भिलाई। संजय रूंगटा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस द्वारा संचालित रूंगटा इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज भिलाई के प्रोफेसर्स डॉ. हरीश शर्मा, डॉ. राजेश कुमार नेमा और डॉ ज्ञानेश साहू द्वारा कांगड़ी कैंसर पर “नोवेल टॉपिकल फॉर्मूलेशन विथ बायोफ्लेवोनॉइड फॉर ए कांगड़ी कैंसर” नामक शीर्षक से पेटेंट प्रकाशित किया गया। यह रूंगटा इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज भिलाई के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। कैंसर मानव जाति के लिए बहुत खतरनाक हत्यारा है। कांगड़ी पारंपरिक कश्मीरी फेरन के नीचे रखा जाने वाला एक फायरपॉट होता है और यदि कोई व्यक्ति जैकेट पहने हुए है, तो इसे हैंड वार्मर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लगभग 6 इंच व्यास का होता है और लगभग 150 ° F के तापमान तक पहुँचता है। कांगड़ी कैंसर एक पपडीदार कोशकीय केंसरहोता है। जो लोग कांगड़ी द्वारा खुद को कांगड़ी में गर्म कोयला रखकर गर्म करते हैं उन लोगों को ज्यादातर जांघ की भीतरी सतह पर या पेट की दीवार क्षेत्रों में चोट से कैंसर उत्पन्न होता है| इस प्रकार का कैंसर केवल कश्मीर में पाया जाता है।
कांगड़ी के बर्तनों के उपयोग और स्थिति के कारण कांगड़ी कैंसर अक्सर पेट, जांघ और पैर के क्षेत्रों से जुड़ा होता है। समय के साथ, कांगड़ी के उपयोग से लाल धब्बे उभरते हैं, तद्पश्चात यह विकसित हो कर जालीदार काले-भूरे रंग के लाइलाज घावों का आकार कैंसर बन जाता हैं। आखिरकार, घाव स्थल पर कोशिकाएं आकार और रूप में अधिक अनियमित हो जाती हैं।
कांगड़ी कैंसर का प्रमुख कारण कांगड़ी के बर्तन का प्रयोग है। माना जाता है कि कांगड़ी कैंसर के विकास में योगदान देने वाले तत्व गर्मी, लकड़ी के कण, धुआं और चिनार के पत्ते जलते हैं। इस पेटेंट में आविष्कार नियमितता के साथ-साथ 5-फ्लूरोरासिल के पानी में तेल सूक्ष्म इमल्शन के निर्माण और लक्षण के वर्णन से संबंधित है। पेटेंट को पूरा करने के लिए एवं कांगड़ी कैंसर पर बेहतर पैठ और निषेध पाने के लिए तथा फॉर्मूलेशन और परीक्षण तैयार करने में वर्षों की मेहनत लगी है। पेटेंट 9 अगस्त 2021 को लागू किया गया था और यह 8 अगस्त 2021 को प्रकाशित हुआ। ग्रुप चेयरमेन संजय रूंगटा, निदेशक साकेत रूंगटा और सहायक निर्देशक मोहम्मद शाजिद अंसारी ने इस उपलब्धि के लिए बधाई दी।