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रॉकेट साइंस की पढ़ाई से पहले जरूरी है इस विषय का ज्ञान

Mar 27, 2023
Science without scientific temperament is useless

खूब पढ़े लिखे लोग भी कैसी-कैसी हरकतें करते हैं, यह जानकर हैरानी होती है. महिला दिवस पर स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ डॉ मानसी गुलाटी ने एक किस्सा सुनाया. एक दंपति पड़ोसी जिले से केवल प्रसव के लिए उनके पास आया. तीसरी संतान पेट में थी. पहले जहां-जहां प्रसव कराया, हर बार बेटी हुई. इसलिए इस बार दंपति यहां पहुंचा था. अफसोस कि इस बार भी बेटी ही हुई. बेटी के जन्म के लिए यह दंपति नर्सिंग होम को जिम्मेदार मान रहा था. बेटी जनने का ठीकरा बहू पर फोड़ने वाली सासों की कमी तो वैसे भी कभी अपने यहां रही नहीं. बेटियां जनने पर बहू को ससुराल से निकाले जाने, बेटियों की कोख में हत्या कर देने की घटनाएं भी अकसर सुनाई दे जाती हैं. हाल ही में एक ऐसी ही घटना सामने आई है. सामूहिक विवाह समारोह में फेरे लेने के बाद अंबिकापुर की एक बेटी दुर्ग आई थी. एक साल बाद उसने एक बेटी को जन्म दिया और फिर रहस्यमयी परिस्थितियों में उसकी जलने से मौत हो गई. पिता का आरोप है कि उनकी बेटी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था. साथ ही बेटी ने जब एक कन्या को जन्म दिया तो वह पति और सास की आंखों की किरकिरी बन गई. दरअसल, देश में लोगों ने विज्ञान तो बहुत पढ़ा और पढ़ाया पर सोच को वैज्ञानिक नहीं कर पाए. करते भी कैसे? कोई चार दशक पहले सीबीएसई की पाठ्यपुस्तकों में यौन विज्ञान को शामिल किया गया था. इसमें किशोरवय में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के साथ ही गर्भ से जुड़ी सारगर्भित जानकारियां थीं. देश में इस पाठ पर जमकर बहस हुई और अंततः इसकी पढ़ाई पर रोक लग गई. आज भी जीव विज्ञान से इतर विषय वाले विद्यार्थियों को बेटा और बेटी तय करने वाले क्रोमोसोम्स के बारे में सतही जानकारी तक नहीं है. श्रुत परम्परा से ही इसका ज्ञान आगे बढ़ रहा है. श्रुत परम्परा कहती है कि विशेष मुहूर्त पर गर्भधारण करने से शर्तिया बेटा होता है. बाबाओं के पास बेटा पैदा करने के गंडे-ताबीज भी मिलते हैं. इसके बाद भी यदि कोख में बेटी आ गई तो इसका पूरा ठीकरा गर्भवती पर फोड़ दिया जाता है. माताएं बेटों की दूसरी शादी की बातें करने लगती हैं. गर्भधारण का एक पूरा विज्ञान है. आज गर्भस्थ शिशु को देखा और परखा जा सकता है. पर लोगों ने इसका भी बेजा इस्तेमाल शुरू कर दिया. हारकर सरकार को सोनोग्राफी सेन्टरों के लिए कड़े नियम कानून बनाने पड़े. काश रॉकेट साइंस के साथ ही थोड़ी जानकारी अपने और अपने शरीर के बारे में रखने को भी जरूरी समझा गया होता तो ये दिन न देखने पड़ते. देश की प्राचीन मूर्तियां और मंदिर गवाह हैं कि यौन संबंधों को सहज सामाजिक स्वीकार्यता था. बस्तर की घोटुल संस्कृति भी इसकी तसदीक करती है. वक्त आ गया है कि इस जरूरी विषय की शिक्षा अनिवार्य हो.

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