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कहानी – “दामू गुरू” (दूसरी किस्त) लेखक दिनेश दीक्षित

May 11, 2023
Damu-Guruji by Dinesh Dixit

दामू गुरु ने कहा – ठीक है कल से परीक्षा तक मैं तुम्हे लगतार गणित पढ़ाने आऊंगा। सुबह गुरु नहा – धोकर चक्क कपड़े पहन कर सरपंच के घर की ओर निकले। मन में था, सरपंच से घरौपा हो गया तो बाद की जिंदगी सुलभ होगी। दरवाजे के साथ ही भैंसथान था। वे आहते में पहुंचे, उन्हे अरविंद गंडासे से घास काटता दिखा। एक बारगी जानी – पहचानी शक्ल को अपरिचित जगह देखकर वे ठिठके, ध्यान से देखा , अरे हां यह तो क्लास में अव्वल आने वाला लड़का अरविंद ही है। उन्हे आज पता चला कि वो सरपंच साहब का नौकर है।
वे चुपचाप दरवाजे से बरामदे में दाखिल हुए। सरपंच साब दातून कर रहे थे, दोनों हाथों से दामू गुरु ने अभिवादन किया। सरपंच बोले – गुरुजी बैठिए….घनश्याम अभी आता है। कुछ सकुचाए – सिमटे से दामू गुरु बैठे रहे। हलवाहे ने आज का आनंद समाचार पत्र उनके टेम – पास के लिए थमा दिया। दस – पंद्रह मिनट बाद घनश्याम ने प्रवेश किया। बिना अभिवादन किए वो बगल की कुर्सी में बेतकल्लुफ पसर गया। गुरु को उसका ये व्यवहार खटका पर उन्होंने एक शातिर तेजी से इस विचार को कुर्सी के पीछे पटक दिया। अपने आप को सामान्य करने के लिए उन्होंने पूछा – अरे घनश्याम ये अरविंद तुम्हारे यहां क्या करता है?
घनश्याम ने कहा – वह बचपन से ही हमारे यहां नौकर है। घसिए का लड़का है, गरीब है। दामू – गुरु ने बात बदली, ” अच्छा चलो गणित की किताब निकालो ” और फिर वे घनश्याम को गणित घोटकर पिलाने वाली अपनी पूरी ताकत से पिल पड़े।
स्कूल की घंटी बजने के बाद, जब सारे बच्चों का शोरगुल थम सा गया। तब दामू गुरु ने अरविंद को आवाज़ देकर अलग बुलाया। अरविंद खुश हुआ, आज पहली बार सर ने अलग से आवाज़ देकर उसे बुलाया था। उसे लगा सर उसे शाबासी देंगे। दामू गुरु ने कहा – ” अरविंद तुम एक अच्छे कामकाजी लड़के हो। मेरा एक काम करोगे ? ये लो सामान की लिस्ट और पैसे, परचून की दुकान से सौदा लेकर मेरे घर पहुंचा देना।
अरविंद ने कहा – सर मेरी गैर हाज़िरी हो जाएगी। सर दसवीं कक्षा में हूं, बोर्ड है इस साल।
दामू गुरु ने तीखे स्वर में कहा – मुझे सब पता है, मैं सब देख लूंगा।
फिर ये किस्सा रोज का हो गया। कभी घर में सफाई, कभी प्रिंसिपल रूम की, कभी बच्चों को घुमाने ले जाना। दामू गुरु ने उसके पढ़ाई के समय को भी बेगारी में झोंक दिया। इस विचार से कि घसियारे का बच्चा पढ़कर क्या ही कर लेगा? बावजूद इसके दामू गुरु के अनुमान से दसवीं बोर्ड का परिणाम उल्टा ही बैठा। अरविंद के 85% मार्क्स बने,और सरपंच के सुपुत्र घनश्याम ले देकर पास हुए।
पंख लगाकर 7 साल बीत गए। दामू गुरु सेवानिवृत हो गए थे। सरपंच सुपुत्र घनश्याम बमुश्किल 12 वीं पास कर पाया। वो गांव लौटकर नेतागिरी की प्रैक्टिस करने लगा। एक दिन दामू गुरु को खेती – बाड़ी की ज़मीन के सिलसिले में जिला मुख्यालय जाना पड़ा। तहसीलदार के पास गुरुजी की पेशी थी। पता चला तहसीलदार लंबी छुट्टी पर गए हुए हैं। इसलिए लंबित प्रकरण स्वयं डिप्टी कलेक्टर महोदय देखने वाले हैं। सुना है कोई नए आए हैं। नाम पुकारे जाने पर गुरुजी हाज़िर हुए। देखा तो कुर्सी पर कोई और नहीं अरविंद बैठा है।
गुरुजी का दिल धक से बैठ गया, वे अरविंद से आंखें चुराने का असफल प्रयास कर रहे थे।

(प्रथम किस्त)

(द्वितीय किस्त )

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