भिलाई। लिवर सिरोसिस के मरीजों को प्रत्येक छह महीने में अपने लिवर की एक सोनोग्राफी अवश्य कराएं। किसी भी प्रकार का परिवर्तन दिखने पर तत्काल लिवर विशेषज्ञ की सलाह लें। यह हेपाटोसेलुलर कैंसर हो सकता है। आरंभिक स्थिति में सर्जरी या प्रत्यारोपण द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है। पर अगर यह लिवर के बाहर फैल गया तो हमारे पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं होते। यह बातें फोर्टिस अस्पताल मुम्बई के लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ स्वप्निल शर्मा ने साझा की।डॉ स्वप्निल ने बताया कि हेपाटोसेलुलर कैंसर कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। इस प्रकार का कैंसर लिवर में ही शुरू होता है। यह उस कैंसर से अलग है जो शरीर के और अंगों में शुरू होकर लीवर तक फैल जाता है। यदि यह कैंसर जल्द पकड़ में आ गया तो सर्जरी या प्रत्यारोपण द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है। यह कैंसर से होने वाली मौतों में दूसरा सबसे बड़ा कारक होता है। यह आमतौर पर लिवर सिरोसिस के मरीजों में पाया जाता है। पर भारत एवं दक्षिणी एशियाई देशों में यह ऐसे मरीजों में भी पाया जाता है जिनमें लिवर सिरोसिस नहीं है।
जिन्हें लिवर सिरोसिस की परेशानी है उन सभी को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रत्येक छह महीने में लिवर की एक सोनोग्राफी अवश्य कराएं। इसके अलावा रक्त की एएफपी के लिए जांच करवानी होती है। लिवर सिरोरिस के ज्ञात मरीजों में हम नियमित अंतराल में अल्ट्रासाउंड करते हैं। कोई भी परिवर्तन दिखाई देने पर अन्य जांचें की जाती हैं जिनमें क्रास सेक्शन इमेजिंग या एमआरआई शामिल हो सकता है।
यदि कैंसर का फैलाव लिवर के भीतर ही सीमित है और वह किसी तरह से नसों तक नहीं पहुंच पाया है तो ऐसी स्थिति में हम लिवर को पूरी तरह प्रत्यारोपण द्वारा बदल देते हैं। एडवांस्ड स्टेज में हम मरीज को लंबा जीवन देने की कोशिश करते हैं। यदि कैंसर का फैलाव लिवर के बाहर भी हो गया है तो उसे केवल दवाइयों से ही मैनेज करना होता है। लिवर प्रत्यारोपण का ऐसे मरीजों में कोई फायदा नहीं होता।