ज्ञान के मामले में भारत हमेशा से विश्वगुरू रहा है. इसकी ठोस वजह भी है. यह प्रचुरता का देश है. यहां भूमि, जल, जंगल, मैदान, पहाड़ और चारों मौसम हैं. इसके लिए यह जीवन के सर्वथा अनुकूल है. इसलिए इतिहास के आरंभ से जो भी यहां आया, यहीं बस गया. इसे अपना घर बना लिया. जब जीवन का संघर्ष कम होता है तो इंसान अपनी बुद्धि का बेहतर उपयोग कर पाता है. उसे अन्य घटनाओं और प्रक्रियाओं को समझने के लिए वक्त मिलता है. भारत ने मानव, प्रकृति, मौसम चक्र, खगोल शास्त्र सभी का गहन अध्ययन किया. संभवतः इसीलिए प्रायः सभी शास्त्रों का उद्गम भी भारत में ही हुआ. विद्या प्राप्त करना, विद्या प्रदान करना एक पवित्र धर्म रहा. विद्या प्रदान करने वाले के पालन पोषण की जिम्मेदारी समाज ने ली. उन्हें दान, दक्षिणा आदि देकर उनकी गृहस्थी को परिपूर्ण किया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वह अपना पूरा ध्यान ज्ञानार्जन और अध्यापन में लगा सके. पर समय के साथ सबकुछ बदल जाता है. जब सबकुछ सहज-सुलभ हो जाता है तो उसकी कोई कीमत नहीं रह जाती. कुछ ऐसा ही हुआ योग के साथ. कल योगदिवस पर कुछ अनिवासी भारतीय बच्चे भी शहर में थे. उन्होंने अपने पालकों के साथ उनके कार्यस्थल पर जाकर योग किया. उन्हें झटपट सभी आसन करते देखना एक सुखद अनुभूति थी. दूसरी तरफ हम और हमारे बच्चे थे. हमने योग को भी त्यौहार बना रखा है. इसकी शुरुआत 2015 में हुई. 21 जून आने से एक सप्ताह या हद से हद पखवाड़ा पहले योग दिवस मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है. कुछ लोगों ने 2015 या उससे भी पहले योग को अपने जीवन में अपना लिया था. ऐसे लोग अनायास सभी आसन और प्राणायाम कर लेते हैं. पर शेष सभी लोग, जिनमें नेता भी शामिल हैं, योग दिवस पर ऊटपटांग हरकतें करते नजर आते हैं. एक तो आसन लगते नहीं, और जोर जबरदस्ती कर ली तो अस्पताल पहुंच जाते हैं. दरअसल, योग को लेकर हम कभी गंभीर हुए ही नहीं. यह भी हमारे लिए कथा-प्रवचन की तरह है. हम प्रवचन पंडालों में जाते हैं, कथाएं भी सुनते हैं पर हमारे जीवन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता. योग को भी हमने त्यौहार बना लिया. इसके बारे में जानकारी इतनी हासिल कर ली कि जिसे भी माइक पर खड़ा कर दो, एक-आध घंटा भाषण दे सकता है. इधर देश में दिल, गुर्दा, यकृत, कमर, घुटना, गर्दन की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है. रक्तचाप, तनाव और अवसाद से घिरे लोगों की संख्या भी बढ़ ही रही है. कितना अच्छा होता कि जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा हुई तो लोगों ने योग को जीवन में अपना लिया होता. उनका अपना और सरकार का स्वास्थ्य बजट कम हो जाता. स्वस्थ भारत एक उत्पादक भारत होता. पर हमें तो दोषारोपण की आदत है. हम यही कहकर खुश हो लेंगे कि पश्चिम ने हमारा योग चुरा लिया.