भिलाई। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल को एक ऐसी बच्ची का जीवन बचाने में सफलता मिली है जिसकी खोपड़ी की हड्डियां उसके मस्तिष्क में धंस गई थीं। बच्ची प्रथम तल की बाल्कनी से सिर के बल नीचे चैम्बर पर गिरी थी। उसे नीम बेहोशी की हालत में हाइटेक लाया गया था जहां तत्काल सर्जरी कर उसका जीवन बचा लिया गया। इसमें अनुभवी एवं दक्ष आईसीयू की टीम का विशेष योगदान रहा जिन्होंने बच्ची को किसी भी तरह के संक्रमण से बचा कर रखा।पोटिया कला निवासी मुकेश साहू ने बताया कि 25 अक्तूबर को दैवयोग से वे बाहर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। तभी उन्होंने आवाज सुनी। यह आवाज डेढ़ साल की यूशी साहू के बाल्कनी से नीचे गिरने की थी। नीचे हालांकि बच्ची की दादी भी थी पर वे बोल-सुन नहीं पाती हैं। वे चाहती भी तो किसी को आवाज न दे पाती। बच्ची की मां ने बताया कि पहले माले की बाल्कनी में जाली लगी हुई है। पर शायद इसकी एक डोर खुल गई थी। बच्ची इसी में से निकलकर नीचे गिर गए।
मुकेश साहू ने तत्काल बच्ची को उठाया और करीब के एक अस्पताल में पहुंच गए। अस्पताल ने बिना कोई देर किये हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ दीपक बंसल को घटना की सूचना दी और प्राथमिक उपचार कर बच्ची को रवाना कर दिया। सुबह 8 बजे ही सूचना मिल जाने के कारण हाइटेक की टीम ने पूरी तैयारी कर ली। बच्ची के पहुंचते ही उसे तत्काल ओटी शिफ्ट किया गया।
न्यूरोसर्जन डॉ दीपक बंसल ने बताया कि सिर के बल चैम्बर पर गिरने के कारण इस डेढ़ साल की बच्ची की खोपड़ी का ऊपरी हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और उसके टुकड़े मस्तिष्क मे धंस गए थे। मुख्य नस फट जाने के कारण काफी खून बह गया था। बच्ची नीम बेहोशी की हालत में थी। हाथ पैर ठंडे पड़ चुके थे। बच्ची को ओटी में ही खून चढ़ाया गया तथा स्टेबिलाइज करने के बाद सर्जरी प्रारंभ की गई। लगभग ढाई-तीन घंटे की सर्जरी के बाद बच्ची के जख्म को ठीक किया जा सका।
इसके बाद शुरू हुई उसे ठीक करने की जद्दोजहद। सर्जरी के बाद 48 घंटे से पहले ही बच्ची को होश आ गया। तब कहीं जाकर उनके माता-पिता ने कुछ राहत महसूस की। डॉ बंसल के साथ ही शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मिथिलेश देवांगन पल पल बच्ची की खबर लेते रहे। बच्ची के पिता ने बताया कि जब से बच्ची गिरी थी, उनकी हालत खराब थी। बच्ची को डाक्टरों के हवाले कर वे दिन रात भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। डाक्टरों की मेहनत और ईश्वर की कृपा से बच्ची की जान बच गई। इसमें अनुभवी और दक्ष आईसीयू टीम की बड़ी भूमिका रही जिन्होंने सघन देखभाल से उसे किसी भी तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखा। हालांकि बच्ची को इसके बाद भी बुखार आता जाता रहा जिसका इलाज उसे वार्ड में रखकर ही किया गया। 17 नवम्बर को बच्ची को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।