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चिता पर बैठकर “गांधीगिरी”; नौटंकी के आगे झुका प्रशासन

Dec 3, 2022
Liquor politics in Chhattisgarh

शराब दुकान के बारे में यह कहा जाता है कि इसे जंगल में भी खोल दो तो चलने लगती है. बस गिलास, पानी और चखना का इंतजाम होना चाहिए. भिलाई शहर की ही बात करें तो लोग पटरी पार साइकिल, मोटर खड़ी कर जान हथेली पर लेकर दारू ठेके तक आते हैं. फिर क्या वजह है कि बीच शहर शराब की दुकानों का लाइसेंस दिया जाता है? लगातार विरोध के बावजूद इन्हें न तो हटाया जाता है और न ही बंद किया जाता है. शराब दुकानों का विरोध करते-करते कई लोग नेता बन गये. कभी महिलाएं सड़क पर बैठकर ”पेग” बनाने लगती हैं तो कभी बोतलों की माला लेकर लोग प्रदर्शन करने लगते हैं. शराब की अर्थी निकालने से लेकर आबकारी मंत्री का पुतला फूंकने तक कई प्रकार के प्रदर्शन हो चुके हैं. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक “गांधी” शराब दुकान हटाने के लिए खुद अपनी चिता सजाकर बैठ गया. उसने चेतावनी दी कि यदि शराब दुकान नहीं हटायी गयी तो वह आत्मदाह कर लेगा. इस शराब दुकान का विद्यार्थियों से लेकर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठन विरोध कर चुके थे पर ढीठ प्रशासन किसी हाईवोल्टेड ड्रामा का इंतजार कर रहा था. अंत-पंत उसने दारू दुकान हटाने का आश्वासन दे दिया. दरअसल, मामला शराब का नहीं बल्कि शराब दुकान का है. राज्य में भले ही शराब दुकानों का संचालन सरकार कर रही हो पर इसके आसपास के चखना दुकानों का संचालन कांग्रेस के कार्यकर्ता और छुटभैया नेता कर या करवा रहे हैं. बताया जाता है कि इन चखना सेंटरों से एक एक विधानसभा में प्रतिदिन 5 से 25 हजार रुपए तक की कमाई आती है. चखना की कमाई को लेकर अकसर नेताओं में ठनी रहती है. इस धंधे पर बड़े नेताओं की भी नजर है. वे चाहते हैं कि चखना सेंटरों का ठेका उनके चमचों के पास रहे. इससे चमचा और कार्यकर्ताओं का खर्चा-पानी चलता रहेगा. व्यापार की सूझबूझ रखने वालों की मानें तो इसमें सरकार का ही फायदा है कि दारू दुकान दूरस्थ अंचलों में खुले. इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि पानी, गिलास और चखना लोगों को वहीं से खरीदना पड़ेगा. अभी लोगों के पास अन्य दुकानों का भी आप्शन रहता है. दारू दुकान दूर होने से पियक्कड़ों की संख्या कम होने से रही. मुसीबत सिर्फ यह होगी कि सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने लिए पुलिस को अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ेगी. वैसे भी शहरे के बीच स्थापित दारू दुकानों पर भी सुरक्षा व्यवस्था का कोई बहुत अच्छा हाल तो है नहीं. आए दिन छीना झपटी, मारपीट और चाकूबाजी की घटनाएं हो रही हैं. इससे आम लोगों को भी तकलीफ होती है. दारू दुकान आबादी से बाहर हो तो सरकार की भी इज्जत सेफ रहेगी. जिसे दारू पी-पिलाकर मरना है, उसे उसके हाल पर ही छोड़ दें तो अच्छा.

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