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स्टेम सेल से हो सकता है डायबिटीज का स्थायी इलाज

Apr 7, 2023
Stem Cell therapy can revolutionize diabetes treatment

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है. इस बार का थीम है सबके लिये स्वास्थ्य. आज मधुमेह सबसे बड़ी बीमारी बनी हुई जो दूसरी बीमारियों को भी कोमॉर्बिडटी के रूप में जानलेवा बनाती है. इधर दुनिया भर में मधुमेह के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. एक अनुमान के मुताबिक 2045 तक विश्व में मधुमेह रोगियों की संख्या 70 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी. dvcstem.com में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक स्टेम सेल से इसका स्थायी इलाज किया जाना संभव है. पोर्टल पर 7 फरवरी 2023 को प्रकाशित एक लेख में डॉ लुई ए कोना ने लिखा कि स्टेम सेल थेरेपी टाइप-1 डायबिटीज के इलाज में रामबाण साबित हो सकता है. इससे बाह्य इंसुलिन पर निर्भरता खत्म की जा सकती है. हालांकि इससे पहले पुणे के शोधकर्ताओं ने 48 मरीजों पर स्टेम सेल थेरेपी का उपयोग किया था और उनके नतीजे उत्साहजनक रहे थे.
नए शोध के अनुसार डायबिटीज के रोगियों में गर्भनाल से प्राप्त स्टेमसेल का उपयोग किया गया. इससे उनके शरीर में दोबारा इंसुलिन बनने लगी और उनकी इंसुलिन निर्भरता लगभग खत्म हो गई. इसके उपयोग से रोगी के पैन्क्रियाज में islet कोषिकाएं दोबारा बनने लगती हैं. ये कोशिकाएं पैन्क्रियाज में इंसुलिन हारमोन के निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं. स्टेम सेल का एक बार प्रयोग करने पर इसके परिणाम दीर्घजीवी होते हैं. टाइप-1 डायबिटीज के इलाज के लिए Mesenchymal stem cells (MSCs) गर्भनाल के साथ ही अस्थि मज्जा (बोन मैरो) तथा फैटी टिशूज से भी प्राप्त किये जा सकते हैं.
इस रिपोर्ट के आने से 11 साल पहले 2012 में पुणे के एक स्टेमसेल शोध संस्थान ने 48 मरीजों पर किये गये प्रयोगों की रिपोर्ट साझा की थी. लखनऊ के एक सेमीनार को संबोधित करते हुए डॉ अनंत बगुल ने इसकी जानकारी साझा की थी. उत्तर प्रदेश मधुमेह एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि पुणे के एक स्टेम सेल थेरेपी सेंटर में इस तकनीक के जरिए 48 मधुमेह के मरीजों को इस बीमारी से मुक्ति मिली है. जिन 48 मरीजों का सफल इलाज हुआ है, उनमें से 19 मरीजों को टाइप-वन डायबिटीज थी और शेष को टाइप-टू.
उन्होंने बताया कि इसके लिए बोन मैरो व अंबिलिकल कॉर्ड से स्टेम कोशिकाएं निकाला जाता है. इन कोशिकाओं को पैंक्रियाज की धमनी में डाल देते हैं. इससे पैंक्रियाज की बीटा कोशिकाएं बनने लगती हैं और साथ ही बनने लगता है इंसुलिन भी. उन्होंने बताया था कि पूरी प्रक्रिया में करीब 24 दिन लगते हैं और खर्च तीन लाख रुपये के आसपास है. मधुमेह रोगियों पर इस थेरेपी के नतीजे 68 फीसद तक सफल पाए गए थे. दो से 14 साल तक के टाइप वन डायबिटीज रोगी और 40-70 आयुवर्ग के टाइप-टू डायबिटीज रोगी यह थेरेपी करवा सकते हैं.
अब तक डॉक्टरों का मानना था कि दुनिया में कोई ऐसी दवा नहीं बनी, जो मधुमेह से मुक्ति दिला सके. एक बार यह बीमारी होने के बाद दवाएं जिंदगी भर चलती रहती हैं, ताकि ब्लड शुगर नियंत्रण में रहे, लेकिन स्टेम सेल थेरेपी से सफल इलाज के बाद यह तथ्य बीते दिन की बात हो गई है.
क्या है टाइप-वन और टाइप-टू डायबिटीज
कार्यक्रम के आयोजक और मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. एलके शंखधर ने बताया कि टाइप वन डायबिटीज ऑटो इम्यून डिसीज है और एक लाख में से एक को ही होती है. अमूमन पांच वर्ष के बच्चे से लेकर 16-17 साल के किशोरों में यह बीमारी देखने को मिलती है. ऐसे मरीज इंसुलिन पर निर्भर होते हैं, इनके शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता. ऊपर से इंसुलिन न मिल पाने से ये मरीज कोमा में जा सकते हैं. टाइप-टू डायबिटीज आम बीमारी है, ज्यादातर मधुमेह रोगी टाइप-टू होते हैं.

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