छत्तीसगढ़ के गढ़ तो कब के बिखर चुके हैं. इनमें से कुछ स्थान अब पश्चिमी ओड़ीशा में हैं. कुछ गढ़ों के अवशेष मात्र बाकी है. परिवर्तन सृष्टि का नियम है. जो कल था वह आज नहीं है. जो आज है वह कल नहीं रहेगा. आज छत्तीसगढ़ के पास अपने गढ़ भले ही न रहे हों, दक्षिण कोशल का नक्शा भले बिगड़ गया हो पर 36 भाजियों की उसकी थाती आज भी सुरक्षित है. जांजगीर-चांपा जिले के बहेराडीह गांव के किसान दीनदयाल यादव ने न केवल इन 36 किस्म की भाजियों पर शोध किया है बल्कि दस्तावेजीकरण के साथ उसका पेटेंट भी हासिल कर लिया है. इन भाजियों में तिवरा, चेंज, लाखड़ी, लालभाजी, चौलाई भाजी, बोहार भाजी, चना भाजी जैसी आम मिलने वाली लोकप्रिय भाजियां भी शामिल हैं. इसके साथ ही उन्होंने धान की कुछ किस्मों का भी पेटेंट हासिल कर लिया है. उन्होंने इसकी तैयारी 2010-11 में ही शुरू कर दी थी. हालांकि, 23 दिसम्बर, 2021 को उन्होंने गांव में ही एक किसान स्कूल की स्थापना कर दी. यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र किसान स्कूल है. इसकी बाड़ी में तो भाजियां उगती ही हैं, स्कूल की छत पर गमलों में भी भाजी की किस्मों पर प्रयोग किये जाते हैं. कहा जा सकता है कि आज की तारीख में वे भाजियों के सबसे बड़े ज्ञाता हैं. उनके शोध कार्यों को देखने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों से भी कृषि वैज्ञानिक और किसान यहां आ चुके हैं. उनकी खेती पूरी तरह से जैविक है, इसलिए भी पश्चिम का ध्यान आकर्षित करता है. जैविक खेती के लिए उन्होंने आस्ट्रेलिया से ही आइसेनिया फेटिडा केंचुओं का आयात किया था. ये केंचुए गोबर खाकर खाद-मिट्टी निकालते हैं. दीनदयाल की इस जैविक खेती को देखने के लिए 18 मार्च को अमेरिका के किसान यहां आने वाले हैं. दरअसल, सफलता की कुंजी इन्हीं छोटी-छोटी चीजों में छिपी होती हैं. जब तक हम विकास की हर कसौटी को पश्चिम के नजरिए से देखते रहेंगे तब तक उन छोटी-छोटी चीजों पर गर्व नहीं कर पाएंगे जो हमारे आसपास हैं. हमारे पास साइकिल थी. बड़ी संख्या में इसके उपयोगकर्ता थे. पर हमने साइकिल में सुधार की कोई खास कोशिश नहीं की. चीन ने हमारा साइकिल बाजार हमसे छीन लिया. हर घर में रसोई थी पर हमने रसोई घर पर शोध नहीं किया. आज आधुनिक किचन में आधे से ज्यादा चीजें विदेशी हैं. हमने बच्चों के खिलौनों पर काम नहीं किया तो चीन ने यह भी हमसे छीन लिया. चीन ने हमसे हमारी होली और दिवाली भी छीन ली. हम केवल उपभोक्ता बन कर रह गए. उन्नत किसान दीनदयाल यादव की कोशिशें इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. चावल की कई किस्में दुनिया को देने के बाद अब छत्तीसगढ़ भाजी की किस्में भी दुनिया को देगा. जहां कहीं भी यह भाजी उगाई जाएगी, उसका लाभांश दीनदयाल को मिलेगा. है न गर्व की बात!
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