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संजीवनी की तरह है स्टेमसेल थेरेपी : डॉ आनंद श्रीवास्तव

Jun 10, 2021
Stem Cell Therapy is a boon for Metabolic Disorders

दुर्ग। स्टेमसेल थेरेपी संजीवनी की तरह है। यह शरीर के विकारग्रस्त अंग को दोबारा पूर्वावस्था में लौटा ले जाने की क्षमता रखता है। मनुष्यों को होने वाली 70 फीसदी बीमारियों में यह उपचार कारगर हो सकता है। इन रोगों को लाइलाज माना जाता है जिसमें जीवन भर दवा लेनी पड़ती है। इस थेरेपी की मदद से एक ऐसे कोविड मरीज को ठीक करने में सफलता मिली जो 60 दिन से कोमा में था। यह बातें स्टेम सेल बायोलॉजिस्ट एवं जियोस्टार के संस्थापक डॉ आनंद श्रीवास्तव ने आज कहीं।डॉ आनंद श्रीवास्तव हेमचंद यादव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित आमंत्रित व्याख्यान श्रृंखला को सेनडियागो अमेरिका से ऑनलाइन संबोधित कर रहे थे। किसी भी नई चीज को लेकर आगे बढ़ने की राह में आने वाली दुश्वारियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति उनकी सोच से सहमत नहीं थे। कठिनाइयों के बावजूद उनका शोध जारी रहा पर इसमें गति तब आई जब चुनाव जीतने के बाद अपना वादा पूरा करते हुए प्रसिद्ध अभिनेता आर्नल्ड श्वार्जनेगर ने वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की वाणी उनकी प्रेरक बनी रही। गांधीजी ने कहा था कि यदि आप सच बोल रहे हो, सही सोच रहे हो तो इस बात की परवाह मत करो कि कितने लोग आपसे सहमत हैं। उनकी जिद रंग लाई और आज ऐसी सैकड़ों बीमारियों का इलाज संभव हो गया है जो अब तक लाइलाज मानी जाती थीं।
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि मूल रूप से हम तीन तरह से बीमार होते हैं। एक तो दुर्घटनाओं के कारण, दूसरे बैक्टीरिया, माइक्रोब या वायरस के शरीर में प्रवेश कर जाने पर और तीसरा शरीर के अंगों की चाल बिगड़ना। 70 फीसदी बीमारियां तीसरी वजह से होती हैं। इनमें डायबिटीज, थायराइडिज्म, अल्झाइमर जैसी वे बीमारियां शामिल हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि एक बार बीमारी हो गई तो जीवन भर दवा लेनी पड़ेगी। स्टेमसेल थेरेपी से इन विकारों को हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि स्टेमसेल थेरेपी दरअसल एक रिजनरेटिव साइंस है। इसका मतलब है कि हम अंगों को दोबारा उसकी पुरानी स्वस्थ अवस्था में ले जा सकते हैं। लिवर, किडनी, पैनक्रियाज, मस्तिष्क, फेफड़े, हृदय सभी पर इस थेरेपी को आजमाया जा चुका है और परिणाम बहुत अच्छे रहे हैं।
प्रतिभागियों को स्टेमसेल थेरेपी की रोमांचक दुनिया की सैर कराते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह स्टेम सेल को प्राप्त किया जाता है और फिर कल्चर के द्वारा उसकी संख्या में वृद्धि की जाती है। इसके बाद उसे विशेष संकेतकों के साथ रोगी अंग में स्थापित कर दिया जाता है। वह उस अंग की मरम्मत कर देता है और रोग दूर हो जाता है। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि स्टेम सेल थेरेपी के लिए बच्चों की गर्भनाल की जरूरत नहीं पड़ती। इसे स्वयं रोगी के शरीर से ही प्राप्त किया जा सकता है।
डॉ आनंद ने बताया कि 20-22 साल की उम्र तक मनुष्य के शरीर में स्टेम सेल की अच्छी खासी संख्या होती है जो बाद में धीरे धीरे कम होने लगती है। इसलिए बचपन या युवावस्था में लगने वाली चोट आसानी से ठीक हो जाती है और प्रौढावस्था में रोगी को ठीक होने में अधिक वक्त लगता है। उन्होंने कहा कि स्टेमसेल थेरेपी द्वारा एजिंग (आयु बढ़ने की प्रक्रिया) को धीमा किया जा सकता है तथा लोग ज्यादा समय तक युवा बने रह सकते हैं।
उन्होंने बताया कि स्टेमसेल थेरेपी से किस तरह कैंसर का इलाज किया जाता है। कोविड की विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि एफडीए ने स्टेमसेल थेरेपी का इस्तेमाल केवल ऐसे रोगियों पर करने की इजाजत दी थी जिनके बचने की कोई संभावना न हो। उन्होंने इस चैलेंज को स्वीकार किया और एक ऐसे व्यक्ति की जान बचाने में सफल रहे जो 60 दिन से कोमा में था।
डॉ आनंद श्रीवास्तव 2009 में सम्प्रति भारत के प्रधानमंत्री तथा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के आग्रह पर गुजरात गए थे तथा वहां स्टेमसेल थेरेपी के अपने पहले केन्द्र की स्थापना की थी। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंन बताया कि भारत में फिलहाल बेंगलुरू तथा चंडीगढ़ में भी इसके केन्द्र हैं। सभी केन्द्र जियोस्टार के नाम से ही संचालित हैं। स्टेम सेल थेरेपी हालांकि बहुत महंगी है पर भारत में 3 से 3.5 लाख रुपए में भी यह सुविधा उपलब्ध है। कुछ बीमारियों में यह खर्च 20 लाख रुपए तक जा सकता है।
हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने चर्चा में भाग लेते हुए स्टेम सेल प्रिजर्वेशन का जिक्र किया। डॉ आनंद ने बताया कि अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि हम रोगी के शरीर से ही स्टेम सेल को प्राप्त कर सकते हैं। यह सर्वाधिक प्राकृतिक उपचार है। डॉ अरुणा ने पूछा कि इस थेरेपी में कितने सिटिंग की जरूरत पड़ती है जिसपर डॉ आनंद ने कहा कि आम तौर पर तीन सिटिंग की जरूरत पड़ती है।
आरंभ में डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने डॉ आनंद श्रीवास्तव का परिचय देते हुए बताया कि बनारस मूल के डॉ आनन्द के नाम कई उपलब्धियां हैं। वे स्टेम सेल बायोलॉजी, प्रोटीन बायोकेमिस्ट्री, मॉलीक्यूलर बायोलॉजी, इम्यूनोलॉजी तथा यूटेरोट्रांसप्लांटेशन ऑफ स्टेम सेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह एक सुखद संयोग है कि उनकी पत्नी सम्प्रति हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा की छात्रा रही हैं। उन्होंने आधी रात को जागकर विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में शिरकत करने पर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

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