इस व्यंग आलेख ( मूल मराठी ) के लेखक श्री पुरुषोत्तम दारवेकर हैं। वे कभी रायपुर छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय मराठी साहित्य सम्मेलन में आए थे। उन्होंने रोज कलाकार के एक अवतार की व्यंग कथा मंच से सुनाई थी। उस कथा को मेरे मित्र स्वर्गीय सतीश चिमोटे ने मुझे सुनाया था। इस बात को वर्षों बीत गए। पर वो नाट्य कलाकारों के दस अवतार मेरे जेहन में चमगादड़ की तरह मंडराते रहे। कभी हूबहू सामने आकर खड़े हो जाते तो कभी सपनों में परेशान करते। एक दिन मैंने तय कर लिया कि इनका चरित्र – चित्रण अब मुझे हिंदी में लिखना ही पड़ेगा तभी ये मानेंगे। जो लिखा है अपनी याददाश्त से ही लिखा है। व्यंग की धार पुरुषोत्तम दारवेकर जी की और आज के हिसाब से मेरी भी है।
पुरुषोत्तम जी ने कई जोरदार मराठी नाटक लिखे हैं। कई समय तक वे मुंबई में नाट्य विधा के सेंसर बोर्ड में अध्यक्ष भी रहे थे। उनके सुपुत्र रंजन दारवेकर भी नाट्यकार और निर्देशक हैं।
उनसे साभार – उस मराठी मूल का हिंदी करण – दिनेश दीक्षित, पुणे दूरभाष 9975439998
( एक व्यंग आलेख की पहली किस्त … दूसरी कल …)