दशकों पहले टीवी पर एक विज्ञापन आता था जिसमें असरानी कहते थे – ‘पूरे घर के बदल डालूंगा’. असरानी बार-बार फ्यूज होने वाले बल्बों से परेशान थे. वे परचून की दुकान पर जाते हैं तो उन्हें एक नया बल्ब दिखाया जाता है जो जल्दी फ्यूज नहीं होता. असरानी खुश हो जाते हैं और कहते हैं, पूरे घर के बदल डालूंगा. असरानी का पुराना बल्ब टंगस्टन फिलामेंट का था और नया भी. सिर्फ ब्रांड बदलता है. नया दौर ओएलएक्स फैक्टर का है. इससे पहले कि चलता हुआ पुराना सामान भंगार हो जाए, उसे आगे सरकाकर लोग खुद लेटेस्ट ले आते हैं. अब बात ब्रांड बदलने की नहीं, बल्कि नई टेक्नोलॉजी और एडिशनल फीचर्स की होती है. टंगस्टन फिलामेंट वाले बल्ब को फ्यूज होने के बाद भी घुमा-घुमा कर, हिला-डुला कर एक बार फिर जला लेते थे. पर वह पुराने दिनों की बात थी. अब इंडिया सीएफएल से होकर एलईडी तक जा पहुंचा है. अब दीपावली की रात लप-झप करते सिरीज के बल्ब बदलते नहीं गुजरती. वहां भी एलईडी रौशन हो रहा है. पर भारत इतनी तेजी से नहीं बदलता. भारत का आदमी आज भी परचून की दुकान से फिलामेंट वाला बल्ब ही खरीदता है. अब भी वह फ्यूज बल्ब को हिला-डुलाकर दोबारा जला लेता है. पीली रोशनी देने वाला यह बल्ब आज भी 15-20 रुपए का आ जाता है. दो-तीन सौ रुपए दिहाड़ी कमाने वाला आदमी 250 रुपए का एलईडी खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. भाजपा जब से सत्ता में आई है, असरानी मोड में है. कभी वह इतिहास बदलती हुई दिखती है तो कभी शहरों के नाम. पर लोग पुराना भूलते नहीं हैं. असरानी को लोग भले ही सीरियसली न लें, पर उन्हें इग्नोर करना भी मुश्किल है. छत्तीसगढ़ ने उन्हें सीरियसली लिया. पूरे घर के बदल डाला. चांऊर वाले बाबा को गोबर-गेड़ी वाले बाबा से बदल दिया. पुराना ब्रांड सकपका गया. अब वह नए फीचर्स देना चाहता है पर उसका रिसर्च लैब फेल है. नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष बदलने के बाद अब जिला स्तर पर नए चेहरे लाए जा रहे हैं. 13 जिलों के अध्यक्ष बदले जा चुके हैं. पर चेहरा संकट बना हुआ है. लोग तो उन्हीं को पहचानते हैं जिन्हें वह सालों-साल देखते आए हैं. इन्हें आप केन्द्र में ले जाओ या मार्गदर्शक मंडल में डालो, जनता की नजरों में नेता तो वही हैं. यह भारत है, आस्थाएं इतनी जल्दी नहीं बदलने वाली. वैसे भी मोर्चा तो पूर्व मुख्यमंत्री ने ही संभाला हुआ है. वह किसी परिचय के मोहताज नहीं. पूर्व मुख्यमंत्री कहो, नाम लो या चाऊंर वाले बाबा कहो, बच्चा-बच्चा समझता है कि किसकी बात हो रही है. इधर, इतने सारे नए नेता आ गए हैं कि उनका नाम याद रखना इतिहास का पर्चा लिखने जैसा हो गया है. कहीं ऐसा न हो कि वार्षिक परीक्षा के दौरान एक बार फिर लालटेन जलाने की नौबत आ जाए.
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