राजनीतिक वाहवाही लूटने के लिए सरकारें शराब बंदी तो करती हैं पर इसके भयानक नतीजे हो सकते हैं. बिहार में शराब बंदी और सख्त कानूनों के बाद 72 लोगों की मौत केवल इसलिए हो गई कि तबियत बिगड़ने के बाद भी लोग अस्पताल नहीं गए. उन्हें खतरा था कि पुलिस ने पकड़ लिया तो जुर्माना भी लगेगा और जेल भी हो सकती है. इनमें से अधिकांश की जान बचाई जा सकती थी. छत्तीसगढ़ सरकार इसीलिए शराब बंदी पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.
घटना छपरा जिले की है. 12 दिसम्बर की रात को कुछ लोगों ने शराब पी थी. राज्य में शराबबंदी है इसलिए कोचिए छिप-छिपाकर शराब बनाते और बेचते हैं. पड़ोसी राज्यों से भी शराब आती पर वह बेहद महंगी मिलती है. स्थानीय तौर पर बनी शराब को तेज करने के लिए इसमें मिथनॉल मिलाया जाता है. संभवतः मिथनॉल की मात्रा ज्यादा हो गई थी. एक-एक कर लोग बीमार पड़ने लगे. पुलिस के डर से वे अस्पताल नहीं गए. घर पर ही नमक पानी, साबुन का घोल पीकर शराब को निकालने की कोशिश करते रहे.
24 घंटे बीतने के बाद जब उनकी सांस रुकने लगी तो अंततः वे अस्पताल पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर का कहना था कि अधिकांश लोगों का लिवर काफी सूजा हुआ था और उसका रंग सफेद पड़ चुका था.
बिहार में पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर 2000-5000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है. साथ ही कड़ी पूछताछ कर पता लगाया जाता है कि उन्हें शराब कहां, किसके साथ पी. यह भी कि शराब मिली कैसे. इसी डर से लोग शराब पीकर बीमार पड़ने के बाद भी अस्पताल नहीं गए.
क्या करती है जहरीली शराब
डॉक्टर्स के अनुसार शराब वाले टॉक्सिन का असर पहले लिवर और दिमाग पर होता है. मिथनॉल की वजह से मेटाबॉलिज्म (पाचन तंत्र) बिगड़ जाता है. मरीजों का शुगर 300-400 पार हो जाता है. बीपी में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है. ऑक्सीजन सेचुरेशन गिरने लगता है. फार्मेल्डिहाइड होने से फॉर्मिक एसिड बनता है. इससे ऑप्टिक न्यूराइटिस से आंखों की रोशनी चली जाती है. खून भी गाढ़ा हो जाता है, इसकी वजह से हार्ट चोक हो जाता है. किडनी भी काम करना बंद कर देती है. कार्डियक अरेस्ट होता है. मरीज को बचाना मुश्किल होता है.