भिलाई। केरल और तमिलनाडू के घर-घर में जो पानी पिया जाता है, वह हल्के गुलाबी रंग का होता है. इसे एक पेड़ की छाल को उबालकर तैयार किया जाता है. किसी जमाने में इसकी शुरुआत पेयजल को शुद्ध करने के लिए किया जाता था. प्रयोगशाला में किये गये शोध ने इसके हजारों औषधीय गुणों का खुलासा किया है. केरल के लोगों को मुंहासे नहीं आने के पीछे भी इसका बहुत बड़ा योगदान है. यह हृदय, किडनी और पैन्क्रियाज को स्वस्थ रखने में मदद करता है.
शोध बताते हैं कि पाथीमुगम या सैप्पनवुड की छाल को पानी में उबालने पर उसका रंग हल्का गुलाबी हो जाता है. यह पानी में घुले माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीव) को खत्म कर देता है. यह स्टेफीलोकॉक्कस ऑरियस बैक्टीरिया संक्रमण को भी रोकता है जो सेलुलाइटिस नामक अत्यंत पीड़ा दायक बीमारी का कारण बनता है.
पाथीमुगम या केरल पिंक वाटर का सेवन करने वाले मुहांसों से भी सुरक्षित रहते हैं. दरअसल एक्नी और पिम्पल्स के भयावह होने में भी संक्रमण का ही हाथ होता है जिसे पिंक वाटर से रोका जा सकता है. यही कारण है कि आज यह 100 रुपए तोला से भी ज्यादा महंगा बिक रहा है.
केरल पिंक वाटर में प्रमुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंन्ट्स होते हैं. इसमें एलर्जी प्रतिरोधक गुण भी होते हैं. पाथीमुगम का वाला यह पानी हृदय रोगों की भी रोकथाम करता है. इसके नियमित सेवन से मस्तिष्क से संबंधित विभिन्न बीमारियों, जैसे ही फिट्स आना, दौरा पड़ना, अचेत हो जाना, आदि की रोकथाम की जा सकती है.
पाथीमुगम का गुलाबी पानी का उपयोग किडनी संबंधी रोगों, हृदय से जुड़े रोगों तथा रक्तशर्करा को सामान्य करने के लिए भी किया जाता है. चोटों और सूजन पर इसके पाउडर का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग मासिक संबंधी गड़बड़ियों – कम या अधिक रक्तस्राव के उपचार के लिये भी किया जाता है. प्रसव पश्चात की पीड़ा को कम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है.
इस पेड़ का उपयोग नेचरल डाई बनाने के लिए किया जाता है. इस प्राकृतिक लाल रंग प्राप्त होता है. इसके तने का भीतरी भाग पेयजल को शुद्ध करने के लिए किया जाता है जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है.
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