प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने छह नियुक्तियां कीं. प्रदेश प्रभारी ने उनका आदेश पलट दिया. आदेशात्मक लहजे में उन्हें नियुक्तियों को रद करने को कहा गया. यह चिट्ठी मीडिया के पास भी पहुंच गई. जब मीडिया ने इसपर प्रदेश प्रभारी से सवाल पूछे तो वे बचकर निकल गईं. जब घर में ही इस तरह के लोग होंगे तो बाहरी दुश्मन की जरूरत ही क्या है? दरअसल, राजनीतिक दलों में पद और रेवड़ी में कोई खास फर्क नहीं होता. पद लोगों को खुश करने के लिए दिये जाते हैं. सभी पदों पर एक-एक आदमी बैठा हो तो घर भरा-पूरा लगता है. आज देश भर में कांग्रेस की जो हालत है, उसके लिए उसका केन्द्रीय नेतृत्व ही जिम्मेदार है. देश में कांग्रेस की जो थोड़ी बहुत इज्जत बची है वह छत्तीसगढ़ की वजह से है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति सबको सम्मान देने की है. इसलिए वह निकम्मों की भी आवभगत करती है. यहां टूरिस्ट वीजा पर छत्तीसगढ़ आने वाले नेताओं को भी भरपूर सम्मान दिया जाता है, फिर चाहे वो किसी भी पार्टी के हों. पर इसका यह मतलब नहीं है कि वे पार्टी को ही नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें. चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं. भाजपा लगातार कांग्रेस पर हमले कर रही है. भाजपा की आनुषांगिक इकाइयां धर्मांतरण, लव जिहाद और गौकशी जैसे मुद्दे उछालकर अवाम का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस किसी तरह पार्टी और मतदाताओं को एकजुट रखने की कोशिश कर रही है. पर प्रदेश प्रभारी उसके किए धरे पर पानी फेर रही हैं. उनकी कोई पसंद या नापसंद थी तो वे प्रदेश अध्यक्ष के साथ बंद कमरे की बैठक कर सकती थीं, सुझाव दे सकती थीं, दबाव भी बना सकती थीं. पर नहीं, उन्हें तो अपना पावर दिखाना था, सो उन्होंने दिखा दिया. पावर किसी पावर सेन्टर से आए तो भी बात समझ में आती है, जैसा कि भाजपा में होता है. वहां केन्द्रीय नेतृत्व के पास एक ऐसा चेहरा है जिसे दिखाकर कोई भी ऐरा-गैरा चुनाव जीत सकता है पर कांग्रेस आज उस स्थिति में नहीं है. शतरंज की इस बिसात पर कांग्रेस के सभी बड़े मोहरे धराशायी हो चुके हैं. प्यादों की मदद से खेल किसी तरह आगे बढ़ रहा है. उसमें विघ्न डालने की कोई जरूरत नहीं थी. एक प्यादा काफी आगे बढ़ गया है. एक दो चाल में वह वजीर बन सकता है. खेल में जान वापस आ सकती है. इसलिए उसे डिसटर्ब करना जरूरी है. यही वह गंदी आदत है जिसने राजीव के बाद कांग्रेस की मिट्टी पलीद कर दी. प्रदेश सरकार के पास तमाम मसले हैं सिर धुनने के लिए. इस अतिरिक्त मुसीबत की कोई जरूरत नहीं थी. प्रदेश प्रभारी को यहां पार्टी की मदद करने के लिए भेजा गया था पर वे उसमें विघ्न डालकर चली गईं. अब प्रदेश नेतृत्व के पास एक और मसला हो गया सिर खपाई के लिए.