रदूषक तत्वों से युक्त पानी भूमिगत जल भंडार तक पहुंच जायेगा।
रेन वॉटर हारवेस्टिंग के विभिन्न तरीकों पर प्रकाश डालते हुए डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि बंद/बेकार पड़े कुएं, नलकूप, हैंडपंप आदि का प्रयोग भी रेन वॉटर हारवेस्टिंग हेतु किया जा सकता है। इसके अलावा गुरूत्वीय शीर्ष भरण कुएं, खाई, बावली, सोखता पिट आदि बनाकर भी वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है। सोखता पिट अर्थात् रिचार्ज पिट को एक मीटर से लेकर 2.5 मीटर गहरा तथा 1 से 2 मीटर चौडा आयताकार, गोलाकार, वर्गाकार किसी भी आकृति का बनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों की राय में इस रिचार्ज पिट् में लगभग 50 प्रतिशत गढ्ढे को नीचे से उपर की तरफ बढ़ते हुए 1 इंच साइज की गिटटी से भर देना चाहिये। शेष बचे 50 प्रतिशत रिक्त स्थान में 34 प्रतिशत हिस्से को पौन इंच गिट्टी से तथा शेष 16 प्रतिशत हिस्से को बारीक रेत अथवा कोयले के चूर्ण से भर देना चाहिये। हमें यह ध्यान रखना चहिये कि छत के पानी को स्टोर करने के बाद पाइप की सहायता से उसे नलकूप, कुएं, रिचार्ज पिट् में प्रवेश कराने के पूर्व फिल्टर से गुजरना आवश्यक है वर्ना छत पर उपस्थित धूल, कचरे के कण भी भूमिगत जल स्तर तक पहुंच जायेंगे।
डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले छत में एक वर्ष में लगभग 65 हजार लीटर वर्षा का जल एकत्रित होता है। एक अनुमान के अनुसार इस जल की मात्रा से 4 सदस्यों वाले परिवार की लगभग साढ़े चार महीनों की जल की आवश्यकता की आपूर्ति हो सकती है।
छत्तीसगढ़ अंचल में धान के खेत रेनवॉटर हारवेस्टिंग हेतु सबसे अच्छे स्त्रोत माने जाते हैं। इन खेतों में भरा हुआ पानी काफी गहराई तक भूमि के अंदर प्रवेश करता रहता है। डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि अधिकांश लोगों के मन में यह भ्रांति है कि यदि हम अपने घर में रेनवॉटर हारवेस्टिंग प्रणाली स्थापित करेंगे तो केवल हमारे घर के नीचे भूजल का स्तर उपर उठेगा। ऐसा कदापि नहीं होता। भूसतह के नीचे विद्यमान भूजल स्तर सदैव प्रवाहित अवस्था में होता है। अतः हमारे घर पर होने वाले जल का पुर्नभरण केवल हमारे घर को नहीं अपितु उस क्षेत्र के समूचे भूजल स्तर में वृद्धि में सहायता करता है। अतः मोहल्लों में कालोनियों में प्रत्येक घरवासी को रेनवॉटर हारवेस्टिंग का प्रयास करना चाहिए ताकि उस क्षेत्र का सम्पूर्ण जलस्तर में वृद्धि हो सकें।
डॉ श्रीवास्तव ने सभी से जल संरक्षण का आह्वान करते हुए कहा कि जल है तो कल है।