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कहानी : “दामू – गुरु” ( पहली किश्त ) – दिनेश दीक्षित

May 2, 2023
Damu-Guruji by Dinesh Dixit

भैसदई। एक छोटा सा गांव। आकार नाम के अनुरूप नहीं। सड़क जो गांव को मुख्य सड़क से जोड़ती, वहीं चौपाल उसके बाद बड़ी – सी पक्की बावड़ी , बावड़ी से लगा इमली का पेड़। पेड़ का नाम बूढ़ी इमली। पेड़ अपनी उम्र के लिहाज़ से झुका हुआ लेकिन अनुभव की चौड़ाई और फैलाव दूर तक बढ़ा हुआ। झुका कुछ इस तरह कि जैसे बुढ़िया की कमर झुक कर कमान हो गई हो। बच्चों का पेड़ पर चढ़ना बेहद आसान जैसे बूढ़ी दादी ने अपने सब बच्चों को अपनी गोद में खेलने के लिए खुला आमंत्रण दे रखा हो।
स्कूल के ही क्या ? गांव के सब बच्चे अपना – अपना समय निकाल कर इस बूढ़ी इमली पर गुलाम डंडा खेलते। सब बच्चों की आत्मीय बूढ़ी इमली। गांव का बच्चा पिटने के बाद नाराज़ होकर बूढ़ी इमली की खोह में रोता हुआ मिल जाता था। सबको प्रश्रय देती बूढ़ी दादी इमली।


इसी बूढ़ी इमली से सटी हुई थी स्कूल की दीवार । जब भी घंटी बजती , बच्चे पेड़ से कूद कर सीधे स्कूल में दाखिल हो जाते। गांव छोटा था पर सारे वर्ग संघर्ष को अपने में समेटे बैठा था।
स्कूल में गणित के शिक्षक थे दामू – गुरु। पूरा नाम दामोदर भोलानाथ पंत। गांव के ही नहीं कई आस पास के गांव के लोग उन्हें दामू – गुरु ही कहते थे। दूर – दराज के पांच – पच्चीस गांव में भी उनके जैसा अनुभवी गणित पढ़ाने वाला शिक्षक मिलना मुश्किल था। भैसदई का नाम उनके नाम से जाना जाता था।
सरपंच का एक मात्र पुत्र घनश्याम। उसका एक दोस्त अरविंद , जो घनश्याम के यहां ही सुबह – शाम काम करता। दोनों गांव के स्कूल में बचपन से ही साथ – साथ पढ़ रहे थे। दामू – गुरु को मालूम था कि घनश्याम सरपंच के सुपुत्र हैं और इस साल दसवीं बोर्ड है। इस बात को स्वीकार कर उन्होंने घनश्याम पर विशेष अनुकंपा बरसाना चालू कर दी।
कुछ लाड़ प्यार की वजह से और कुछ संपन्नताओं के चलते घनश्याम पढ़ने में शुरू से ही रुचि नहीं ले रहा था। दसवीं तक आते – आते वह गणित में चिकना घड़ा हो गया। गणित के पानी की एक बूंद भी उसके बुद्धि के घड़े में प्रवेश नहीं कर पाती।
उधर अरविंद सुबह जल्दी उठकर सरपंच के यहां घास काट कर पशुओं को खिलाता , भैसथान की साफ सफाई करता , दूध निकाल कर रसोई में रखता। फिर अपने घर जाकर स्कूल का बस्ता ले ठीक नौ बजे स्कूल पहुंच जाता। चार बजे स्कूल से छूटने के बाद , सरपंच के खेतों में मोटर चला कर पानी सींचता और साढ़े सात बजे घर लौट कर रोज ग्यारह बजे तक कंडिल की रोशनी में पढ़ता।
सरपंच के सुपुत्र को पूरी क्लास में पिछड़ते देख दामू गुरु बेहद चिंतित थे। एक दिन वे घनश्याम से बोले – तुम्हारा गणित क्लास में सबसे ख़राब है , मैं निःशुल्क तुम्हे घर में गणित पढ़ा दूंगा। बतलाओ कल से कितनी बजे सुबह आऊं ? घनश्याम ने थोड़ा सोच कर धीरे से कहा – सर आप तकलीफ न करें , बस परीक्षा में मदद कर दें। दामू गुरु ने कहा – कॉलेज में तुम्हारी मदद करने कौन आएगा ? तुम समय बतलाओ। हारकर घनश्याम ने ठंडी आवाज़ में कहा – सर आठ बजे आ जाएं।
( दूसरी किश्त कल )

(द्वितीय किस्त )

(तृतीय किस्त)

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