भिलाई। किडनी की पथरी की समस्या एक बेहद आम समस्या बनकर उभरी है. पथरी जब बड़ी होकर किडनी या मूत्रमार्ग में फंस जाती है तो उसे तोड़कर महीन टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है. ये महीन टुकड़े मूत्र के साथ विसर्जित हो जाते हैं. शॉकवेव लिथोट्रिप्सी में पथरी को टुकड़ों के मूत्रवाहिनी में फंस जाने का खतरा रहता है. इसलिए आरोग्यम यूरोलॉजी एवं नेफ्रोलॉजी सेन्टर में अब लेजर लिथोट्रिप्सी की सुविधा उपलब्ध हो गयी है. यह एक बेहद सुरक्षित नई तकनीक है.
यूरो सर्जन डॉ नवीन राम दारूका ने बताया कि होल्मियम लेजर लिथोट्रिप्सी holmium laser lithotripsy में एक लचीले लेजर फाइबर को पथरी के पास पहुंचाया जाता है. लेजर किरणों द्वारा पथरी को डस्ट में तब्दील कर दिया जाता है जिसे स्कोप में मौजूद एक बास्केट द्वारा निकाल लिया जाता है. यह एक बेहद सुरक्षित तरीका है जिससे यूरेटर, किडनी या मूत्रमार्ग को कोई नुकसान नहीं होता.
लेसर की सहायता से गुर्दे की पथरी निकालने की सफलता दर 95.8% है.
पारम्परिक लिथोट्रिप्सी में किडनी की पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों तोड़ने के लिए ध्वनि तरंगों या शॉकवेव का उपयोग किया जाता है. इससे पथरी के सभी टुकड़ों का मूत्र के साथ बाहर निकल जाना सुनिश्चित नहीं होता. लिथोट्रिप्सी के बाद किडनी में सूजन, रक्तस्राव या संक्रमण की संभावना भी होती है. टुकड़े बचे रहने पर दोबारा प्रोसीजर की जरूरत पड़ सकती है. लेजर लिथोट्रिप्सी इन सभी मुश्किलों को कम कर देती है.
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही आरोग्यम हॉस्पिटल होल्मियम लेजर लिथोट्रिप्सी स्थापित करने वाला दुर्ग-भिलाई का पहला अस्पताल बन गया है.